sharirik shiksha par nibandh
भूमिका
शारीरिक शिक्षा के अर्थ को समझने से पहले यह जानना आवश्यक है कि शिक्षा का अर्थ क्या है ? शिक्षा का सामान्यतः अर्थ हम स्कूल , कॉलिज व विश्वविद्यालयों में पुस्तकों द्वारा दिये जाने वाले ज्ञान से ही लगाते हैं । यदि इस विधि को ही हम शिक्षा मान लें तो यह शिक्षा की अधूरी और बहुत संकुचित परिभाषा है । शिक्षा वास्तव में कहीं भी ग्रहण कि जा सकती है चाहे यह एक कक्षाकक्ष हो या खेल का मैदान या कोई और जगह और इसी बिना पर हम कह सकते हैं कि व्यक्ति के व्यवहार व मानसिक सोच में अनुभवों द्वारा लाया गया परिवर्तन ही शिक्षा है ।
शारीरिक शिक्षा का अर्थ
शारीरिक शिक्षा का शाब्दिक अर्थ तो है “शरीर की शिक्षा” परंतु इसका भाव केवल शरीर तक ही सीमित नहीं है। शारीरिक शिक्षा , सामान्य शिक्षा का एक अभिन्न अंग माना गया है और दोनों में अन्तर केवल इतना है कि शिक्षा जहाँ कक्षाकक्ष और प्रयोगशालाओं में दी जाती है वहीं शारीरिक शिक्षा खेल मैदानों व कैंप आदि में दी जाती है । विधि कोई भी हो शारीरिक शिक्षा को भी शिक्षा ही माना गया है जिसमें छात्र मनोरंजनात्मक गतिविधियों द्वारा भाग लेते हुए वांछित दिशा में अपने अनुभवों के आधार पर व्यवहार में परिवर्तन महसूस करता है ।
उद्देश्य
दैनिक जीवन में शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है । शारीरिक शिक्षा छात्र के व्यक्तित्व विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है । यहां कुछ शारीरिक शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की व्याख्या की जा रही है :—
sharirik shiksha par nibandh
शारीरिक विकास
शारीरिक स्वस्थता अपने दैनिक कार्य ओज और सतर्कता के साथ करने की योग्यता है । शरीर के विभिन्न आंगिक संस्थानों को इस प्रकार विकसित करना कि प्रत्येक व्यक्ति उच्चतम सम्भावित स्तर तक जीवित रह सके । यदि मनुष्य के शरीर के विभिन्न तंत्र और संस्थान ठीक कार्य करते हैं तो व्यक्ति ज्यादा बेहतर , दिलचस्पी भरा जीवन जी सकता है और वांछनीय कार्य कर सकता है । शारीरिक स्वस्थता जीवन की परेशानियों तथा तनाव का सामना करने के लिए पर्याप्त सहन शक्ति विकसित करती है और अनुचित थकान अथवा तनावरहित जीवन के सामान्य काम करने के लिए यथेष्ट शक्ति देती है इसलिए शारीरिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य शारीरिक विकास करना है जैसा प्रसिद्ध दार्शनिक प्लेटो ने कहा “ स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन वास करता है । “
स्नायु-मांसपेशियों का विकास
स्नायु मांसपेशी विकास जिन शारीरिक पहलुओं से सम्बन्धित है उनमें शरीर में जागरूकता का विकास , शारीरिक गतिविधियों में परवीणना तथा गामक व स्नायु संस्थानों के बेहतर तालमेल को बनाना आदि है । शरीर की प्रभावी गतिविधियां तभी सम्भव हैं जब शरीर की मांसपेशियाँ और स्नायु संस्थान में सहज सहयोग स्थापित रहता है और वे दोनों संस्थान एक होकर कार्य करते हैं अर्थात उनमें बेहतर तालमेल बना रहने की अवस्था में ही शरीर की गतिविधि बेहतर ढंग से थकान रहित और शारीरिक ऊर्जा को लम्बे समय तक बनाए रखा जा सकेगा । इसके अतिरिक्त स्नायु – मांसपेशी का सही विकास व्यक्ति में आत्म – विश्वास , पहचान, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य का विकास तथा कई अन्य मूल्यों को भी विकसित करता है ।
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ज्ञानात्मक विकास
ज्ञानात्मक विकास , शरीर के बारे में ज्ञान प्राप्त करना तथा उस ज्ञान को समझना व उसकी व्याख्या करने से सम्बन्धित है । ज्ञान व्यक्ति में विज्ञान , मानवता तथा दूसरे अन्य स्रोतों से प्राप्त होता है जो व्यक्ति के स्वभाव की व्याख्या करता उसकी गतिविधियों का ज्ञान कराता है तथा उन गतिविधियों का व्यक्ति की वृद्धि व विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है , उसकी संस्कृति कैसे प्रभावित होती है , इन सभी बातों की जानकारी हम तभी रख पाते हैं जब हमारा यह पक्ष विकसित हो और शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति में इस ज्ञान का विकास कर उसे अपने आस – पास के वातावरण में ठीक ताल – मेल करने में व अपने आप को उस में समायोजित करने में सफल हो सकें ।
इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य के बारे में ज्ञान जैसे व्यक्तिगत स्वच्छता बीमारियों की रोकथाम , व्यायाम का महत्त्व , संतुलित आहार व उसका शरीर के लिए महत्त्व स्वस्थ आदतें व अभिवृत्ति आदि का ज्ञान शारीरिक शिक्षा के इस उद्देश्य को एक नया अर्थ प्रदान करता है ।
प्रभावात्मक विकास
प्रभावात्मक विकास के उद्देश्य काफी विस्तृत रूप लिए हुए हैं । इन उद्देश्यों के अन्तर्गत , सामाजिक , भावात्मक तथा प्रभावात्मक उद्देश्य आते हैं । सामाजिक विकास के उद्देश्य व्यक्ति की व्यक्तिगत समायोजन सामूहिक व समूह में समायोजन व समुदाय के मेम्बर के नाते समाज में समायोजन में सहायता करते हैं । शारीरिक शिक्षा कार्यक्रम सबसे अच्छे ऐसे अवसर प्रदान करता है जिनके माध्यम से हम इन गुणों का विकास कर सकते हैं । ये प्रोग्राम व्यक्ति में नेतृत्व के गुणों का भी विकास कर सकते हैं । शारीरिक शिक्षा कार्यक्रम के क्षेत्र में बच्चे एक – दूसरे के सम्पर्क में आते हैं और वे परिस्थितियों अनुरूप समायोजन करते हैं । इस तरह उनमें मित्रता , खेल भावना , संयम , सम्मान , सहयोग , सहानुभूति , धैर्य नैतिकता आदि गुणों का विकास होता है ।
दूसरा प्रभावात्मक विकास के उद्देश्य के अन्तर्गत व्यक्ति का भावात्मक विकास करना भी है । इस के अन्तर्गत मनुष्य में द्वेष , ईर्ष्या , घृणा , आशा – निराशा प्रसन्नता , दुख , क्रोध , कामुकता , आश्चर्य आदि अनेक भावनाएं या संवेग होते हैं , जो कि व्यक्तित्व के लिए एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं लेकिन इनकी अधिकता हानिकारक होती है क्योंकि इन पर यदि नियन्त्रण नहीं किया आए तो व्यक्ति असामान्य हो जाता है । शारीरिक शिक्षा का कार्यक्रम इन संवेगों का विकास भी करते हैं तथा इन पर नियन्त्रण करना भी सीखाते हैं ।
चरित्र – निर्माण
अच्छा चरित्र मनुष्य का आभूषण होता है , अच्छे चरित्र के बल पर ही मनुष्य समाज में प्रतिष्ठा तथा जीवन में उन्नति के शिखर पर पहुंचता है । शारीरिक शिक्षा न केवल शरीर का विकास करती हैं , अपितु मनुष्य के चरित्र का निर्माण भी करती है । इसके द्वारा मनुष्य प्रेम , सहयोग , अनुशासन सदाचार नैतिकता , समायोजन , सम्मान जैसे सद्गुणों को प्रभावित ढंग से ग्रहण कर अच्छे चरित्र का निर्माण कर सकता है ।
सांस्कृतिक उद्देश्य
संस्कृति शब्द का अर्थ शारीरिक गतिविधियों के माध्यम से मानवीय अनुभव को समृद्ध करना है । इसी अनुभव से अपने परिवेश को अच्छी तरह से समझा और सराहया जा सकता है , सांस्कृतिक उद्देश्य में निम्न बातें आती हैं – खेलों की तकनीकों , कौशलों तथा रणनीतियों को समझने तथा सराहने की योग्यता का विकास संगीत लय तथा फुरसत के समय के लिए तैयारी तथा शरीर के गठन को ठीक कर मनोबल को सुधारना । अतः हमारी खेल संस्कृति का संरक्षण व स्थानान्तरण शारीरिक शिक्षा के उद्देश्यों का एक हिस्सा हैं ।
राष्ट्रभक्ति की भावना का विकास
शारीरिक शिक्षा का मुख्य व महत्त्वपूर्ण उद्देश्य व्यक्ति के अन्दर राष्ट्रभक्ति की भावना जाग्रत करना है । शारीरिक शिक्षा से सम्बन्धित ऐसे अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है जैसे राष्ट्रीय सेवा योजना ( N.S.S. ) राष्ट्रीय खेलकूद योजना ( N.S.O. ) राष्ट्रीय कैडेट कोर ( N.C.C. ) गर्लगाइड तथा सकाउटिंग इत्यादि।
निष्कर्ष
अतः उपरोक्त उल्लेखिए उद्देश्यों के सारांश के रूप में यह कहा जा सकता है कि शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य एक चरित्रवान , स्वस्थ , कर्मठ , दृढ़संकल्पी , सदाचारी , प्रयत्नशील तथा महान व्यक्तित्त्व वाले नागरिक का निर्माण करना है ।