प्रदर्शनी पर निबंध | hindi essay on exhibition

pradarshani par nibandh

परिचय

किसी उद्देश्य अथवा योजना को ध्यान में रखकर जब किसी स्थान पर दूकानें लगायी जाती हैं अथवा औद्योगिक उत्पादकों या अन्य वस्तुओं का प्रदर्शन किया जाता है, तब इस कार्यव्यापार को ‘प्रदर्शनी’ कहते हैं। यह मेले से भिन्न है। किसी मेले में इस तरह की कोई योजना नहीं रहती। दूकानें भी व्यवस्थित ढंग से नहीं लगायी जातीं, इसके पीछे कोई व्यवस्था नहीं रहती। अतः, मेला प्रदर्शनी से बिलकुल अलग चीज है।

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तैयारी

प्रदर्शनी लगाने के लिए शहर का एक ऐसा भाग चुना जाता है, जहाँ आने-जाने में लोगों को विशेष कठिनाई न हो। इसलिए यह प्रायः शहर के उस स्थान पर लगायी जाती है, जहाँ लोग अधिक संख्या में जमा होते हैं। जैसे- पटना का गाँधी मैदान। इसके लिए जिलाधीश से आज्ञा लेनी पड़ती है। जगह की सफाई की जाती है। जो प्रदर्शनी जितनी बड़ी होती है, उसके लिए उतनी ही जमीन ली जाती है और उसके चारों ओर टीनों से घेरा डाला जाता है ताकि बाहर से बेटिकट लोग अंदर घुस न आयें। प्रदर्शनी का मुख्य द्वार ईंटों से बनाया जाता है और उसे हर तरह से आकर्षक और सुंदर बनाया जाता है। रंग-बिरंगी रोशनी की जाती है। अंदर तरह-तरह की दूकानें लगायी और सजायी जाती हैं। बीच में इतना स्थान छोड़ दिया जाता है जहाँ लोग बड़े आराम से घूम-फिर सकें। pradarshani par nibandh

व्यवस्था

प्रदर्शनी एक व्यवस्थित आयोजन है। इसके लिए पहले से ही सोच-विचार लिया जाता है। मुख्य द्वार के पास ही टिकट घर होता है, जहाँ से लोग टिकट लेकर अंदर जाते हैं। जिनके पास टिकट नहीं होता, वे अंदर नहीं जा सकते। इसकी देखभाल के लिए दरवाजे पर पुलिस और प्रदर्शनी के कर्मचारी तैनात रहते हैं। अंदर जाने पर बिजली की जगमगाहट में तरह-तरह की दूकानें सजी-सजायी दिख पड़ती हैं।

यदि उद्योग-धंधों की प्रदर्शनी लगायी गयी हो, तो वहाँ अधिकतर दूकानें ऐसी होती हैं, जिनका संबंध उद्योग-धंधों से होता है। इस प्रकार की प्रदर्शनी का उद्देश्य उस शहर की जनता को उद्योग-धंधों का परिचय देना होता है। इतना ही नहीं, वहाँ दैनिक जीवन की कुछ साधारण वस्तुओं से संबंध रखने वाली दूकानें भी होती हैं, जहाँ साज श्रृंगार के सामान और खिलौने आदि मिलते हैं। इन दूकानों पर स्त्रियों और बच्चों की भीड़ अधिक होती है। प्रायः प्रदर्शनी संध्या 5 बजे खुलकर रात के 11 बजे बंद होती है।

महत्त्व

देश के जीवन में प्रदर्शनी का विशेष महत्त्व है। यह बेकार नहीं है। इन प्रदर्शनियों से देश की उन्नति और विकास का पता चलता है। यहाँ हमें कारीगरी अथवा शिल्पकला के अच्छे-अच्छे नमूने एक ही स्थान पर देखने को मिलते हैं, हमें भिन्न-भिन्न प्रांतों की विविध वस्तुएँ देखने और खरीदने को मिल जाती हैं। इनसे हमारा ज्ञान बढ़ता है, हमारा दृष्टिकोण विस्तृत होता है और हमारे ज्ञान-विज्ञान का दायरा बड़ा होता है। स्वतंत्रता के बाद प्रदर्शनियों का महत्त्व पहले से कहीं अधिक बढ़ गया है।

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निष्कर्ष

प्रदर्शनी हमारे ज्ञान के विस्तार और मनोरंजन के लिए बहुत जरूरी है। यहाँ हम भिन्न-भिन्न प्रांत के निवासियों से मिलते-जुलते हैं और उनसे, दूकानों के माध्यम से, संपर्क स्थापित करते हैं। अतः, राष्ट्रीय जीवन के विकास के लिए इन प्रदर्शनियों का विशेष महत्त्व है।

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