माँ और मातृभूमि स्वर्ग से भी बड़ी है पर निबंध | mathrubhumi hindi essay

Maa Aur Mathrubhumi Swarg Se Badi Hai per nibandh

भूमिका

संस्कृत साहित्य में एक कहावत बड़े आदर सम्मान के साथ आपस में कही – सुनी जाती है। यह उक्ति इस प्रकार है :-
” जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी। “
इसका अर्थ है — जन्म देने वाली माँ और मातृभूमि स्वर्ग से भी बड़ी या महत्त्वपूर्ण हुआ करती है। यह मानना वास्तव में सत्य है। इसमें जन्म देने वाली माँ और अपनी गोद में खेला तथा खिला – पिला कर बड़ा करने वाली , योग्य एवं महत्त्वपूर्ण बनाने वाली मातृ भूमि के प्रति सम्मान का भाव प्रकट किया गया है। वास्तव में यह कहना बड़ा कठिन है कि माँ और मातृभूमि में कौन बड़ा या कौन महत्त्वपूर्ण है ? दोनों का समान महत्त्व है।

Maa Aur Mathrubhumi Swarg Se Badi Hai per nibandh

हमें जन्म देने वाली माँ का शरीर भी तो धरती माँ को मिट्टी से बना उससे उत्पन्न होने वाले पदार्थों से पल – पुस कर समर्थ बना होता है। इस दृष्टि से धरती या जन्मभूमि – माँ का महत्व ही अधिक प्रतीत होता है। माँ का आधार आश्रय भी तो धरती माँ ही है। लेकिन जहाँ तक हमारे अपने अस्तित्व का प्रश्न है , उसका कारण तो जन्म देने वाली माँ ही है न ! जन्म देने के बाद हम उसी की गोद में पल – पुस कर बड़े होते हैं। उसी का अमृत समान मधुर दूध पीकर ही हम पलते – पुसते और बड़े होते हैं !

वह स्वयं दुख सह कर , भूखी – प्यासी रहकर , रातों में जाग जाग कर अपने बच्चों का पालन करती है। अपने हाथों से मल – मूत्र साफ करती है। स्वयं गीले बिस्तर पर सोकर बच्चों को सूखे स्थान पर सुलाती है। छोटी – बड़ी हर बात का ध्यान रखती है। बड़ी – से – बड़ी मुसीबत सहकर भी बच्चों को कष्ट नहीं होने देती ! ऐसी जन्मदात्री माँ का उपकार भला कोई कैसे भूल सकता है ? उसका ऋण प्राण देकर भी उतार पाना संभव नहीं हुआ करता। हमारे विचार में इन्हीं सब कारणों से माँ का स्थान और महत्त्व स्वर्ग से भी बढ़कर ऊँचा और महान माना जाता है।

Maa Aur Mathrubhumi Swarg Se Badi Hai per nibandh

माँ और मातृभूमि एक-दूसरे के पूरक

जैसे ही बच्चा माँ की गोद से उतर कर धरती पर क़दम रखता है , उसका सीधा संबंध अपने – आप ही मातृभूमि के साथ जुड़ जाया करता है। बच्चे का पालन – पोषण जिन तत्वों से हुआ करता है , पहले तो वे दूध के रूप में जन्म देने वाली माँ के स्तनों से मिलते हैं , फिर जन्मभूमि अर्थात धरती माता के गर्भ से पैदा होने वाले पदार्थों से मिला करते हैं। उनके अभाव में पलना – पुसना तो क्या , जीवित रह पाना ही संभव नहीं हुआ करता। जो पानी पीते हैं , वह भी धरती माता के अन्तराल से उत्पन्न हुआ करता है।

माँ की गोदी से उतरने के बाद बच्चा धरती माँ की गोद में पला करता है। धरती की मिट्टी पर घुटनों के बल रेंग – रेंग कर बच्चा पहले रेंगना और फिर चलना – फिरना सीखता है। उसके बाद बड़ा होने पर वह जितने प्रकार के भी कार्य व्यापार किया करता है , उन सब का आधार धरती माता ही हुआ करती है। यही कारण है कि धरती के साथ मनुष्य का माता के समान ही स्वाभाविक सम्बन्ध जुड़ जाया करता है ! जन्म देने वाली माता के समान धरती के भी मनुष्य का सम्बन्ध माता – पुत्रवत ही हो जाया करता है। यही कारण है कि जिस प्रकार मनुष्य अपनी जन्मदात्री माँ का अपमान नहीं सह सकता , उसी प्रकार धरती माँ का अपमान भी बर्दाश्त नहीं कर पाता ।

जन्म देने वाली माता यदि हमारे अस्तित्व का कारण हैं , तो धरती माता हमारे अस्तित्व की रक्षा के लिए हमें सब प्रकार के साधन , पदार्थ और चेतना देती है। जीवन के खट्टे – मोठे रसों का कारण धरती और वहाँ से उत्पन्न पदार्थ ही हैं। जो धरती हमारे लिए इस प्रकार के सभी साधन प्रदान करके हमारे जीवन को सुखी और स्वस्थ बनाती है , यदि उसे हम स्वर्ग से भी बढ़कर महत्वपूर्ण एवं सुखदायक मानते हैं , तो उस पर कोई अहसान नहीं करते। Maa Aur Mathrubhumi Swarg Se Badi Hai per nibandh

माँ का स्थान सर्वोपरि

भावना की दृष्टि से भी और व्यवहार की दृष्टि से भी संसार में माँ का महत्व सबसे ऊंचा माना जाता है । यही कारण है कि मातृ – सत्ता को देवी का मान और महत्त्व दिया गया है। पुराणों में जो अनेक देवियों के नाम , उनके पूजा – विधान आते हैं , उनमें सभी के लिए ‘ माँ ‘ शब्द का प्रवेश अवश्य हुआ है। हर देवी को माँ कहकर सम्बोधित किया गया है। माँ को शक्ति रूप भी माना गया है। वास्तव में माँ सब प्रकार की शक्ति , श्रद्धा , विश्वास आदि का केन्द्र है। उसके अमृत – समान दूध में जो शक्ति है , वह संसार के अन्य किसी भी पदार्थ में नहीं है। आरम्भ से ही शक्ति – रूपिणी माँ अपनी सन्तानों की रक्षा करती आ रही है। उसका पार पा सकना नितान्त कठिन एवं असम्भव है। माँ का वक्षस्थल और हृदय धरती के समान ही विशाल और उदार हुआ करता है।

जैसे धरती को हम काटते हैं , खोदते हैं , उस पर दौड़ते – भागते हैं , यहाँ तक कि विस्फोटक पदार्थों और बनों से उसका हृदय फाड़ कर टुकड़े – टुकड़े कर देते हैं , फिर भी वह कभी उफ तक नहीं करती। कभी शिकायत का एक शब्द तक नहीं कहती। कभी रूठती या नाराज नहीं होती। ऐसा अत्याचार करने के बाद भी हमें सभी प्रकार के फल – फूल , अनाज तथा आवश्यकताओं का सारा सामान एक – सी ममता के साथ प्रदान करती रहती है। ठीक उसी प्रकार जन्म देने वाली माँ का हृदय भी हुआ करता है। बच्चे उसे लाख भला – बुरा कहते रहें , उसका कहना न मानें , उसे दुत्कारें – फटकारे तब भी वह अपनी सन्तानों के लिए हमेशा शुभकामनाएँ ही किया करती है। भागकर छाती से लगा लेती है।

Maa Aur Mathrubhumi Swarg Se Badi Hai per nibandh

अपने दुखी और अवसन्न बेटे को आगे बढ़कर स्नेह – ममता के आंचल में छिपा लिया करती है। फिर यदि जननी और जन्मभूमि को स्वर्ग से बड़ा कहा जाता है , तो उचित ही है। याद रखने वाली बात है कि जिस प्रकार घर – परिवार की नींव जन्म देने वाली माँ से पड़ती है , उसी प्रकार देश , राष्ट्र , समाज और संस्कृति विशेष की नींव जन्मभूमि से पड़ा करती है। माँ सारे घर – परिवार की देख – भाल करती है , तो धरती देश , राष्ट्र , समाज – संस्कृति आदि को आधार देकर उसकी देख – भाल और सुरक्षा का कारण बना करती है।

तभी तो कहा जाता है कि अपनी माँ का मान और महत्त्व वही व्यक्ति करता या कर सकता है कि जो अपनी धरती से प्यार करता , उसके प्रति सम्मान का भाव रखता है। इसी प्रकार अपनी धरती या जन्मभूमि के प्रति आदर – मान का भाव उसी के मन में रहता है कि जो अपनी जन्म देने वाली माँ से सच्चे हृदय से प्यार करता है।

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निष्कर्ष

इस प्रकार कहा जा सकता है कि माँ और मातृभूमि एक – दूसरे के पर्यायवाचक शब्द हैं। भावना की दृष्टि से दोनों मूल रूप से एक ही हैं , या फिर एक ही भाव के दो पहलू हैं। जिसे स्वर्ग कहा जाता है , किसने देखा है उसे ? कौन जानता है उसकी वास्तविकता के बारे में ? कोई भी तो नहीं। परन्तु जो माँ और मातृभूमि हैं , वे दोनों तो हमारे सामने प्रत्यक्ष हैं। हम उन्हें देख सकते हैं , छू सकते हैं , रोम – रोम से उनका साक्षात अनुभव कर सकते हैं। उनके स्नेह और ममता भाव के अधिकारी हैं। जिसके पास माँ और मातृभूमि की समीपता का सुख है , उसके लिए अनजाने स्वर्ग का वास्तव में कोई महत्त्व नहीं हुआ करता। हम माँ और मातृभूमि को प्रणाम करते हैं। उनकी आजीवन सेवा का व्रत लेते हैं।

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