महाराणा प्रताप पर निबंध | Maharana Pratap per nibandh

Maharana Pratap per nibandh

भूमिका

जब किसी के मन में अटूट देशभक्ति का विचार आता है, तो उसकी आंखों के सामने महाराणा प्रताप की छवि जीवंत हो जाती है। महाराणा प्रताप एक कट्टर राष्ट्रवादी थे। वे न केवल राजस्थान के गौरव थे, बल्कि वे अखण्ड भारत के गौरव भी थे। उन्होंने मेवाड़ पर राजा के रूप में शासन किया।

Maharana Pratap per nibandh

जीवन परिचय

महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 ई० को सिसोदिया के प्रसिद्ध राजपूत परिवार में हुआ था। वह राणा सांगा के पोते और राणा उदय सिंह के पुत्र थे। महाराजा उदय सिंह के शासनकाल के दौरान मुगल सम्राट अकबर ने आगरा पर शासन किया। महान सम्राटों ने महाराजा अकबर को नमन किया था, लेकिन राणा प्रताप के पिता उदय सिंह ने महाराजा अकबर से उनकी मृत्यु तक लड़ाई लड़ी। फिर 3 मार्च 1572 ई० को राणा प्रताप का राज्याभिषेक हुआ। सिंहासन प्राप्त करते ही राणा प्रताप ने मातृभूमि को स्वतंत्र करने को अपना मिशन बना लिया था।

राणा प्रताप एक शानदार योद्धा, एक शक्तिशाली राजपूत और एक समर्पित देशभक्त थे। वे कभी मरने से नहीं डरते थे। उन्होंने और उनके 22 हजार योद्धाओं ने हल्दीघाटी की लड़ाई में 80 हजार की विशाल मुगल सेना के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी, लेकिन वे अंततः मुगल सेना से हार गए। इस युद्ध में महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक को भी वीरगति प्राप्त हुई थी। इस विनाशकारी हार के बाद महाराणा प्रताप निराश नहीं हुए और वे हर संकट का डटकर मुकाबला करते रहे।

मुगलों से लड़ाई

महाराणा प्रताप की सबसे प्रशंसनीय विशेषता देशभक्ति थी। उन्होंने अपने राष्ट्र के प्रति अपने जुनून के कारण अकेले ही दुर्जेय मुगल साम्राज्य का सामना किया। उन्होंने अपनी मातृभूमि की मुक्ति के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया था, और उन्होंने इस प्रक्रिया में आने वाली हर बाधा को पार कर लिया था। उसने मुगल साम्राज्य के अधीन होने से इंकार कर दिया। महाराणा प्रताप ने अपना पूरा जीवन परीक्षणों और क्लेशों के बीच बिताया।

हल्दीघाटी की लड़ाई हारने के बाद उन्होंने अपने परिवार और कई अन्य साथियों के साथ अरावली पहाड़ियों में शरण ली। जंगलों और गुफाओं में उनका जीवन बड़े कष्ट के साथ बिता। वे उबड़-खाबड़ जमीन पर सोते थे और जंगली फलों, पत्तियों और पेड़ों की जड़ों को खाकर रहते थे। वे और उनका परिवार कभी-कभी बिना खाये ही रह जाते थे। किंतु भोजन के बिना, राणा प्रताप अपने लक्ष्य पर अडिग रहे।

Maharana Pratap per nibandh

भामाशाह का सहयोग

अपने मंत्री के पुराने विश्वासपात्र भामाशाह ने एक बार फिर राणा प्रताप को अपना पूरा संपत्ति ही सौंप दिया ताकि वह सेना को फिर से इकट्ठा कर सके और मुगल सम्राट अकबर पर हमला कर सके। इसके बाद महाराणा प्रताप ने एक बार फिर अपनी सेना इकट्ठी की, लेकिन वे चित्तौड़ लौटने में असमर्थ रहे। इतिहास से पता चलता है कि महाराणा प्रताप ने अकबर के सामने कभी सिर नहीं झुकाया। उन्होंने कभी हार नहीं मानी और विपरीत परिस्थितियों में भारत की आजादी के लिए संघर्ष किया। यदि 19 जनवरी, 1597 ई० को उनकी मृत्यु नहीं हुई होती तो वे भारत माता को मुक्त करने में सफल हो सकते थे।

यह भी पढ़ें :- छत्रपति शिवाजी पर निबंध

निष्कर्ष

भारत को महाराणा प्रताप पर हमेशा गर्व है और रहेगा। हम उनके जीवन से सीख सकते हैं कि विपरीत परिस्थितियों में भी व्यक्ति की इच्छा शक्ति मजबूत बनी रहनी चाहिए। कठिन से कठिन समस्याओं का डटकर मुकाबला करना चाहिए। अपने जीवन में कभी हार नहीं माननी चाहिए।

Post a Comment

Previous Post Next Post