दया धर्म का मूल है पर निबंध | daya dharm ka mool hai par nibandh

daya dharm ka mool hai par nibandh

दया का अर्थ

मनुष्य धर्म के मार्ग पर चलकर दया का व्यवहार करता है और अभिमान के मार्ग पर चलकर पाप – कर्म करता है। सभी धर्म करुणा , दया , सेवा , त्याग का पाठ पढ़ाते हैं। करुणा , सेवा , त्याग आदि के मूल में धर्म है।

धर्म का अर्थ

धर्म का अर्थ है- कर्तव्य। कर्तव्य वही है जो कि सम्पूर्ण मानवता और सम्पूर्ण संसार के लिए शुभ हो। अपने लिए तो सभी जीते हैं। परंतु सारे समाज के लिए जीना महान गुण है। सारे समाज के हित का ध्यान तब तक नहीं हो सकता, जब तक हमारे मन में समाज के प्रति अपनापन न हो। अपनापन ही कर्तव्य है , यही धर्म है।

daya dharm ka mool hai par nibandh

दया का मार्ग

जिस मनुष्य को सारा समाज अपना लगता है , वह समाज के सुख – दुख में सुखी दुःखी होता है। समाज के दुःख में दुःखी होना ही दया कहलाती है, जितने भी महापुरुष या धार्मिक पुरुष हुए , वे इसी करुणा को अपनाकर हुए। यदि महात्मा बुद्ध के मन में जन – जन की पीड़ा का ख्याल नहीं होता , तो वे कभी सत्य – प्राप्ति के लिए वन – वन न भटकते। यदि राम के मन में समाज कल्याण का भाव न होता , तो ये मारीच ताड़का आदि का वध करने के लिए तत्पर नहीं होते। यदि महात्मा गाँधी में समाज हित की भावना न होती , तो ये दक्षिण अफ्रीका में जाकर आंदोलन न चलाते , भारत में नमक कानून न तोड़ते और अनेक बार जेल न जाते।

daya dharm ka mool hai par nibandh

दया सम्बन्धी विचार

दया एक महान भावना है। इसके जगते ही मनुष्य बड़े – बड़े कष्ट सहने को तैयार हो जाता है। सच्चे करुणावान जन कल्याण के लिए अपनी जान देने को तैयार हो जाते हैं। महाभारत के वन पर्व में एक गरीब ब्राह्मण की रक्षा के लिए कुंती ने स्वयं अपने बेटे भीम को भेजा था।

लाभ

दया के कारण मनुष्य बड़े से बड़े त्याग करने को तत्पर हो जाता है। दया के कारण ही नेता – नेता में अंतर हो जाता है। दयालु नेता महान हो जाते हैं। वे लुटाते ही लुटाते हैं। वे देवता कहलाते हैं। गाँधी , शास्त्री , सुभाष आदि ऐसे करुणावान नेता हुए। दूसरी ओर , करुणाहीन नेता शीघ्र ही भ्रष्टाचार के कीचड़ में धँस जाते हैं। वे जनता को दोनों हाथों से लूटते हैं। वे हत्यारे कहलाते है। वास्तव में दया पारस पत्थर के समान है। इसके स्पर्श से कोई भी से मनुष्य महान बन जाता है। दया और सेवा का सीधा संबंध है। ईसाई धर्म में सेवा को अत्यधिक महत्व दिया गया हैं। सेवा के पीछे उनकी करुणा – भावना है। वास्तव में दयावान प्राणी कभी अधर्म नहीं कर सकता , वह कभी पाप नहीं कर सकता , वह शुद्ध आत्मा होता है। वे सच्चे अर्थों में धर्मात्मा होते हैं।

इसे भी पढ़ें :- मन के हारे हार है, मन के जीते जीत पर निबंध

Post a Comment

Previous Post Next Post