भीष्म साहनी पर निबंध | bhishm Sahni par nibandh

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जीवन परिचय

स्वातंत्र्योत्तर उपन्यासों में भीष्म साहनी जी का स्थान अग्रगण्य है । स्वतंत्रता के बाद छट्ठे दशक के वे सिद्धहस्त उपन्यासकार , नाटयककार एवं कहानीकार है । साहनी जी हिन्दी के आधुनिक साहित्य में बर्हिमुखी प्रतिभाशाली कलाकार एवं साहित्यकार है । गुण और परिमाण दोनों ही दृष्टियों से हिन्दी के आधुनिक साहित्य में उनको महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है । भीष्म जी अच्च दर्ज के कलाकार व साहित्यकार भी है । उन्होंने प्रेमचंद बाद आदर्श और यथार्थ का स्पष्ट चित्रण करते हुए समकालीन मूल्यों का लेखा – जोखा एक संवेदनशील गहराई के साथ प्रकट किया हैं ।

जन्मतिथि तथा जन्मस्थान

हिन्दी साहित्य के बहुमूल्य प्रतिभा के रूप में साहनी जी प्रतिभा संपन्न व्यक्तित्व को लेकर अवतरित हुए थे । भीष्म साहनी जी का जन्म तब हुआ था जब भारत बर्मा, पाकिस्तान एक अलग देश नहीं बने थे और रावलपिंडी उस समय एक प्रसिद्ध शहर था। जिसकी कीर्ति चारो ओर फैली हुई है। 8 अगस्त 1915 ई० को इसी शहर में साहनी परिवार में भीष्म साहनी का जन्म हुआ था।

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माता – पिता

उनके पिताश्री हरबंसलाल साहनी ने अपनी जीविका के उपार्जन के लिए नोकरी की और उसके बाद स्वतंत्र व्यवसाय के क्षेत्र में प्रविष्ट हुए । उन्होंने बहुत गरीबी में दिन गुजारे थे किंतु अपने मेहनत के बल पर धन सम्पत्ति कमाए । उनके पिता आर्य समाज के जाने माने और कट्टर कार्यकर्ता थे । वे एक समाज सुधारक भी थे ।

श्री हरबंसलाल साहनी के पास विभिन्न कारखानों की एजेंसियाँ थी । वे कपड़े के व्यापारियों से आर्डर लेकर कारखाने दारों को भेजते और माल आ जाने पर उन्हें कमीशन प्राप्त होता था । ये उनका व्यवसाय था । जिसे भीष्म जी के बड़े भाई बलराज साहनी और बाद में स्वयं भीष्म साहनी ने भी कुछ दिन यह कार्य किया ।

श्री हरबंसलाल साहनी की शिक्षा उर्दू और फारसी में हुई। उन्होंने कभी हिंदी का अध्ययन नहीं किया था और न ही उन्हें संस्कृत का ज्ञान था। फिर भी वे हिन्दी भाषा के कट्टर समर्थक थे। श्रीमती भीष्म साहनी की माता लक्ष्मी देवी एक धार्मिक महिला थीं। वह कई मायनों में अपने पति श्री हरबंसलाल साहनी जी से भिन्न थीं। वह अधिक आत्मनिर्भर थी। वह कई बार अपने पति के साथ आर्य समाज के व्यवहार की मुखर विरोधी थीं। श्रीमती लक्ष्मी देवी, भीष्म साहनी की माता, उनके पिता हरबंसलाल साहनी से अधिक दृढ़ निश्चयी महिला थीं।

परिवार

भीष्म साहनी जी के बड़े भाई बलराज साहनी जिनसे वे दो साल छोटे थे । परिवार में उनसे बड़ी पाँच बहनें थी । भीष्म जी की शादी 28 वर्ष की आयु में हुई थी । पत्नी का नाम शीला देवी था , जिन्होंने भी एम० ए० तक अध्ययन किया था । उनकी दो संतानें जिसमें पुत्र का नाम वरूण है और पुत्री का नाम कल्पना है ।

बचपन

भीष्मजी का बचपन एक होनहार लडके के रूप में व्यतीत हुआ है । भीष्मजी से बड़ी पाँच बहनें और एक भाई बलराज जी थे । बलराज पाँच बहनों के बाद जन्मे थे । घर में भीष्म जी सबसे छोटी संतान होने के कारण उन्हें माता – पिता का प्यार भी अधिक मिला था । बाल्य जीवन की सुमधुर यादें वह भूल नहीं सके । अपने सुनहरे बचपन को याद करते हुए उन्होंने लिखा है । भीष्म जी बचपन में बहुत बीमार रहते थे । बीमारी के कारण कई दिनों तक वह बेड में ही पड़े रहते थे ।

शिक्षा

भीष्मजी की प्रारंभिक शिक्षा रावलपिंडी में हुई । एक औसत दर्जे के विद्यार्थी के रूप में वह जाने जाते थे । वह अपनी पढ़ाई के संबंध में स्वयं कहते ” में पढ़ाई में अच्छा था , हालाकि उत्कृष्ट नहीं था । आठवीं जमात में जिले में चौथे नंबर पर आया , जिस के लिए मुझे मैडल मिला । 10 वीं स्कूल तक की शिक्षा उनकी रावलपिंडी में ही हुई । 1933 ई० में इंटर परीक्षा उतीर्ण करने के पश्चात वह बी० ए० की शिक्षा लेने लाहौर चले गये ।

उन्होंने 1937 ई० में एम० ए० अंग्रेजी विषय के साथ की , बाद में पंजाब विश्व विद्यालय से अंग्रेजी में ही पी० एच० डी० की उपाधि भी प्राप्त की । पंजाबी भीष्म जी की मातृभाषा है। वह एक अंग्रेजी साहित्य शिक्षक थे। लेकिन हिंदी भाषा में लेखन करते थे । इन भाषाओं के अलावा, रूसी, उर्दू और फ़ारसी सहित कई अन्य भाषाओं पर उनका पूर्ण नियंत्रण था।

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प्रेरणास्त्रोत

भीष्मजी ने बचपन से ही अंग्रेजी , संस्कृत एवं उर्दू की शिक्षा प्राप्त की थी । साहनीजी की बुआजी की बेटी सत्यवर्ती हिन्दी में लिखती थी । उनके जीजाजी चंद्रगुप्त विद्यालंकार और बडे भाई बलराज साहनी की भी छोटी – बड़ी कहानियाँ अखबारों में छपा करती थी । इन सब स्थितियों ने भीष्मजी को हिन्दी के प्रति अधिक आकर्षित किया और उन्होंने हिन्दी में लिखता शुरू किया ।

कुशल अभिनेता

भीष्मजी एक सशक्त अभिनेता के रूप में भी जाने जाते हैं । उनके बड़े भाई बलराज साहनी फिल्म जगत के सुप्रसिद्ध कलाकार थे । भीष्मजी ने भी कई अच्छे नाटको में अभिनय किया है और उसके साथ कुछ खास फिल्में भी की है । भीष्मजी ‘ इप्टा ‘ कंपनी से लंबे अर्से तक जुड़े रहे हैं । भीष्मजी ने स्थानीय नाटक मंडली की स्थापना भी की थी । भीष्मजी का अभिनय के प्रति लगाव बचपन से रहा । नाटक की दुनिया उन्हें बहुत आकर्षित करती रही है ।

उनकी चर्चित फिल्मों व सिरियल्स जिन में उन्होंने अभिनय किया है वे निम्न हैं :
(1) सईद मिर्जा के निर्देशन में बनी फिल्म ‘ मोहन जोशी हाजिर हो। ‘
(2) गोविंद निहलानी के निर्देशन में बनी सिरियल ‘ तमस ।’
(3) ‘ बसंती ‘ पर भी रंजीतकपूर द्वारा निर्देशित धारावाहिक को दिल्ली दूरदर्शन से प्रसारित किया गया।
वह एक संवेदनशील अभिनेता भी थे , परन्तु अभिनय प्रतिभावाले पक्ष को उन्होंने प्राथमिकता नहीं दी । वह एक जागरूक कलाकार थे ।

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पुरस्कार एवं उपलब्धियाँ

भीष्मजी ने कभी यश , ख्याति पुरस्कार की कामना से कलम नहीं चलाई । वे ‘ राष्ट्रीय प्रगतिशील लेखक महासंघ ‘ के महासचिव रह चुके हैं । उन्हीं निर्देशन से पूरे देशभर में ‘ राष्ट्रीय प्रगतिशील लेखक महासंघ की सैंकडों इकाइयाँ सक्रिय हो गई । कुछ विशेष पुरस्कार इस प्रकार से है :-

शिरोमणि लेखक पुरस्कार – (1975 ई०)
‘ तमस ‘ उपन्यास पर साहित्य अकादमी पुरस्कार – (1975 ई०)
अफ्रो – एशियायी लेखक संघ की और से ‘ लोट्स ‘ पुरस्कार – (1980 ई०)
दिल्ली साहित्य कला परिषद द्वारा सम्मानित – (1980 ई०)
‘ बसंती ‘ उपन्यास पर उत्तरप्रदेश हिन्दी – संस्थान से पुरस्कृत – (1985 ई०)
हिन्दी – उर्दू साहित्य पुरस्कार ( लखनऊ ) – (1990 ई०)
‘ मय्यादास की माड़ी ‘ उपन्यास के लिए हिन्दी अकादमी दिल्ली से पुरस्कृत – (1990 ई०)
अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा संस्थान ( हैदराबाद ) द्वारा मानद ‘ डॉक्टरेट ‘ की उपाधि – (1998 ई०)
राष्ट्रपति द्वारा ‘ पदमभूषण ‘ अलंकरण – (1998 ई०)

भीष्म साहनी जी के नाटक ‘ हानूश ‘ कबिरा खड़ा बाजार में तथा उपन्यास ‘ सरोखे ‘ आदि के लिए भी उन्हें कई पुरस्कार मिले हैं ।

निधन

नौ जुलाई को दुरदर्शन पर समाचार था हिन्दी लेखक भीष्म साहनी गंभीर रूप से बीमार , अस्पताल में भर्ती हुए । फिर 11-7-03 शाम को समाचार सुना भीष्म साहनी जी नहीं रहे । अपनी आखिरी जाम अंतिम उपन्यास ‘ निलू निलिमा निलोफर ‘ एवं अपनी आत्मकथा ‘ आज के अतीत ‘ शीर्षक से प्रकाशित करके हमेशा के लिए बिदा हो गये ।

इस प्रकार निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं कि वे ऐसे लेखक हैं जिनमें किसी तरह का काम्प्लेक्स नहीं दिखाता । वे किसी से छीनते या ईर्ष्या करते नजर नहीं आते । उनमें संगठिक धैर्य और उदारता मौजूद है । वे एक ऐसे कलाकार है जिसकी कथनी और करनी में कोई अन्तर नहीं है । भले ही हर कदम नई चुनौतियों मुँह फाड़े उसके सामने खड़ी रही । उस साहनी पुरूष ने इन चुनौतियों के आगे घूटने नहीं टेके , समझौता नही किया परंतु इनसे शक्ति प्राप्त कर निरंतर संघर्ष के पथ पर आगे बढ़ते रहें ।

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कृतित्व

भीष्म साहनी जी ने हिन्दी साहित्य की महत्त्वपूर्ण सभी विधाओं यथा कहानी , उपन्यास , नाटक एवं अनुवाद पर अपनी लेखनी का जादू बिखेरा है । बहुआयामी अपनी कलात्मक प्रतिभा का परिचय देनेवाले भीष्मजी अत्यंत मृदुल , बिनम्र किन्दु सिद्धांत प्रिय व्यक्तित्व के मालिक है । विचारों में मार्क्सवादी साहनी लेखन में मानवतावादी है ।

कहानी संग्रह

भाग्यरेखा – (1953 ई०)
पहला पाठ – (1956 ई०)
भटकती राख – (1966 ई०)
पट्टरियाँ – (1973 ई०)
वाड़चू – (1978 ई०)
शोभायात्रा – (1981 ई०)
निशाचर – (1983 ई०)
पाली – (1989 ई०)
इसके अतिरिक्त ‘ मेरी प्रिय कहानी ‘ , ‘ प्रतिनिधि कहानियाँ ‘ और हिन्दी कहानी संग्रह ( संपादन ) भी प्रकाशित हो चुके हैं । इनमें बहुत सी ऐसी कहानियाँ है जो संग्रह के पूर्व विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है ।

उपन्यास

झरोखे – (1967 ई०)
कड़ियां – (1970 ई०)
तमस – (1973 ई०)
बसंती – (1980 ई०)
मय्यादास की माड़ी – (1988 ई०)
कुंतो – (1993 ई०)
नीलू नीलिमा नीलोफर – (2000 ई०)

नाटक

हानूश- (1977 ई०)
कबीरा खड़ा बाजार में- (1981 ई०)
माधवी – (1984 ई०)
मुआवजे- (1992 ई०)

निष्कर्ष

भीष्म साहनी ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों को कथा में ढालकर हिन्दी साहित्य को अत्यधिक सम्पन्न किया है । वे सफल कहानीकार , उपन्यासकार एवं नाटककार होने के साथ एक चिन्तक भी हैं । जिन्दगी से उन्होंने सच्ची घटनाएँ उठाई और जिन्दगी के विभिन्न पहलुओं को वे न सिर्फ गहराई से आंकने में सफल हुए , बल्कि समकालिन भारतीय साहित्य की कुछ सर्वाधिक जीवंत कृतियाँ भी दे सके । मर्क्सवाद ने साहनी को आन्तराष्ट्रीय भाईचारे के समर्थक और अनुयायी बनाया है । भीष्म साहनी को प्राप्त सम्मान एवं पुरस्कार वही है कि वह पाठकों के दिल में बसे हैं ।

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