Girija Kumar Mathur par nibandh
भूमिका
बहुमुखी प्रतिभा के धनी कवि गिरिजाकुमार माथुर ने अपनी साहित्यिक यात्रा की शुरुआत छायावादी संस्कारों से प्रेम और सौंदर्य की प्रेरणा लेकर की। प्रगतिवाद और प्रयोगवाद की वर्तमान भावना, उग्र, ऐतिहासिक मूल्यों और बोध के बीच, उनकी कविता में कुछ मात्रा में यथार्थवाद का निर्माण हुआ है। गिरिजाकुमार माथुर की कविता उथली और अर्थहीन भावुकता के बजाय समकालीन वैज्ञानिक उपलब्धियों और सांस्कृतिक परंपरा से जुड़कर जोश और सुंदरता से भरी है।
जीवन परिचय
गिरिजाकुमार माथुर का जन्म 22 अगस्त 1918 में मध्य प्रदेश के गुना शहर में हुआ था। ये कायस्थ जाति के थे। इनके पिता का नाम श्री देवीचरण माथुर था, जो एक अध्यापक थे। वे साहित्य एवं संगीत के शौकीन थे। वे कविता भी लिखा करते थे।सितार बजाने में प्रवीण थे। माता का नाम लक्ष्मी देवी था, जो एक शिक्षित महिला थी। इनकी आर्थिक दशा सुदृढ्र नहींं थी, फिर भी बालक के विकास के लिए उनके द्वारा शिक्षा-दीक्षा की उचित व्यवस्था की गई।
उत्तर प्रदेश के झांसी में अपनी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा प्राप्त की। सन 1934 में हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की और सन् 1938 में विक्टोरिया कालेज, ग्वालियर से बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण हुए। इसके बाद उन्होंने एम.ए. अंग्रेजी और एल.एल.बी. की डिग्री लखनऊ से प्राप्त की। शुरुआत में उन्होंने कुछ समय वकालत किये। बाद में, उन्होंने दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो के लिए काम किया। 10 जनवरी 1994 में उनका निधन हो गया।
Girija Kumar Mathur par nibandh
कार्य
गिरिजाकुमार 1943 में ‘अज्ञेय ‘ द्वारा संकलित और प्रकाशित ‘तारसप्तक’ में चित्रित सात कवियों में से एक हैं। उनके कार्यों का प्रयोगशीलता यहां देखा जा सकता है। उन्होंने कविता के अलावा एकांकी नाटक, समालोचना, गीत-कविता और शास्त्रीय विषयों के बारे में लिखा है। उन्होंने भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की साहित्यिक पत्रिका ‘गगनांचल’ के संपादन के अलावा कहानियाँ, नाटक और समालोचनाएँ भी लिखी हैं। “हम होंगे कामयाब,” उन्होंने एक भावांतर गीत लिखा, जो एक लोकप्रिय समूह भजन है। उन्होंने ब्रजभाषा में कविता लिखना शुरू किया, लेकिन बाद में, मैथिलीशरण गुप्त के लेखन से प्रेरित होकर, उन्होंने खड़ीबोली में काव्य रचना शुरू कर दिया। Girija Kumar Mathur par nibandh
प्रमुख रचनाएँ
नाश और निर्माण , धूप के धान , जो बंध न सका , पृथ्वीकल्प , शिलापंख चमकीले , साक्षी रहे वर्तमान , भीतरी नदी की यात्रा , मंजीर , छाया मत छूना ।
काव्य – संग्रह :- जन्म कैद (नाटक)
नयी कविता : सीमाएँ और संभावनाएँ (आलोचना)।
नई कविता के कवि गिरिजाकुमार माथुर को रोमांटिक कवि माना जाता है। वे शिल्प की विशिष्टता को पहचानते हुए विषय की विशिष्टता का समर्थन करते हैं। तस्वीर को और अधिक स्पष्ट करने के लिए, वे वातावरण के रंग भरते हैं। उन्होंने मुक्त छंद में ध्वनि सामंजस्य को नियोजित करके बिना तुकबंदी के भी कविता में संगीतमयता को संभव बनाया है। उन्होंने अपने काव्य में दो प्रकार की भाषा का प्रयोग किया है। रोमांटिक कविता में, वह लघु-ध्वनि वाले बोलचाल के वाक्यांशों का उपयोग करते है, जबकि शास्त्रीय-स्वभाव वाली कविताओं में, वह लंबे और गंभीर-ध्वनि वाले शब्दों का चयन करते है।
साहित्यिक विशेषताएँ
◆ गिरिजाकुमार ने अपनी काव्य लेखन की शुरुआत 1934 ई. में ब्रजभाषा के परम्परागत कवित्त – सवैया से किये।
● माथुर जी की रचना का प्रारम्भ द्वितीय विश्वयुद्ध की घटनाओं से उत्पन्न प्रतिक्रियाओं से युक्त है।
◆ माथुर जी की रचनाएँ भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन से प्रभावित रही।
● कविता के अलावा माथुर जी एकांकी नाटक , आलोचना , रीति-काव्य तथा शास्त्रीय विषयों आदि पर भी लिखते रहे ।
◆ भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद की साहित्यिक पत्रिका ‘ गगनांचल ‘ का संपादन किया।
● उनका ही लिखा एक गीत “ हम होंगे कामयाब ” समूह गान के रूप में अत्यंत लोकप्रिय है ।
◆ उनकी कविताओं से मनुष्यता की , मातृभाषा की सुगंध आती है ।
भाषा शैली
◆ उनकी कविता में भाषा के दो रंग हैं। रोमांटिक कविता में, वह छोटे, बोलचाल के वाक्यांशों का उपयोग करते है; क्लासिक-मिज़ाज के काव्यों में, वह लंबे, गंभीर-ध्वनि वाले शब्दों का उपयोग करते है।
● माथुर जी प्रयोगवाद और प्रगतिशील विचारधारा के कवि थे, जिनकी रचनाओं में भाषा में नये-नये चित्र और ध्वनियों का प्रयोग हुआ है।
◆ उनकी काव्य शैली मौलिक होते हुए भी आकर्षक और प्रवाहमयी है। अलंकारों का उचित उपयोग हैं। प्रसाद और मधुर रस के संयोजन का विशेष प्रभाव हुआ है।
पुरस्कार
◆ “मैं वक्त के हूँ सामने” के लिए 1991ई. में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
● 1993 ई. में के ० के ० बिरला फ़ाउंडेशन द्वारा दिया जाने वाला प्रतिष्ठित व्यास सम्मान मिला।
◆ शलाका सम्मान
● व्यास सम्मान