जानलेवा महँगाई पर निबंध|Janleva Mehangai par nibandh

Janleva Mehangai par nibandh

भूमिका

आम आदमी हो या कोई विशेष , आज चारों ओर प्रत्येक व्यक्ति को भीषण महँगाई का रोना रोते हुए देखा जा सकता है। अपनी-अपनी जगह प्रत्येक व्यक्ति इस की मार से बेबस होकर तड़प रहा है। नौकरीपेशा चपरासी , क्लर्क और इसी प्रकार के सामान्य जनता महँगाई की मार से पीड़ित है ही, तीन-चार हजार पाने वाला नौकरीपेशा भी अपने को सुरक्षित नहीं मान रहा है। सभी प्रकार के मजदूर ,खोमचे- रेहड़ी वाले सामान्य व्यवसायी , दुकानदार और बड़े – बड़े व्यापारिक प्रतिष्ठानों के मालिक , कोई भी हो किसी से भी बात कर देखिए , सभी एक ही बात कहते सुन पड़ेंगे कि महँगाई ने सभी कुछ चौपट कर दिया है। यह तो कमर सीधी होने ही नहीं दे रही है।

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इस प्रकार कहा जा सकता है कि कहने को तो अपनी-अपनी जगह आदमी सभी कुछ कर रहा है और महँगाई के कारण उसके चेहरे पर झुर्रियाँ असमय में ही पड़ती जा रही है। उनसे बचाव और छुटकारे का कहीं कोई उपाय दिखाई नहीं पड़ रहा है।वर्तमान में महँगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ कर रख दी है। महँगाई के निरंतर बढ़ने से खाने – पीने की चीजें इतनी महँगी हो गई है कि लोगों का खरीदना मुश्किल हो रहा है। पहले जहाँ लोग दाल- रोटी खा कर गुजारा कर लिया करते थे। किंतु आज दालों की कीमतें भी आसमान छूने लगी है। इस महँगाई के कारण जीना मुश्किल होता जा रहा है।

समस्या

महँगाई के कारण दैनिक व्यवहार की वस्तुओं के मूल्य इतने बढ़ गए हैं कि आम आदमी की शक्ति उन्हीं को जुटाने में लग जा रही है। उसकी सारी कमाई रोटी के आसपास ही सिमट कर रह गई है। सोचने समझने का आम आदमी को समय और साधन ही नहीं मिल पा रहे हैं। आज सभी प्रकार के फल इतने महँगे हो गए हैं कि आम आदमी उनकी तरफ केवल देख सकता है, खरीद कर चख या खा नहीं सकता। आम माता-पिता अपने बच्चों की छोटी-छोटी आवश्यकताएँ भी पूरी नहीं कर पाते हैं। उनके लिए पढ़ाई-लिखाई की उचित व्यवस्था भी नहीं कर पाते हैं। इसे में अपने घर के बड़े बुजुर्गों की आवश्यकताओं की तरफ तो चाह कर भी ध्यान नहीं दे सकते। इस तरह घरों- परिवारों में हर समय आपसी खच-खच होती रहती है।

घर-परिवार के रिश्ते-नाते इस महँगाई के कारण ही टूट कर बिखर रहे हैं। जिन आदर्शों के कारण मनुष्य का सम्मान था, वे आदर्श ही आज समाप्त होने के कगार पर है।पहले के जमाने में लोगों की आय बहुत कम हुआ करती थी। 50 -60 रुपये महीना कमाने वाला व्यक्ति भी अपने परिवार को सुख पूर्वक निर्वाह कर लेता था। सोने-चाँदी के आभूषण और घर – द्वार तक भी उसी आमदनी में बनवा लिया करता था। शादी-विवाह तथा अन्य प्रकार के आयोजन भी बड़े धूमधाम से कर लिया करता था। किंतु आज महीने के 40 -50 हजार कमाने वाला भी रोता हुआ दिखाई देता है। इतने में भी घर का गुजारा नहीं होता। जीना मुश्किल होता जा रहा है। यह एक विचारणीय प्रश्न है कि आखिर क्यों ऐसा हो रहा है?

वर्तमान स्थिति

ऐसा माना जाता है कि महँगाई का वर्तमान दौर दूसरे विश्वयुद्ध के समाप्त होने के साथ ही शुरू हो गया था। फिर भी उसकी गति इतनी तीव्र न थी , जितनी वर्तमान में हो रही है। यह गति रुकने के बजाय निरंतर बढ़ती ही जा रही है। सरकार अपने कर्मचारियों को महँगाई की मार से बचाने के लिए विशेष भत्ता देती है। किन्तु सरकार उन्हें यदि ₹20 देती है, तो महँगाई ₹50 बढ़ जाती है। फिर गैर- सरकारी कर्मचारी तो बेवजह महँगाई की मार सहते हैं। उन्हें बढ़ा हुआ महँगाई-भत्ता तो क्या बढ़े हुए मूल वेतन तक नहीं मिलते हैं। दिहाड़ी मजदूरों की हालत और भी खराब हो जाती है। लाभ तो सिर्फ व्यापारी वर्ग को ही मिल जाता है। देश में किसी चीज का अभाव नहीं है। फसल भी भरपूर हो रही है। फिर भी महँगाई का चक्र निरंतर बढ़ता ही जा रहा है।

कारण

भ्रष्टाचार , कालाबाजारी , अव्यवस्था , आय-व्यय का असंतुलन , कर चोरी , कई बार युद्ध और हर समय मंडराते रहने वाले युद्ध के खतरे आदि महँगाई के कई कारण माने जाते हैं। राजनीतिक अस्थिरता भी महँगाई बढ़ने का सबसे बड़ा और प्रमुख कारण है। हमारे विचार में हमारे संवेदनाओं का मर जाना या कम हो जाना भी एक कारण हो सकता है। प्राकृतिक आपदाएँ भी महँगाई बढ़ाने में सहायक हुआ करती है। कभी अधिक वर्षा होकर बाढ़ आने से फसलें नष्ट हो जाती है। कभी सूखा पड़ जाने या कम वर्षा होने आदि ऐसे ही कारण है जिनका चक्कर प्रायः चलता ही रहता है। आर्थिक विकास संबंधी कार्य नीतियों और योजनाओं को लागू करने में एवं उनमें आपसी तालमेल बिठाने में दूरदर्शिता का अभाव भी महँगाई बढ़ाने का एक बहुत बड़ा कारण हो सकता है। ( Janleva Mehangai par nibandh )

उपाय

महँगाई के भूत को भागने के लिए आवश्यक है कि सारा देश, बल्कि सारा विश्व सभी प्रकार के आंदोलनों को , राजनीतिक और व्यक्तिगत स्वार्थों को भूलकर रात-दिन परिश्रम करके सभी प्रकार के आवश्यक उत्पादनों को बढ़ाएँ। माँग से बढ़कर उत्पादन करें। दूसरे जनसंख्या की वृद्धि पर भी कठोर अंकुश लगाना आवश्यक है। तीसरे दूरदर्शितापूर्ण नियोजनों द्वारा ऐसे नए – नए स्रोतों की खोज की जाए कि जिससे हम आत्मनिर्भर बन सकें। ऊर्जा के स्रोतों में संतुलन दृष्टि भी आवश्यक है। व्यक्ति के स्तर पर अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं पर अंकुश लगाना भी जरूरी है। अर्थात केवल विलासिता के लिए कुछ खरीदना बंद होना चाहिए।

विलासिता के उत्पादन भी प्रतिबंधित किए जाने चाहिए। इन सब से भी बढ़कर व्यक्ति में सामाजिक या सामूहिक नैतिकता की जागृति भी आवश्यक है। यह जागृति ही जमाखोरी , रिश्वतखोरी और इसी प्रकार के भ्रष्टाचार को समाप्त कर सकती है। महँगाई रोकने के लिए उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ वितरण को सुव्यवस्थित बनाना भी बहुत जरूरी है। इसके लिए बिचौलिया – प्रथा को समाप्त कर सहकारिता को बढ़ावा दिया जा सकता है। सबसे बड़ी बात मनुष्य के लिए स्वयं मात्र मनुष्य रहना और दूसरों को भी मनुष्य समझना बहुत ही आवश्यक है। यह समझ महँगाई तो क्या अन्य सभी बुराइयों और विषमताओं को भी समाप्त कर जीवन को सुख-शांतिमय बना सकती है। अन्यथा विनाश तो होना ही है, जिसकी ओर मानवता लगातार बढ़ रही है।

निष्कर्ष

जानलेवा महँगाई से आम आदमी पूरी तरह त्रस्त है। यदि हर प्रकार से इस ओर प्रयत्न न किया गया , तो आने वाला समय और भी बुरा हो सकता है। महँगाई हमारा कमर तोड़ देगी। गरीबों का जीवन तो बद से बदतर हो जाएगा। अतः हमें सावधान हो जाना परम आवश्यक है। (Janleva Mehangai par nibandh)

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