रामवृक्ष बेनीपुरी पर निबंध | rambriksh benipuri par nibandh

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जीवन परिचय 

रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म 23 दिसंबर, 1899 को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम फुलवंत सिंह था। जब वे छोटे थे , तब उनके माता-पिता का देहांत हो गया , जिससे वह अपने माता-पिता के स्नेह से वंचित हो गये। तब इनकी मौसी इनको अपने साथ ले गई और इनका पालन-पोषण किया। उन्होंने बचपन से ही रामचरितमानस का पाठ करना शुरू किया, जो बताता है कि अंततः उन्होंने लेखन में रुचि क्यों हासिल की। स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, उन्होंने अपने प्रयासों के लिए किसी भी प्रकार के पुरस्कार को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। बेनीपुरी जी उन लोगों को देखकर बहुत दुखी होते थे जो पद के पीछे भागा करते थे।

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शिक्षा-दीक्षा

यहीं रहकर उन्होंने अपनी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा पूरी की थी। बचपन से ही उनका दुखों का इतिहास रहा है। क्योंकि सबसे गंभीर घटना उनके बचपन के दौरान हुई थी। जब वे 21 वर्ष के थे, तब वे अपनी शिक्षा का कार्य कर रहे थे, तभी उन्होंने गांधीजी के असहयोग आंदोलन के बारे में सुना। हालाँकि, वे गांधीजी के विचारों से बहुत प्रभावित थे, और उन्होंने स्वतंत्रता के लिए अपना अध्ययन कार्य छोड़ दिया और स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े।

कुछ समय बाद, उन्होंने हिंदी-साहित्य सम्मेलन की विशारद परीक्षा उत्तीर्ण की और पत्र-पत्रिकाएँ लिखना शुरू कर दिया । उन्होंने संपादन कार्य भी की। अपने पत्रिकाओं के माध्यम से हमवतन लोगों में देशभक्ति की भावना जगाने के लिए उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। उन्होंने 1931 ई. में समाजवादी पार्टी का गठन किया और इस पार्टी के उम्मीदवार के रूप में वे 1957 ई. में बिहार विधान सभा हेतु चयनित हुए।

वह वास्तव में राष्ट्र की परवाह करते थे और इसे सफल होते देखना चाहते थे। उन्होंने देश की नींव को मजबूत करने की मांग की, जो पूरे ढांचे का समर्थन करती है। भाषा, साहित्य, समाज और देश की समान रूप से सेवा करने के बाद बेनीपुरी जी 7 सितंबर 1968 को इस दुनिया से चले गए।

साहित्यिक परिचय

रामवृक्ष बेनीपुरी जी प्रतिभावान लेखन के प्रबल समर्थक थे। बेनीपुरी जी ने अन्य साहित्यिक विधाओं के बीच किस्से, नाटक, उपन्यास, रेखाचित्र, यात्रा वृतांत, संस्मरण और निबंध लिखे। उन्होंने पंद्रह साल की उम्र में समाचार पत्रों और प्रकाशनों के लिए लिखना शुरू कर दिया था। उनके नेतृत्व में हिन्दी-प्रसार का कार्य बिना किसी रोक-टोक के चलता रहा। बिहार में जब बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन की स्थापना किया गया, तब इसमें इन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया। बेनीपुरी ग्रंथावली का उपयोग उनके पूरे साहित्य को प्रकाशित करने के लिए किया गया। rambriksh benipuri par nibandh

प्रमुख रचनाएँ

कहानी-संग्रह :- चिता के फूल
उपन्‍यास :- पतितों के देश में
नाटक :- अम्‍बपाली, सीता की माँ , राम राज्य
निबन्‍ध-संग्रह :- गेहूँ और गुलाब, मशाल, वन्‍दे वाणी विनायकौ
संस्‍मरण :- मील के पत्‍थर एवं जंजीर की दीवारें
रेखाचित्र :-  लाल तारा , माटी की मूरतें ,
आलोचना :- बिहारी सतसई की सुबोध टिका , विद्यापति पदावली
यात्रा-वृत्तान्‍त :- पैरो में पंख बांधकर , उड़ते चलें
जीवनी :- कार्ल मार्क्स , महाराणा प्रताप , जयप्रकाश नारायण,
सम्‍पादन :- बालक , तरूण भारती , किसान मित्र, कर्मवीर, कैदी, जनता, हिमालय, योगी, नयी धारा,(चुन्नू-मून्नू) अ‍ादि।

भाषा-शैली

रामवृक्ष बेनीपुरी की भाषा शैली काफी अद्वितीय है। इनकी भाषा व्यवहार के अनुरूप है और शब्दों का चयन उचित रूप से दिखाई देता है। उनकी रचनाओं में विषय के अनुरूप तत्‍सम, तद्भव, देशज, उर्दू, फारसी आदि शब्‍दों का सटीक प्रयोग हुआ है। जिसे देख सभी आश्चर्य में पड़ जाते थे। इसी कारण से उन्हें ”कलम का जादूगर” भी कहा जाता है।

मुहावरे एवं कहावतों का प्रयोग भी इन्‍होंने बखूबी किया है। लाक्षाणिकता, व्‍यंग्‍यात्‍मकता, ध्‍वनयात्‍मकता, सौष्‍ठव, प्रतीकात्‍मकता एवं आलंकारिकता के कारण इनकी भाषा में अद्भुत लालित्‍य, प्रवाह, अर्थ-गाम्‍भीर्य उत्‍पन्न हुआ है। छोटे-छोटे वाक्‍य गहरी तीखी चोट करते हैं।
रामवृक्ष बेनीपुरी की रचनाओं में विषय के अनुरूप वर्णनात्‍मक , भावात्‍मक , आलोचनात्‍मक,  प्रतीकात्‍मक , आलंकारिक , वर्यग्‍यात्‍मक ,  चित्रात्‍मक शैली प्रधान है।

उपसंहार

रामवृक्ष बेनीपुरी एक महान विचारक , चिंतन-मनन करने वाले क्रांतिकारी , साहित्यकार , संपादक एवं पत्रकार थे। बेनीपुरी जी एक सच्चे देशभक्त और क्रांतिकारी थे। वे हिंदी साहित्य के शुक्लोत्तर युग के प्रमुख साहित्यकार थे।

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