मृदा अपरदन पर निबंध |essay on soil erosion

mrida apardan par nibandh

मृदा अपरदन

यह सर्वविदित है कि वर्तमान समय में मृदा अपरदन की समस्या ने भयावह रूप ले लिया है । क्योंकि मृदा अपरदन के कारण विश्व स्तर पर प्रतिवर्ष लाखों हैक्टेयर उत्तम कृषि भूमि का विनाश होता जा रहा है । वास्तव में सदा अपरदन की दर एवं मात्रा में प्रतिवर्ष तेजी से वृद्धि हो रही है । अतः अब यह आवश्यक हो गया है कि मिट्टियों के इस विषायण की कारगर रोकथाम की जाय ताकि इस बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन के विनाश को रोका जा सके ।

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मृदा संरक्षण के किसी भी कारगर उपाय में निम्न आधारभूत उद्देश्यों को सम्मिलित किया जाता है:-

वर्षा की जलबूँदों से धरातलीय सतह की रक्षा।

जलवर्षा के भूमि में अंतःसंरचना की दर एवं मात्रा में वृद्धि करना।

धरातलीय वाहीजल के आयतन एवं वेग में कमी करना।

मिट्टी की अपरदनशीलता में कमी करना या मिट्टियों के भौतिक एवं रासायनिक गुणों को परिवर्तित करके उनको अपरदन के प्रति प्रतिरोधिता में वृद्धि करना ।

मृदा अपरदन के प्रकार

ज्ञातव्य है कि मृदा अपरदन को दो प्रकारों में विभक्त किया जाता है :-
( i ) मंद गति से होने वाला मृदा अपरदन – यह मुख्य रूप से वृष्टि आस्फालन अपरदन, वृष्टि घुलन तथा चादर घुलन की प्रक्रियाओं द्वारा खासकर कृषित क्षेत्रों , वनों के सफाया होने से प्राप्त क्षेत्रों तथा परित्यक्त कृषि क्षेत्रों में अधिक होता है ।
( ii ) तीव गति से होने वाला अपरदन – मुख्य रूप से अवनलिका अपरदन की प्रक्रियाओं द्वारा सम्पन्न होता है । इस तरह का अपरदन मुख्य रूप से वनस्पतिविहीन ( मानव द्वारा साफ किये जाने पर ) पहाड़ी ढ़ालों , ढलुआ भूमि तथा जलोद नदियों के किनारे वाले भागों में अधिक होता है । अत: विभिन्न प्रकार के मृदा अपरदन की रोकथाम के लिए अलग – अलग संरक्षण उपाय तथा तकनीकों का प्रयोग किया जाना चाहिए ।

मृदा अपरदन के उपाय

फसल प्रबंधन के उपाय : – मृदा अपरदन को रोकने के लिए फसलों के प्रबंधन से संबंधित उपायों का प्रयोग सामान्यतया उन क्षेत्रों में किया जाता है , जहाँ पर फसलों की खेती की जाती है , तथा मृदा अपरदन अधिक नहीं होता है । उल्लेखनीय है कि यदि फसलों की खेती में उचित प्रबंध किया जाए तो जल वर्षा के लिए खुलें भागों के क्षेत्रफल तथा क्षेत्रों के अनावरण को अवधि ( अर्थात् क्षेत्र विशेष कितने समय तक फसलो के अभाव में खुला रहता है ) दोनों में पर्याप्त कमी की जा सकती है और मृदा अपरदन को घटाया जा सकता है ।

फसलों के उचित प्रबंधन द्वारा जलवर्षा के भूमि में अन्तःसंचरण की दर में वृद्धि एवं धरातलीय वाही जल की मात्रा में ह्रास हो सकता है । जिस कारण मृदा अपरदन में अपने आप कमी हो जायेगी । मृदा अपरदन को रोकने के लिए फसलों के प्रबंधन के निम्न उपायों को प्रयोग में लाया जाना चाहिए :-

( i ) यदि कृषि के लिए फसलों का उचित चुनाव किया जाय तो खुले क्षेत्रों की मात्रा तथा अवधि दोनों में भारी कमी हो सकती है और वृष्टि आस्फालन अपरदन ( rainsplash erosion ) के प्रकोप से कृषि भूमि की रक्षा हो सकती है ।
भारत में हरित क्रान्ति के बाद कम से कम उन क्षेत्रों मे , जहाँ पर सिंचाई की सुविधा प्राप्त हैं , अब कोई भी खेत वर्षाकाल में खुला या खाली नहीं रखा जाता है । सिंचाई वाले क्षेत्रों में धान की अधिकाधिक क्षेत्रों पर कृषि की जाने लगी है , परिणामस्वरूप मृदा अपरदन भारी कमी आयी है ।

( ii ) जहाँ तक संभव हो सके अधिक – से – अधिक ऐसी फसलों की खेती की जानी चाहिए , जो अधिकतम क्षेत्र को ढ़क सकें तथा मिट्टी के कणों को अधिकाधिक रूप से आपस में बाँध सके ताकि भूमि सतह को जलवर्षा के सीधे प्रहार से बचाया जा सके ।

( iii ) यदि उपर्युक्त उपाय संभव नहीं है तो फसलों की बुआई को इस तरह से उचित रूप में समायोजित कर लेना चाहिए कि कोई भी कृषि भूमि अधिक समय तक तीव्र जलवर्षा के प्रहार के लिए खुली न रह सके ।

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( iv ) यदि अन्तराल सस्य ( intercropping ) तथा मिश्र सस्य ( mixed cropping ) की पद्धतियों के अनुसरण से मृदा अपरदन में कमी हो सकती है , क्योंकि खेत का अधिक भाग कभी खुला नहीं रहता है , क्योंकि सभी फसलें एक साथ नहीं पकती हैं अत : उनकी एक साथ कटाई नहीं होती हैं ।

( v ) फसलों की कटाई के बाद पौधो की पत्तियों , तनों तथा अन्य घास-फूस से खेतों को ढ़क देने पर भूमि की जलवर्षा के सीधे प्रहार से रक्षा हो जाती है तथा मृदा अपरदन कम हो जाता है । इस क्रिया द्वारा मिट्टियों से वाष्पीकरण द्वारा नमी का क्षय भी घट जाता है ।

( vi ) रासायनिक खादों के पर्याप्त प्रयोग के कारण मिट्टियों की उर्वरता बढ़ती है । इस कारण मिट्टियों के कणों का समूहन ( aggregation ) अधिक होता है । जिस कारण वर्षा के जल का मिट्टियों में अन्त: संचरण ( infiltration ) बढ़ जाता है । परिणामस्वरूप धरातलीय वाही जल में कमी होने से मृदा अपरदन कम होता है ।

( vii ) सक्रिय अवनलिका अपरदन ( rill and gully erosion ) से प्रभावित क्षेत्रों को सक्रिय कृषि एवं चराई से हटा लेना चाहिए , अर्थात् ऐसे क्षेत्रों में खेती करना या चराई करना तत्काल बंद कर देना चाहिए ताकि अपरदन से दुष्पभावित भूमि संरक्षण एवं भूमि सुधार की तकनीकों का प्रयोग किया जा सकें ।

( viii ) विस्तृत पहाड़ी ढालो पर जिन्हें वन विनाश द्वारा साफ कर दिया गया है , वनरोपण द्वारा मृदा अपरदन को सफलता के साथ रोका जा सकता है ।

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यांत्रिक उपाय

मृदा अपरदन की रोकथाम के यांत्रिक उपायों एवं तरीकों के अन्तर्गत जुताई , निराई , गुड़ाई , कृषि आदि की विभिन्न तकनीकों को सम्मिलित किया जाता है । इन तकनीकों का प्रयोग मुख्य रूप से ढ़लुआ भूमियों एवं पहाड़ी ढलानों पर धरातलीय प्रवाह की मात्रा , वेग तथा परिवहन क्षमता को कम करने एवं जल के मिट्टियों में अंत: संचरण को बढ़ाने के लिए किया जाता है । इस कार्य हेतु समोच्च कृषि ( contour farming ) , सीढ़ीदार खेतों का निर्माण ( terracing ) तथा अवनलिका अपरदन की नियंत्रण विधियों का अनुसरण किया जाता है ।

सहबद्ध मेंड़ निर्माण ( tied – ridging ) मिट्टियों के अपरदन को रोकने के लिए एक कारगर यांत्रिक रक्षात्मक उपाय है । इस विद्या के तहत पहाड़ी ढ़ालों की जुताई ढ़ाल की दिशा में आर-पार ( अनुप्रस्थ दिशा में ) की जाती है । जबकि मेंड़ों का निर्माण ढ़ाल की दिशा में तथा जुताई से निर्मित कूँड़ों ( furrows ) के आर – पार किया जाता है । इस क्रिया के फलस्वरूप पहाड़ी ढ़ालों पर स्थित खेत कई छोटी – छोटी बेसिनों में बँट जाते हैं , जिस कारण वर्षा का जल इन बेसिनों में अवरूद्ध हो जाता है । परिणामस्वरूप वाही जल का वेग निहायत कम हो जाता है और मृदा अपरदन रूक जाता है या कम से कम घट तो अवश्यक जाता है ।

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