कुपोषण पर निबंध | hindi essay on Malnutrition

kuposhan per nibandh

भूमिका

कुपोषण की समस्या एक विश्वव्यापी समस्या है और हम केवल विकासशील देशों में कुपोषण की स्थिति पर नजर डालें तो आंकड़े चौंकाने वाले सामने आते हैं। इन विकासशील देशों में खासकर बच्चे कुपोषण के अधिक शिकार हैं। यदि हम भारतवर्ष की समस्या को देखें तो इस स्थिति यहाँ भी निराशाजनक ही है। यहाँ करीब 68% बच्चों का सामान्य से कम भार है। इसका मुख्य कारण कुपोषण ही है जो पौष्टिक व संतुलित भोजन न मिलने के कारण होता है।

कुपोषण का अर्थ

साधारण शब्दों में संतुलित भोजन का अभाव ही कुपोषण कहा जाता है। जब हमारे भोजन में ऐसे तत्वों की कमी होती है जो शरीर की वृद्धि व रक्षा में सहायक होते हैं तो उसे अपौष्टिकता या कुपोषण कहते हैं। संपूर्ण रुप से संतुलित आहार तथा भोजन के अभाव में उत्पन्न शारीरिक दुर्बलता को ही कुपोषण कहा जाता है।

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कुपोषण के कारण

अज्ञानता:- भारत में अधिकांश माता-पिता ग्रामीण अंचल में रहते हैं इसलिए सुविधा होते हुए भी उन्हें संतुलित व पौष्टिक भोजन क्या होता है? उस के आवश्यक तत्व कौन से हैं और शरीर को कैसे भोजन की आवश्यकता है? इन सब बातों का ज्ञान नहीं होने के कारण वे अपने तथा अपने बच्चों के लिए पोषक व संतुलित आहार का प्रयोग नहीं कर पाते और जो कुछ मिलता है या अपनी इच्छा स्वाद के अनुसार भोजन करते हैं इससे कुपोषण की स्थिति आ जाती है।

निर्धनता:- निर्धनता मानव के लिए अभिशाप है जिस देश में दोनों समय भरपेट अनाज भी नहीं मिल पाता, वहां सभी के लिए पौष्टिकता की बात करना तो कल्पना मात्र है। निर्धनता के कारण माता-पिता अपने बच्चों को संतुलित भोजन उपलब्ध कराने में असमर्थ होते हैं और बच्चे कुपोषण का शिकार हो जाते हैं।

मिलावटी खाद्य पदार्थ:- व्यापारियों और भोजन विक्रेताओं की स्वार्थपूर्ण वृति के कारण हमारे देश में शुद्ध भोजन नहीं मिलता। अधिक मुनाफे के लिए पदार्थों में घटिया और हानिप्रद चीजें मिला दी जाती है। ऐसे खाद्य पदार्थों में उचित मात्रा में आहार के पौष्टिक तत्वों का अभाव होता है इसलिए बच्चों को कुपोषण का शिकार होना पड़ता है।

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अन्य कारण

पर्याप्त व उचित भोजन की कमी :- प्रत्येक व्यक्ति की भोजन की आवश्यकता उसकी आयु, लिंग व व्यवसाय के अनुसार भिन्न भिन्न होती है। जब कोई व्यक्ति अपनी व्यवसाय, लिंग या आयु के अनुसार लंबी अवधि तक संतुलित भोजन नहीं लेता तो उसके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और वह धीरे-धीरे कुपोषण का शिकार हो जाता है।

अधिक कार्यभार :- अधिक व कठिन कार्य करने वाले व्यक्ति को अधिक कैलोरी की आवश्यकता होती है। लेकिन प्राय: देखा गया है कि किसान व मजदूर लोग जो काफी मेहनत का कार्य करते हैं। वे सामान्य भोजन ही लेते हैं जिससे शारीरिक आवश्यकताएं पूरी नहीं हो पाती। अतः ऐसे लोग प्रायः कुपोषण के शिकार हो जाते हैं।

गर्भवती स्त्री के उचित आहार में कमी:- जो स्त्री माँ बनने वाली है या बच्चे को अपना दूध पिलाती है,यदि उसे उचित व संतुलित भोजन नहीं मिलता, तो उसका असर उसके बच्चे पर पड़ता है क्योंकि बच्चा अपना भोजन माँ के गर्भ में या पैदा होने के बाद उसके दूध से ही प्राप्त करता है। ऐसे समय में यदि माँ को संतुलित आहार की कमी हो जाती है तो माँ और बच्चा दोनों ही कुपोषण के शिकार हो जाते हैं।

कुपोषण के कुप्रभाव

● रोगों का शिकार हो जाना
◆ शरीर का भार कम होना
● एकाग्रता में कमी आ जाना
◆ मानसिक तनाव का बढ़ जाना
● सारी खुर्जा में कमी होना
◆ शारीरिक विकास में कमी होना
● मांसपेशियों का ढीला होना
◆ अत्यधिक थकान महसूस करना

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कुपोषण को दूर करने के उपाय

कुपोषण से बचने के लिए संतुलित भोजन ही मुख्य आधार है अतः इसमें शरीर को भोजन से प्राप्त होने वाली सभी तत्व आवश्यकता अनुसार होनी चाहिए।

व्यक्ति के जीवन में शारीरिक क्रियाकलाप, मानसिक कार्य, मनोरंजन, नींद, विश्राम आदि सभी का उचित स्थान होना चाहिए। केवल काम या केवल आराम दोनों घातक है। इसके अतिरिक्त नियमित भोजन समयानुसार करना चाहिए तथा शराब, तंबाकू तथा हानिकारक पदार्थों से दूर रहना चाहिए। क्योंकि इन व्यर्थ पदार्थों में कोई पोषक तत्व नहीं होता, उल्टा यह पदार्थ आपकी नियमित तथा संतुलित जीवन को भी प्रभावित करते हैं।

निष्कर्ष

निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि स्वास्थ्य विज्ञान के नियमों के पालन से ही कुपोषण से बचाव किया जा सकता है। इसके अंतर्गत व्यक्तिगत सफाई एवं स्वच्छता पर पर्याप्त निद्रा व आराम, उचित आसन संबंधी नियम आदि का ज्ञान होना आवश्यक है। साथी ही निरंतर संतुलित आहार की जरूरत है।

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