बेरोजगारी : समस्या और समाधान निबंध : essay on unemployment

बेरोजगारी : समस्या और समाधान निबंध

भूमिका
एक प्रसिद्ध कहावत है – बेकार मन , भूतों का डेरा ‘ । कहावत मनोवैज्ञानिक स्तर पर यह प्रकट करती है कि काम कर पाने में समर्थ और योग्य व्यक्ति के लिए बेरोजगारी सबसे बड़ा अभिशाप हुआ करती है । काम करने योग्य स्वस्थ व्यक्ति बेकार रहने पर अपने आप में तो एक हीनता और समस्या बन ही जाया करता है , अपनी दिशाहीनता के कारण जीवन और समाज के लिए भी एक समस्यात्मक चुनौती प्रमाणित हुआ करता है । (बेरोजगारी : समस्या और समाधान निबंध)

बेरोजगारी : समस्या और समाधान निबंध

ज्ञान – विज्ञान या अनेक प्रकार की योजनाओं की प्रगतियों के गान उस समय अस्वाभाविक प्रतीत होने लगते हैं , जब नवयुवक बेकारों की टोलियाँ निराशा का जीवन व्यतीत करती हुई चारों ओर मँडराती नज़र आने लगती हैं । तब लगता है कि राष्ट्र ने किसी भी प्रकार की वास्तविक प्रगति की ही नहीं ।

इसी कारण जागरूक लोगों की मान्यता है कि बेरोजगारी किसी देश की आर्थिक दुर्गतियों , हीनताओं और दीवालियेपन की प्रतीक हुआ करती है । वह राष्ट्र के लिए कलंक तो है ही सही , सामाजिक हीनताओं की भी परिचायक है , और अनेक प्रकार की अराजकताओं को जन्म देने वाली है , जिसके कारण उच्च सभ्यता – संस्कृति वाले राष्ट्र का मस्तक भी लज्जा और हीनता से नत हो सकता है । आज विश्व के अनेक देश इस रोग से पीड़ित होकर हीनताओं , अव्यवस्थाओं और दुराचारों का शिकार बन रहे हैं ।

कारण
स्वतंत्र भारत में बेरोजगारी की समस्या शैतान की आँत की तरह निरंतर बढ़ती ही जा रही है । विचारकों ने इसके अनेक कारण माने हैं । सबसे प्रमुख कारण जनसंख्या में वृद्धि और उसकी तुलना में रोजगार की उपलब्धि का कम होना है। आज भारत की जनसंख्या सवा सौ करोड़ के बीच आंकी जाती है। इस अनुपात से रोज़गार के साधन न बढ़े है , न बढ़ने की संभावना ही है। अतः पढ़े- लिखे बेकारों की संख्या बढ़ना स्वाभाविक ही है ।

दूसरा प्रमुख कारण है परम्परागत या घरेलू काम – धंधों को छोड़कर नवयुवकों में बाबूगीरी की भावना । परिश्रम न करने के कारण नौकरी पाने के इच्छुक बेरोजगारों की संख्या बढ़ती जा रही है । नौकरी को प्रश्रय देने का मूल कारण अंग्रेजों के जमाने में चली आ रही गलत शिक्षा- नीति और नियोजन भी है । शिक्षा व्यक्ति के मन में स्वावलम्बन या अपने धंधे चलाने की प्रेरणा न देकर मात्र नौकर या बाबू बनकर सुविधा – भोग की प्रेरणा ही देती है ।

गलत औद्योगिक नीतियों और योजनाओं को भी बेरोजगारी बढ़ाने वाला एक प्रमुख कारण माना जाता है । यहाँ बड़े – बड़े उद्योग – धन्धे तो खोले गये , छोटे या कुटीर – उद्योगों की तरह ध्यान नहीं दिया गया । फिर मशीनीकरण भी अन्धाधुन्ध हुआ , अतः छोटे धन्धों से जुड़े लोग , सामान्य शिक्षा- प्राप्त अनेक नवयुवक , घरेलू कारीगर आदि अपने-आप ही बेरोजगारों की पंक्ति में आ खड़े हुए ।

इन प्रमुख कारणों के अतिरिक्त श्रम से पलायन की मनोवृति , शहरों में ही विकास कार्यों तथा औद्योगीकरण आदि पर ही अधिक ध्यान देना आदि को ग्रामीण बेरोजगारी का कारण माना जाता है । आज गाँव का किसान भी अपनी खेती या अन्य धंधे न करके नौकरी ही करना चाहता है। परिणामस्वरूप यह समस्या विकट – से – विकटतम होती जा रही है । काम-दिलाऊ दफ्तरों के बाहर लगी बेरोजगारों की लम्बी पंक्तियाँ इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं ।

समस्या

बेरोजगारी की इस समस्या ने आज अनेक सामाजिक समस्याओं को भी जन्म दिया है । बेरोजगार नवयुवक स्वभावतः चिड़चिड़ा होकर उद्दंड हो जाता है । इच्छाओं और जरूरी आवश्यकताओं पर तो उसका बस नहीं होता । उन्हें पूरी करने और पाने के लिए वह जल्द ही अनैतिक मार्ग पर भटक जाता है ।

इस भटकाव में जन्म होता है अनेक प्रकार की अराजकता का , जिससे आज हमारे देश को कदम – कदम पर दो – चार होना पड़ रहा है । गम्भीरता से विचार करने पर हम पाते हैं कि आज जो अनेक अनचाहे बन्द और आंदोलन चलाए जा रहे हैं , उनका मूल कारण भी यही समस्या है । हत्या , लूटपाट आदि का बहुत कुछ कारण बेरोजगारी ही है।

समाधान
सबसे पहले इस भीषण समस्या के समाधान हेतु जनसंख्या पर नियंत्रण पाना बहुत आवश्यक है। दूसरा, अधिक से अधिक लोगों को काम देने के लिए छोटे-छोटे उद्योग धंधों का विकास करना होगा। तीसरा, परंपरागत धंधों को उचित संरक्षण और सम्मान देकर उनके प्रति लोगों के मन में विश्वास पैदा करना होगा।

चौथा, शहरों के समान गाँवों में विकास और वहाँ छोटे-मोटे कुटीर उद्योग -धन्धों को लगाकर भी ग्रामीण बेरोजगारों को काम में लगाया जा सकता है । साथ ही उनकी शहरों की ओर भागने की प्रवृत्ति को भी रोका जा सकता है । यह कार्य शिक्षा के साथ – साथ होना चाहिए ।

एक यह सुझाव भी है कि उन्हीं नारियों को नौकरी दी जाये , जिनके यहाँ कोई युवक या पुरुष कमाने वाला न हो । या फिर विशेष परिस्थिति में नारी के लिए नौकरी अपरिहार्य बन जाये । उनके स्थान पर युवकों और पुरुषों को ही नौकरी दी जाये , जिससे उनके साथ पूरे परिवार का भी भरण – पोषण सम्भव हो सके । शिक्षा को व्यावारिक और व्यवसायोन्मुख बनाकर भी इस समस्या का बहुत – कुछ समाधान किया जा सकता है ।

सबसे बड़ी बात तो यह है कि आज भ्रष्टता और अराजकता की सीमा को छू रही व्यवस्था में आमूल – चूल परिवर्तन किया जाये । लोगों के मन में यह विश्वास उत्पन्न किया जाये कि परिश्रम से महत्व बढ़ता है , कम नहीं होता । बाकी बेकारों को बेकारी – भत्ता देने जैसी बातें राजनीतिक स्टण्ट तो हैं ही , भारत जैसे घाटे की विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देश में हास्यप्रद भी लगती हैं । ऐसा करना देश की शक्ति और निष्ठा पर कुठाराघात करने के समान ही है।

निष्कर्ष
जो भी हो , आज अत्यधिक दूरदर्शिता की आवश्यकता है। आवश्यकता है लाल – फीताशाही से देश को बचाकर रोजगार के इच्छुक नवयुवकों के सही दिशा – निर्देश की । सही नियोजन और विकास की । तभी ऊपर बताये उपायों को काम में लाकर बेरोजगारी की इस विकट समस्या का समाधान सम्भव हो सकता है । अन्य कोई उपाय आज की स्थितियों में संभव नहीं लगता है।

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