amliya varsha par nibandh
अम्लीय वर्षा
कोयला , तेल और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाष्म ईधन जब जलाए जाते है तब सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे रसायन पैदा होते हैं । वायु के जलवाष्प और दूसरे रसायनों से मिलकर यह सल्फ्यूरिक अम्ल, नाट्रिक अम्ल तथा सल्फेट और नाइट्रेट जैसे दूसरे हानिकारक पैदा करते हैं । ये अम्लीय प्रदूषक वायु के तरंगों के द्वारा वायुमण्डल में ऊपर जाते हैं और बाद में अम्लीय वर्षा कोहरें और बर्फ के रूप में पृथ्वी पर वापस आते हैं । अम्लीय वर्षा की अवक्षारक प्रकृति पर्यावरण को अनेक प्रकार से हानि पहुँचाती हैं । अम्लीय प्रदूषक सूखे कणों और गैसों के रूप में भी होते हैं और पृथ्वी से वर्षा जब इनकों बहा कर ले जाती है तो ये और भी अधिक अवक्षारक घोल बनाती हैं । इसे अम्लीय अवसाद कहते हैं ।
उत्तरी अमेरिका , यूरोप , जापान , चीन और दक्षिण – पूर्व एशिया में अम्लीय वर्षा से व्यापक हानि होती हैं । अमेरिका में कोयला जलाने वाले बिजली घर लगभग 70 % सल्फर डाइऑक्साइड के लिए जिम्मेदार है । कनाडा मे तेल शोधन , धातु विगलन और दूसरे औद्योगिक कार्य 61 % सल्फर डाइ ऑक्साइड प्रदूषण पैदा करते हैं । मोटर वाहन का धुंआ नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड का प्रमुख स्त्रोत हैं । अम्लीय वर्षा में मौजूद अम्ल संपर्क में आने वाले किसी भी वस्तु में रसायनिक क्रिया कर सकते हैं ।
amliya varsha par nibandh
प्रभाव
अम्लीय वर्षा पृथ्वी के उन पोषक तत्वों को घोल कर बहा ले जाती है जिनकी पौधों को जरूर होती है । यह प्रकृति में मौजूद एल्मुनियम और पारे जैसे विषैले पदार्थो को भी घोल लेती है जो मुक्त होकर जल को प्रदूषित और पौधों को विषाक्त करते हैं ।
पौधे जिस मिट्टी में बढ़ते हैं उनके प्रदूषक तत्वों को हटाकर अम्लीय वर्षा पौधों को अप्रत्यक्ष ढंग से प्रभावित करती है । यह पत्तों की मोटी पर्त में छेद करके तथा भूरे मृत चक्ते पैदा करके पौधों का प्रकाश संश्लेषण प्रभावित करती है । ऐसे पौधे कीड़ों , सूखे और ठंढ़ की मार से अधिक प्रभावित होते हैं । अधिक ऊँचाई पर स्प्रूस और फर के जंगलों को इससे सबसे अधिक खतरे हैं । अम्लीय वर्षा से वनों की अपेक्षा खेतों की फसले कम प्रभावित होती है ।
गिरकर और बहकर नदियों , झीलों , और दलदली भूमियों तक पहुँचने वाली अम्लीय वर्षा उनके पानी को भी अम्लीय बनाती हैं । इससे जलीय परितंत्रों के पौधों और प्राणियों पर पड़ता है ।
अम्लीय वर्षा वन्य जीवन पर दूरगामी प्रभाव डालती हैं । वन्य प्रजाति और प्रतिकूल प्रभाव पूरी खाद्य श्रृंखला को भंग करता है , और अंतत : पूरे परितंत्र को खतरे में डालता हैं । विभिन्न जलीय प्रजातियाँ अम्लीयता के अलग – अलग स्तरो को सह सकती है । जैसे पानी का PH स्तर 6.0 से अधिक हो तो क्लैम और मैफ्लाइ की मृत्यु दर अधिक होती है । मेढ़क अधिक जल को झेल तो सकते हैं पर मैफ्लाइ की संख्या कम होने पर उनकी संख्या भी कम हो सकती है ।
जलीय जीवों पर निर्भर थलचर प्राणी भी प्रभावित हो सकते हैं । अम्लीय वर्षा और सूखे अम्लीय अवसाद से इमारतों , वाहनों तथा पत्थर और धातु की दूसरी वस्तुओं की हानि होती है । अम्ल वस्तुओं को खुरच कर व्यापक हानि पहुँचाता हैं तथा ऐतिहासिक स्मारकों को नष्ट करता है । उदाहरण के लिए , यूनान में पॉर्थेनान और भारत में ताजमहल अम्लीय वर्षा से प्रभावित हुए हैं ।
अम्लीय वर्षा से प्रदूषित जल मनुष्य को सीधे हानि नहीं पहुँचाता लेकिन मिट्टी से निकले विषैले पदार्थ जल की आपूर्ति को प्रदूषित कर सकते हैं । ऐसे जल से पकड़ी गयी मछलियाँ मानव उपभोग के लिए हानिकारक हो सकती है । वायु के दूसरे रसायनो से मिलकर अम्ल नगरों मे धूम कोहरा पैदा करता है जिससे सांस की समस्याएं खड़ी होती हैं ।
उपाय
अम्लीय वर्षा को रोकने का सबसे अच्छा उपाय वायुमण्डल मे सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइडों के उत्सर्जन को रोकना है । बिजलीघरों , वाहनों , और उद्योगों में कम जीवाश्म ईधनों को अपनाना इसका एक रास्ता हो सकता है । उदाहरण के लिए , प्राकृतिक गैस का उपयोग करना जो कोयले से अधिक स्वच्छ होती हैं या कम गंधक वाले कोयले का उपयोग करना । अच्छी कोटि के वाहनों का विकास वायु में जाने वाले प्रदूषको में कमी ला सकता है । कारखानों में जीवाश्म ईधनों के जलाने पर अगर पहले ही प्रदूषक निकल रहे हो तो उनकी चिमनियों में स्क्रबर लगाकर उनकों वायुमंडल में जाने से रोका जा सकता है । स्क्रबर प्रदूषक गैसों पर पानी और चूने का मिश्रण छिड़कर गंधक को सोख लेते हैं ।
कैटेलिक कनवर्टर में गैसे धातु के लेपवाले मनकों पर से गुजरती हैं जो हानिकारक रसायनों को कम हानिकारक बना देते हैं । वायुमंडल में धुंए का प्रभाव कम करने के लिए इनको कारों में लगाया जाता है । अम्लीय वर्षा अगर मिट्टी को प्रभावित करे तो सूखा चूना छिड़कर कर मिट्टी की अम्लीयता को निष्क्रिय किया जाता हैं , इस प्रक्रिया को चूनादारी कहते हैं ।