sainik shiksha per nibandh
भूमिका
शिक्षा के अनेक रूप होते हैं। वह चाहे किसी भी रूप और प्रकार की हो , उसका अपना विशेष उद्देश्य और महत्व हुआ करता है। अन्य विषयों की शिक्षा के समान ही सैनिक शिक्षा का महत्व भी अंकित किया जाता है। देश की सीमाओं की रक्षा के अतिरिक्त देश की आन्तरिक व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए भी सैनिकों की आवश्यकता होती है। पाकिस्तान ने जब 1948 में कश्मीर पर आक्रमण किया , फिर 1965 तथा 1971 में भारत पर आक्रमण किया , तो हमारे सैनिकों ने ही शत्रुओं के दाँत खट्टे किये। इस प्रकार सैनिकों ने ही चीनियों को भी 1962 में भारत की पवित्र भूमि पर आगे बढ़ने से रोका। देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाज़ी तक लगा दी। इससे सैनिक जीवन और शिक्षा का महत्व तो स्पष्ट है ही , उसको आवश्यकता भी स्पष्ट है।
सैनिक शिक्षा की आवश्यकता
किसी भी कार्य में सफलता तभी मिल सकती हैं , जब हमें उस कार्य के लिए विधिवत शिक्षा दी गयी हो। सेना भी विदेशी आक्रमण के समय प्रतिरक्षा का कर्तव्य तभी सुचारु रूप से निभा सकती है , जब उसके सदस्यों को युद्ध के नवीनतम उपलब्ध तकनीक की , बन्दूक से निशाना लगाने की , टैंकों के संचालन की तथा अनुशासन में रहने की शिक्षा दी गयी हो। पाकिस्तान के पास अमरीका द्वारा भेजे गये पैटन टैंक थे , किन्तु पाकिस्तानी सैनिकों की सैनिक शिक्षा अधूरी होने के कारण वे उनका ठीक प्रकार से प्रयोग नहीं कर सके , अतएव उन्हें मुँह की खानी पड़ी।
निस्संदेह भारतीय सैनिकों की शिक्षा पर्याप्त संतोषजनक है , तथापि नित्य प्रति परिवर्तमान युद्ध – विधा के अनुरूप अभी हमें कुशलता की अनेक सीढ़ियाँ पार करनी हैं। अतः देश में सैनिक शिक्षा के व्यापक प्रसार की आवश्यकता है। विशेषकर इसलिए कि चीन और पाकिस्तान जैसे कुछ देश भारत को कुचल देने की कुटिल योजना बनाते रहते हैं। ऐसी परिस्थिति में देश के प्रत्येक स्वस्थ नागरिक के लिए सैनिक शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए। sainik shiksha per nibandh
योग्य सैनिकों का निर्माण
सेना को तीन डिवीजनों में बांटा गया है: जल सेना, थल सेना और वायु सेना। सेना के इन तीन क्षेत्रों में शिक्षा प्रदान करने से ही सैन्य शिक्षा पूरी की जा सकती है। भारत किसी पर हमला नहीं करना चाहता, लेकिन हम पर हमला होने की स्थिति में एक सैन्य रक्षात्मक तंत्र होना चाहिए। यह शिक्षा केवल सैनिकों के लिए नहीं , अपितु देश के छात्रों को भी देनी चाहिए , क्योंकि देश की रक्षा का उत्तरदायित्व केवल सैनिकों का ही नहीं प्रत्येक नागरिक का हुआ करता है।
विद्यार्थी और स्वस्थ नागरिक सैनिक शिक्षा लेकर द्वितीय रक्षा – पंक्ति का काम बखूबी निभा सकते हैं। इसी कारण अब प्रत्येक भारतीय सिपाही बन गया है। हमारे वर्दीवाले सैनिक दस – बारह लाख के लगभग हैं ; किन्तु बिना वर्दी के सिपाहियों की संख्या करोड़ों है। हमें गाँव – गाँव विदेशी आक्रमण के विरुद्ध सन्नद्ध होना है। बच्चे-बच्चे को अपने मोर्चे पर लड़ना है। इसमें युवक विद्यार्थियों का योग सबसे अधिक हो सकता है। उन्हें सैनिक शिक्षा देकर तैयार किया जा सकता है।
सैनिक शिक्षा के लाभ
सभी नागरिकों के लिए अनिवार्य सैन्य शिक्षा का पहला लाभ यह है कि हर कोई कम से कम अपना बचाव खुद कर सकता है। नियमित सेना केवल कम संख्या में क्षेत्रों में सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होती है। सैनिक शिक्षा का दूसरा साथ यह है कि इससे देश के सैनिक व्यय में अधिक वृद्धि किये बिना ही सैनिकों की संख्या बढ़ायी जा सकती है। यदि छात्र – छात्राओं को तथा अन्य नागरिकों को विद्यालयों तथा अन्य केन्द्रों में पहले से ही सैनिक शिक्षा का अभ्यास करवाया जाये तो आवश्यकता पड़ने पर थोड़े ही समय में वे युद्ध के मोर्चों पर लड़ने के लिए तैयार हो सकते हैं। अन्यथा नये रंगरूटों को सिखाने और कुशल बनाने में कई वर्ष लग जाते हैं।
भले ही हमारी नियमित सेना दस – बारह लाख हो , किन्तु जब करोड़ों लोग सैनिक शिक्षा प्राप्त हों , तो कुछ मास में ही करोड़ों सैनिक तैयार हो सकते हैं। इस रूप में तैयारी हमारी जागरूकता का प्रतीक ही कही – मानी जायेगी। आज की विषम परिस्थितियों में जब पड़ोसी देश उग्रवादी कार्यवाहियाँ कर या उग्रवादियों को सहायता देकर हमारे आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप कर हमारी शान्ति भंग करने पर तुल रहे हैं। इस प्रकार की जागरूकता और भी आवश्यक है। sainik shiksha per nibandh
सैनिक शिक्षा के अन्य लाभ
सैनिक शिक्षा का तीसरा लाभ सीमान्त प्रदेशों में स्पष्ट दिखायी देता है। कई वर्षों के अनुभव से हम भली – भाँति जान चुके हैं कि पाकिस्तानी अपनी सीमा से लगे भारतीय प्रदेशों पर छुटपुट आक्रमण प्रायः ही किया करते हैं। अब तो हमारी ही सहायता से बना छोटा – सा बंगला देश भी इस प्रकार की सरदर्दी पैदा करने लगा है। प्रतिक्षण तो हमारी सैनिक टुकड़ियाँ चप्पा – चप्पा भूमि पर उपस्थित नहीं रह सकती। ऐसी स्थिति में यदि सीमान्त प्रदेशों के नागरिकों को सैनिक प्रशिक्षण देने की व्यवस्था की जाये तो वे आकस्मिक आक्रमणों का जवाब स्वयं देकर शत्रु को पीछे धकेल सकेंगे। यदि वे प्रतीक्षा में रहें कि कब नियमित सैनिक आयें और उनकी रक्षा करें , तो इतने समय में शत्रु गाँव वालों को लूट – मार कर लौट भी जायेगा। इस प्रकार की घटनाएँ सीमांचलों पर अक्सर घटती भी रहती हैं। सैनिक शिक्षा वहाँ बड़ी लाभप्रद साबित हो सकती है।
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निष्कर्ष
सैनिक शिक्षा का एक नैतिक लाभ यह है कि इससे लोगों में अनुशासन बढ़ता है। उनमें समय को परखने की योग्यता का विकास होता है। वे आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता सीखते हैं। नागरिकों में सहयोग और संगठन के साथ – साथ देशभक्ति की भावना जागृत होती है। इसी उद्देश्य के लिए विद्यालयों में एन० सी० सी० तथा नगरों में सहायक सैनिक अर्ध सैनिक बलों का निर्माण किया गया है। इनका और अधिक विकास तथा विस्तार इस उद्देश्य की पूर्ति में और भी सहायक हो सकता है। सजग राष्ट्र और राष्ट्रजन अपनी सैनिक मानसिकता बनाये रखकर हमेशा सुरक्षित रह सकते हैं। अपने राष्ट्र को भी सन्नद्ध – सुरक्षित रख सकने में सहायता पहुंचा सकते हैं।