देशप्रेम या स्वदेश प्रेम या राष्ट्र भक्ति पर हिंदी में निबंध

देशप्रेम या स्वदेश प्रेम या राष्ट्र भक्ति पर हिंदी में निबंध

देशप्रेम पर निबंध

भूमिका

देश, भूमि के उस लंबे-चौड़े टुकड़े को कहा जाता है जिस पर एक ही सभ्यता- संस्कृति को मानने वाले लोग रहते हो। उन लोगों के धर्म ,जाति , रंग-रूप , खान-पान , सामान्य विश्वास और बोलचाल की भाषा में भी भिन्नता हो सकती है, लेकिन संस्कृति अलग नहीं हो सकती। वह उसे देश नामक भूमि के किसी टुकड़े पर रहने वाले सभी लोगों को एक बनाए रखती है। उस भूमि के प्रति अपनेपन का भाव भी जगाए रखती है। अपनेपन का यह भाव ही वास्तव में प्रेम या भक्ति हुआ करता है। इसके रहते ही देश- प्रेम या देश – भक्ति जैसे शब्द बोले-कहे जाते हैं। Desh prem par nibandh

ध्यान रहे , किसी भी प्राणी, पदार्थ आदि के प्रति प्रेम या भक्ति का भाव तभी जागा करता है , जब उसे सजीव और चेतन माना जाए। उसे एक हमेशा रहने वाला जीवित तत्व माना जाए। जड़ वस्तुओं तत्वों को हम जानते हैं कि वह निर्जीव और अस्थायी है। अतः उनके प्रति प्रेम या भक्ति का भाव भी नहीं जाग सकता। इस दृष्टि से कहा जा सकता है कि अपनी प्रकृति में ठोस और जड़ होते हुए भी देश भावनात्मक दृष्टि से एक सजीव एवं प्राणवान तत्व होता है। इसी कारण हम उससे प्रेम करते हैं। उसके प्रति भक्ति-भाव भी रखते हैं। उसके लिए सब कुछ न्यौछावर भी कर सकते हैं।

देश-प्रेम का महत्व

जो आदमी जिस भूमि पर जन्म लेता है, घुटनों के बल रेंग-रेंग कर बड़ा होता है और चलना फिरना सीखता है, जिसका अन्न-जल खा-पीकर पलता है, वही उसका देश होता है। उसे जन्मभूमि , मातृभूमि और पितृभूमि भी कहा जाता है। हमारे शास्त्रों ने तो यहाँ तक कह दिया है कि
“जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।”

अर्थात जन्म देने वाली भूमि माता के समान और स्वर्ग से भी बढ़कर महत्वपूर्ण ,आदरणीय हुआ करती है। जन्मभूमि या देश-भूमि के प्रति यह भावना ही वास्तव में देशभक्ति या देशप्रेम को जगाने वाली है। यही वह भावना है, जो आदमी को अपने देश की रक्षा के लिए बड़े से बड़ा त्याग और बलिदान करने की प्रेरणा दिया करती है। यही वह भावना है, जो इस धरती पर रहने वाले हर धर्म ,जाति और वर्ग से जोड़े रखती है। इस भावना के मर या बिखर जाने पर देश – समाज सभी कुछ बिखर कर समाप्त हो जाया करता है। Desh prem par nibandh

अर्थ

देशप्रेम या भक्ति का अर्थ धूप-दीप जलाकर या फूल आदि चढ़ाकर किसी की पूजा अर्चना करना नहीं है। घण्टे-घड़ियाल बजाना या अज़ान आदि देना भी नहीं है। देशप्रेम एक भावना है , एक भावनात्मक शब्द है, भावनात्मक क्रिया-व्यापार भी है। देश प्रेम या भक्ति का अर्थ अपनी जन्म और क्रीड़ा-भूमि के एक-एक कण के साथ जुड़ना, अपनापन स्थापित करना है। उस धरती के कण-कण में अपने प्राणों की धड़कन सुनना और देखना है। जिस धरती को हम अपना देश मानते हैं, उसके हर पेड़-पौधे , फूल-पत्ते , पशु-पक्षी आदि के साथ भावना के रूप में जुड़ना है, उन सबको अपने जैसा और अपना मानना है। Desh prem par nibandh

जब तक किसी आदमी के मन में इस प्रकार का भाव नहीं जागता, वह तन- मन और आत्मा से अपनी धरती के कण-कण के साथ जुड़ नहीं जाता, तब तक उसे देश प्रेमी या देशभक्त कभी भी नहीं कहा जा सकता। जब यह भाव बन जाता है , तब व्यक्ति किसी प्रकार धरती पर आँच आना देख या सहन नहीं कर सकता कि जिस तरह जन्म देने वाली माँ को अपमान नहीं कर सकता। वास्तव में यही देश प्रेम और देशभक्ति है इसके बिना कुछ भी नहीं।

देशप्रेम- एक उच्च भावना

हम इतिहास में देश के लिए बलिदान हो जाने वाले अनेक वीर पुरुषों के चरित्र पढ़ते हैं। उन्होंने अपने तन-मन को मिटाकर भी देश पर आँच न आने दी। वह कौन-सी भावना है ,जिसने उन वीर पुरुषों से ऐसा करवाया? अपने देश को अंग्रेजों की गुलामी से छुटकारा दिलाने के लिए लोकमान्य तिलक , गोखले , महात्मा गांधी , नेहरू , पटेल आदि नेता बार-बार जेल यात्रा करते रहे । अनेक युवाओं ने फाँसी के फंदे हँसते-हँसते गले में डाल लिए , नेताजी सुभाष चंद्र बोस घर-बार त्याग कर विदेशों की खाक छानते रहे । अपने नन्हें पुत्र को पीट पर बांधकर झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई घोड़े पर सवार होकर जंगल-जंगल फिरती फिरंगियों से लोहा लेती रही । इन सभी का एक ही उत्तर है कि अपनी मातृभूमि, अपने देश की सत्ता और स्वतंत्रता के लिए । Desh prem par nibandh

इस प्रकार का त्याग बलिदान की भावना से भरा हुआ व्यवहार ही वास्तव में देश प्रेम या देश भक्ति कहा जाता है। देशवासियों में जब तक इस प्रकार के भाव बने रहते हैं, तब तक उनका कोई बाल भी बाँका नहीं कर सकता। जिस दिन यह भाव मर या समाप्त हो जाता है, उस दिन वह देश वास्तव में देश न रहकर एक पराधीन भूमि का टुकड़ा या उपनिवेश बन जाया करता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि देश प्रेम एक पवित्र और महान भावना का नाम है। एक ऐसी ज्योति का नाम है, जिसके प्रकाश में अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए जातियाँ और राष्ट्र सदियों तक जीवित बने रहते हैं।

देेश प्रेम के लिए त्याग

देश प्रेम के निर्वाह के लिए मनुष्य को कई प्रकार के स्वार्थों का त्याग करना पड़ता है। अपने को प्राप्त होने वाली सुख-सुविधाओं को सभी की भलाई के लिए त्यागना पड़ता है। केवल अपना नहीं, सभी का ध्यान रखना पड़ता है। सभी जानते हैं कि प्रेम चाहे व्यक्ति से हो,घर-परिवार से हो, भगवान से हो या किसी से, हर रूप में कुछ न कुछ त्याग करना आवश्यक हो जाया करता है। यहाँ तक की धन से प्रेम करने वाले को अपने सुख-चैन का त्याग करने को बाध्य होना पड़ता है। सो त्याग हर प्रकार के प्रेम, विशेष करके देश प्रेम की पहली शर्त है। यह त्याग अपने सुखों का तो होता ही है, अपने प्राणों तक का भी हो सकता है। सच्चे प्रेमी इसे जानते हुए कभी मुँह नहीं मोड़ा करते। वे हर समय अपने सर्वस्व की बाजी लगाने के लिए तैयार दिखाई देते हैं।

उपसंहार

ध्यान रहे, देश रहेगा तो हम भी रहेंगे। हमारे सभी प्रकार के स्वार्थ हमारे सुख-दुख आदि सभी तभी रह और पूरे हो सकते हैं कि जब हमारा देश हमारा ही बना रहेगा। उस पर हमारा राजनीतिक , आर्थिक , बौद्धिक , मानसिक सभी तरह का अपना अधिकार रहेगा। देश को बनाने वाले मुख्य तत्व होते हैं – भूमि ,उस भूमि पर रहने वाला जन- समुदाय ,उस जन-समुदाय की अपनी सभ्यता-संस्कृति । इन तीन प्रकार के तत्वों में जब तक हम अपना अपनत्व , अपनी सत्ता और अस्तित्व पूर्णतया घुला-मिलाकर एक नहीं कर देते, तब तक हम देश प्रेमी होने के अधिकारी नहीं बन सकते। देश को बनाने वाले पहले तत्व भूमि को बुनियादी तत्व माना गया है। भूमि को इसी कारण जड़ न मानकर चेतन कहा गया है। उसे माता का स्थान और महत्व दिया गया है।

भूमि पर रहने वाला जन-समुदाय तो चेतन होता ही है, उसकी सभ्यता-संस्कृति भी चेतनता का प्रतीक हुआ करती है। इस प्रकार चेतनता आवश्यक है। हर देशवासी चेतन होकर जब भूमि से जुड़ जाता है, तभी देश प्रेम के महान रूप का उदय हुआ करता है।इस प्रकार देश प्रेम या देश भक्ति उसका स्वरूप उसके साथ आत्मा के रूप में जुड़ी भावना उन सब की आवश्यकता और उनका महत्व स्पष्ट है चिरकाल तक जीवित रहने के लिए अपनी सत्ता को स्वतंत्र बनाए रखने के लिए हर प्राणी में देश प्रेम का भाव रहना बहुत ही आवश्यक है हर समझदार आदमी यह बातें जानकर ही अपने कर्तव्यों का उचित निर्वाह किया करता है।

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