पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं पर निबंध | paradhin sapnehu sukh naahi

paradhin sapnehu sukh naahi par nibandh

भूमिका

पराधीन व्यक्ति को स्वप्न में भी सुख प्राप्त नहीं होता है। पराधीनता अर्थात परतंत्रता वास्तव में कष्ट और विपदा को उत्पन्न करने वाली होती है। दूसरों के अधीन या वश में रहना ही पराधीनता है। पराधीनता में व्यक्ति ना तो अपनी इच्छा से कोई कार्य कर सकता है और ना इसकी कोई आशा ही रख सकता है। पराधीन व्यक्ति की आत्मा मरी हुई के समान होती है।

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स्वाधीनता

स्वाभाविक इच्छा- तुलसीदास की यह काव्य – पंक्ति बहुत गहरा अर्थ रखती है। इसका अर्थ है कि पराधीन व्यक्ति स्वप्न में भी सुख प्राप्त नहीं कर सकता। मानव जन्म से लेकर मृत्यु तक स्वतंत्र रहना चाहता है। वह स्वयं को सभी प्रकार की दासताओं से मुक्त करने के लिए बड़े – से – बड़े बलिदान करने को तैयार रहता है। वह किसी भी मूल्य पर अपनी स्वाधीनता बेचना नहीं चाहता। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इसीलिए कहा था कि ‘ स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है । ‘

पराधीनता : एक अभिशाप

हितोपदेश में लिखा है- पराधीन को यदि जीवित कहें तो मृत कौन है। पराधीनता जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप है। क्या सोने के पिंजरे में पड़ा पक्षी सच्चे सुख और आनंद की अनुभूति कर सकता है? नहीं। अंग्रेजी में एक सूक्ति है- ‘ स्वर्ग में दास बनकर रहने की अपेक्षा नरक में स्वाधीन शासन करना अधिक अच्छा है। paradhin sapnehu sukh naahi par nibandh

हानियाँ

पराधीन व्यक्ति कभी चैन की साँस नहीं ले सकता। उसके माथे पर सदा अपने मालिक की तलवार लटकी रहती है। उसे मालिक की इच्छा का दास बने रहना पड़ता है। स्वामी के अत्याचारों को गूँगे बनकर सहना पड़ता है। अधीन रहते – रहते उसकी आत्मा तक गुलाम हो जाती है। उसे तलवे चाटने की आदत पड़ जाती है जो मानवीय गरिमा के विपरीत है। ऐसा व्यक्ति स्वयं को तुच्छ , हीन और कलंकित मानने लगता है। उसके व्यक्तित्व का विकास रुक जाता है। उसके जीवन का आनंद मारा जाता है। उसकी हँसी और मुसकान गायब हो जाती है। उसमें और पूँछ हिलाने वाले पशु में कोई अंतर नहीं रहता।

पराधीनता के प्रकार

पराधीनता केवल राजनीतिक ही नहीं होती , वह मानसिक , बौद्धिक , आर्थिक या अन्य प्रकार की भी हो सकती है। यदि कोई व्यक्ति दूसरे के विचारों से इतना अधिक प्रभावित है कि अपना मौलिक विचार ही नहीं कर सकता तो उसे हम बौद्धिक रूप से गुलाम कहेंगे। यदि कोई जाति दूसरी जाति को श्रेष्ठ मानकर उसका अंधानुकरण करती है तो हम उसे मानसिक गुलाम कहेंगे। जैसे भारतीय मानसिकता अभी भी अंग्रेजी की गुलाम है। यदि कोई व्यक्ति आर्थिक दृष्टि से दूसरे पर निर्भर है और इस कारण आजाद होकर नहीं जी सकता तो वह भी एक प्रकार का पराधीन है।

स्वाधीनता की जरूरत

पराधीनता चाहे किसी प्रकार की हो , वह मानव को सच्चे आनंद से वंचित कर देती है। पराधीन व्यक्ति अथवा देश सम्मानपूर्वक नहीं जी सकता। पराधीनता से बचने का एक ही उपाय है- संघर्ष और बलिदान। आजादी मिलती नहीं , छीनी जाती है। उसके लिए सिर हथेली में लिए हुए तैयार युवक चाहिए। अतः जिसे स्वतंत्रता से जीना हो , उसे बलिदान के लिए तैयार रहना चाहिए।

निष्कर्ष

अंततः हम महाकवि तुलसीदास की इस काव्य पंक्ति का समर्थन करते हुए कह सकते हैं कि पराधीनता से स्वप्न में भी सुख प्राप्त नहीं हो सकता है। इसे कोई भी अपने मन में सोच विचार कर सकता है:—
पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं।
सोच विचार देखि मन माहीं।।

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