parvatiya pradesh ki yatra essay : पर्वत-यात्रा पर हिंदी निबंध

यहाँ आप पर्वतीय प्रदेश की यात्रा अथवा पर्वत-यात्रा पर हिंदी निबंध पढ़ सकते हैं।

भूमिका

पर्वतीय अर्थात पहाड़ों की यात्रा अपना एक अलग आनंद रखता है। लोग दर्शन के लिए पहाड़ों की यात्रा किया करते हैं ,जबकि कुछ लोग मनोरंजन तथा आनंद प्राप्त करने के लिए। अमीर लोग गर्म प्रदेशों की झुलसा देने वाली लू और गर्मी से बचाव के लिए एक -दो महीने ठंडे पहाड़ों पर बिता आया करते हैं। मैंने भयानक सर्दी के दिनों में भी लोगों को टिकट कटा कर पहाड़ों की तरफ भागते हुए देखा है। ऐसे लोगों का उद्देश्य शायद बर्फ गिरने का दृश्य देखना ही हुआ करता है। जो हो, जिसकी जैसी भावना और रुचि होती है, वह उसी के अनुसार आचरण किया करता है, यह मानव- स्वभाव का एक स्पष्ट सत्य है।

Parvatiya pradesh ki yatra

parvatiya pradesh ki yatra

यात्रा का उद्देश्य

पिछले वर्ष मैंने भी पहाड़ी स्थल की यात्रा की थी। इस यात्रा पर जाने के मेरे स्पष्ट रूप से दो उद्देश्य थे । एक तो मैं पहाड़ों पर प्रकृति का रूप देखना और उनका आनंद लेना चाहता था। दूसरे, मैं यह जानना चाहता था कि जो वहाँ के मूल निवासी होते हैं,हमेशा वहीं रहते हैं,उन लोगों का अपना जीवन किस प्रकार का हुआ करता है। सो मैंने दिल्ली में सबसे निकट पड़ने वाले पर्वतीय स्थल मसूरी की यात्रा करने की योजना बनाई। मेरे तीन- चार और सहपाठी मित्र भी मेरे साथ चलने को तैयार हो गए। स्कूलों कॉलेजों में छुट्टियाँ थी। अतः घर वालों ने भी हमें आज्ञा दे दी।

यात्रा का प्रस्थान

हम लोग दिल्ली से सीधी मसूरी जाने वाली बस पर सवार हो गए। दिल्ली की भीड़-भाड़ को धीरे धीरे पार करने के बाद हमारी बस मसूरी जाने के लिए देहरादून की राह पर भाग चली। आरंभ में कहना चाहिए कि देहरादून की वादी में प्रवेश करने से पहले तक का रास्ता दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के आम बस मार्गों के समान ही रहा। कहीं रूखे- सूखे मैदान, कहीं हरे- भरे खेत, कहीं एकदम नंगी सड़क। उत्तर प्रदेश में सड़कों के आसपास उगे, दूर तक चले गए गन्ने के खेत अवश्य कुछ आकर्षक लगे। (parvatiya pradesh ki yatra)

कुछ आगे जाने पर सड़क के आसपास उगे वृक्षों ने अचानक घना होना शुरू कर दिया। वातावरण में कुछ उमस भी बढ़ने लगी। फिर सफेदे के ऊँचे-ऊँचे पेड़ों की लंबी और घनी पंक्तियाँ कुछ ऊपर उठती हुई दिखाई देने लगी। हमने अनुभव किया कि हमारी बस भी थोड़े ऊपर की ओर चढ़ती जा रही है। इसके बाद क्रम से ऊपर उठते हुए घने वृक्षों के जंगल और भी घने होते गए। हमारी बस भी पहाड़ों पर चढ़ती हुई दिखाई दी। कुछ देर बाद पता चला कि हम देहरादून में प्रवेश कर रहे हैं। देहरादून की यात्रा तक रास्ते में ऐसा कुछ विशेष नहीं था कि जो कोई यादगार या छाप छोड़ सके। वहाँ का मौसम भी गर्म था। वहाँ खाना खाने के लिए बस कुछ देर रुकी।

देहरादून से मसूरी

खानपान के बाद बस अब मसूरी की राह पर चल पड़ी। अब बस जिस प्रकार के रास्ते पर चल रही थी, जिस प्रकार के मोड़ काट रही थी, उसी सब से खुद पता चल रहा था कि अब हम किसी पर्वतीय प्रदेश में पहुँच चुके हैं। गोलाकार चढ़ाई, धुएँ के गुब्बारों की तरह उठते हुए बादल, ठंडी हवा के तीखे झोंके, जंगली फूलों की महक, जंगली पक्षियों के स्वर , दूर से दिखाई देने वाली बर्फ जमी सफेद पहाड़ी चोटियाँ, लगता था कि हम प्रकृति के बड़े ही सजीव, सुंदर और रंगीन लोक में पहुँचते जा रहे हैं। (parvatiya pradesh ki yatra)

जी चाहता था कि बस से उतरकर इन घाटियों में उतरकर दूर चला जाऊँ। वहाँ आवारा से घूम रहे बादलों के टुकड़ों को पकड़ कर ले आऊँ। अपने पास उन दिनों के लिए सुरक्षित रख लो कि जिन दिनों हम वर्षा को तरसते हैं दिल्ली में और वह होती नहीं। तो ऐसा भी लगता कि बादल का कोई टुकड़ा भागा आकर खिड़की के रास्ते हमारी बस में आकर बैठ जाना चाहता है। ऐसी स्थिति में ड्राइवर बस की गति एकदम धीमी कर देता। कुछ देर बाद एकाएक बादल हट जाते, सूर्य चमक उठता और सारा वातावरण मखमली हरियाली में चमचमाकर मन -मस्तिष्क पर छा जाता है। इस प्रकार प्रकृति की आँख- मिचौली के दृश्य देखते हुए हम मसूरी जा पहुँचे।

ठहरने की व्यवस्था

बस के रुकने तक मेरा मन तरह-तरह की कल्पना की रंगीनियों में डूबा रहा। सोचता रहा कि जहाँ का रास्ता इतना रोमांचक है, वहाँ का वास्तविक रंग रूप कितना सुंदर, कितना मोहक होगा। परंतु मेरी भावनाओं को उस समय गहरी ठेस लगी, जब हम जैसा ही एक मनुष्य, फटे-पुराने कपड़ों में ठिठुरता, पाँव में कुछ रस्सियाँ जूते के स्थान पर लपेटे हुए, पीठ पर रस्सी और एक चौखटा-सा उठाए हुए सामने आकर कहने लगा— “कुली , साहब ! होटल ले चलेगा…… प्राइवेट बंगला चाहिए, वहाँ ले चलेगा।” और आगे बढ़ कर उसने हमारा सामान उठाना शुरू कर दिया। उसी जैसे अन्य लोग शायद आपसी अनुशासन और समझौते से दूसरे सैलानियों के पास पहुँच उनके सामान उठाने लगे। उसने हमें पहले से निश्चित होटल में पहुँचा दिया। निश्चित मजदूरी के अतिरिक्त ₹2 की बख्शीश पाकर उसने जितने आशीर्वाद दिए, दिल्ली का भिखारी या होटल का बैरा उतनी गालियाँ भी नहीं देता होगा।

पर्वतीय दृश्य

उस दिन विश्राम करके अगले दिन सुबह ही हम लोग कामटी फॉल, फोती घाट, नेहरू पार्क आदि सभी दर्शनीय स्थान देखने में व्यस्त हो गए। दो-तीन दिनों तक प्रकृति के अलग-अलग रंग -रूपों का दर्शन चलता रहा। प्रकृति कितनी विराट, महान ,सुंदर ,व्यापक, आकर्षक है, इसका मुझे पहली बार अनुभव हुआ। साथ ही यह अनुभव भी हुआ कि प्रकृति मुक्तभाव से हमें क्या और कितना देती है, पर अपने स्वार्थों के कारण उन सब को हम खुद ही हड़प जाना चाहते हैं। एक बूँद भी दूसरों को नहीं देना चाहते। वहाँ जाकर इस बात का भी पहली बार अनुभव हुआ कि अपने आपको पढ़े-लिखे , सभ्य-सुसंस्कृत कहने वाले हम शहरी ऐसे पर्वतीय स्थानों पर जाकर प्रकृति और उसके सुंदर वातावरण को किस तरह गंदा कर आते हैं। नंगेपन को फैशन कहने वाले नए अमीर यहाँ आकर और भी नंगे हो जाते हैं।

अगले दो-तीन दिन मैंने वहाँ रहने वाले साधारण लोगों, मटिया-मजदूरों को मिलने, उनके रहन-सहन को देखने-समझने में बिताए। टूटे-फूटे घरों में फटे हाल, आधे भूखे रहने वाले इन आम लोगों को बड़ा ही कठिन जीवन व्यतीत करना पड़ता है। इन दिनों जो कमाई कर लेते हैं, साल भर उसे के सहारे जीवित रहना पड़ता है। आय का और कोई साधन उनके पास नहीं होता। पेट काटकर लोगों की सेवा करने वाले इन लोगों के प्रति शहरियों का दृष्टिकोण अच्छा नहीं होता। जो भी हो , इस पर्वतीय स्थल की मेरी यात्रा मुझे खट्टे- मीठे दोनों प्रकार के हमेशा याद रहने वाले अनुभव दे गई।

Post a Comment

Previous Post Next Post