ईशा मसीह पर निबंध | hindi essay on Jesus Christ

isa masih par nibandh

भूमिका

चमत्कारी महापुरुषों में ईसा मसीह का नाम भी शामिल है। उन्होंने मानवता के लिए अपनी जान तक दे दी। सभी ईसाई मानते हैं कि ईसा मसीह ईश्वर के पुत्र हैं। ईस्वी सन (AD) उनके जन्म के बाद ही शुरू हुआ था। उनसे पहले एक काल था जिसे ईसा पूर्व (BC) के नाम से जाना जाता था। उनका जन्म फिलिस्तीन में एक यहूदी घराने में हुआ था। ईसा मसीह ने ईसाई धर्म को एक साकार रूप दिया। हर कोई जो ईसाई धर्म को मानता है वह यीशु मसीह की पूजा करता है। उन्हें भगवान का अवतार कहा जाता है, ठीक उसी तरह जैसे हिंदू राम और कृष्ण को भगवान का अवतार मानते हैं। दूसरी ओर, मुसलमान ईसा मसीह को ईश्वर का अवतार नहीं बल्कि पैगंबर मानते हैं।

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जीवन परिचय

लगभग 4 ईसा पूर्व, ईसा मसीह का जन्म 25 दिसंबर को बेथलहम में एक यहूदी घराने में हुआ था। मरियम उसकी माता का नाम और यूसुफ उसके पिता का नाम था। जीसस क्राइस्ट बचपन से ही एक चतुर विचारक और जिज्ञासु प्रवृत्ति के बालक थे।
सत्य, अहिंसा और मानवता के संस्थापक ईसा मसीह थे। वह लगातार मानव के उत्थान एवं उसके कल्याण के लिए प्रचार कर रहे थे। नतीजा यह रहा कि वह जहां भी गए उनके समर्थकों की भीड़ उमड़ पड़ी। लोगों ने उनके उपदेशों को हाथों-हाथ अपनाया और उनके बताए मार्ग पर चलने लगे। लोग उनके प्रवचन सुनने के लिए बेताब रहते थे। पहाड़ की चोटी पर उनके लगातार व्याख्यानों के कारण उन्हें ‘सरमन ऑन द माउंट’ के रूप में जाना जाता था। वे अक्सर भेड़ों और बकरियों के बीच अपना समय व्यतीत करते थे।

चमत्कारिक गुण

एक समय की बात है। वे काफिले के संग यात्रा कर रहे थे। वे सड़क के बीचोंबीच चल रहे थे, और शेष काफिले के लोग उनके आगे और पीछे चल रहे थे।तभी एक बीमार बुढ़िया उसे देखने के लिए भीड़ में घुस गई। वह दौड़कर उसके पास गई। उसे देखने की इच्छा में वह यीशु मसीह से प्रभावित थी। जैसे ही उसने उन्हें छुआ, एक चमत्कार हुआ। महिला का बुखार लगभग तुरंत उतर गया। महिला खुद को स्वस्थ देखकर उनके पैरों पर गिर पड़ी। isa masih par nibandh

ईश्वर के अवतार

ऐसे सैकड़ों चमत्कारों के बाद लोगों ने ईशा मसीह को ईश्वर के पुत्र और ईश्वर के अवतार के रूप में मान्यता दी, लेकिन रोम के शासक ने उन्हें एक साधारण इंसान के रूप में ही दर्जा दिया। नतीजतन, उन्होंने उन पर देशद्रोह का आरोप लगाया। शायद उनकी प्रसिद्धि और चमत्कारों ने उन्हें आश्चर्यचकित कर दिया था। फिर यीशु पर विश्वासघात का आरोप लगाने के बाद रोम के राजा ने उसे यरूशलेम में सूली पर चढ़ा दिया। कहा जाता है कि सूली पर चढ़ाए जाने के तीन दिन बाद वह फिर से जीवित हो गए थे। इसके परिणामस्वरूप लोग उन्हें ईश्वरीय शक्ति, ईश्वर के पुत्र और मसीहा के साथ एक दिव्य अवतार के रूप में मानने लगे।

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निष्कर्ष

आज दुनिया में पूरा ईसाई समुदाय यीशु मसीह के विश्वासों, शिक्षाओं और सिद्धांतों का पालन करता है, और उनके नक्शेकदम पर चलने का प्रयास करता है। निस्संदेह यीशु मसीह एक शानदार व्यक्ति थे। केवल ईसाई ही नहीं, विभिन्न धर्मों के लोग उन्हें बहुत सम्मान देते हैं। उनकी शिक्षाएं धार्मिक उद्देश्यों के लिए नहीं बल्कि मानवता की भलाई के लिए थीं।

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