Gaon ka desh bharat
भूमिका
महात्मा गाँधी ने कहा था कि भारत की आत्मा गाँवों में बसती है। वास्तव में हमारा भारतवर्ष तो गाँव में ही है। जिस देश की 80% से अधिक जनसंख्या गाँव में निवास करती है, उस देश की आत्मा गाँव में ही रह सकती है। इसलिए भारतवर्ष का महत्व गाँवों से ही आँका जाता है। गाँव में ही मनुष्य ने सभ्यता का पहला चरण रखा था। जब गाँव से सभ्यता संपन्न हो गई, तब वह धीरे-धीरे अपना रूपांतरण करती हुई नगर की तरफ बढ़ चली। वास्तव में गाँव का निर्माण मनुष्य ने किया है और उसका श्रृंगार प्रकृति ने किया है। गाँव प्रकृति देवी की गोद में फले-फुले और बने-ठने हुए हैं, जबकि शहर तो पूर्ण रूप से मानव द्वारा ही निर्मित हुए हैं और उनका सौंदर्य भी कृत्रिम है। इसलिए प्रकृति प्रदत्त गाँव की शोभा अनायास ही हमारे मन को आकर्षित कर लेती हैं। (Gaon ka desh bharat)
भारत की आत्मा
महात्मा गाँधी कृत्रिमता की अपेक्षा मौलिकता के अधिक समर्थक थे। इसलिए उन्हें विश्वास था कि भारत की आत्मा गाँव में ही बसी हुई है। यही कारण है कि उन्होंने गाँव की दशा को सुधारने के लिए ग्रामीण योजनाओं को कार्यान्वित करने पर विशेष बल दिया था। भारत के सभी गाँव अर्थात लगभग 63 लाख गाँवों को समुन्नत देखना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने निरंतर प्रयास भी किया था।
गाँवों की पुरातन स्थिति
आज भी भारतीय गाँव की दशा दयनीय और सोचनीय हैं। एक जमाना था, जब हमारी यह धरती अन्न रूपी सोने उगला करती थी। लेकिन यह कैसी विडंबना है कि आज हमारे देश में अन्नों का अभाव है। इसके कई कारण हैं। कृषि के क्षेत्र में पिछड़ेपन के मुख्य कारणों में से एक कारण यह है कि हम अंग्रेजी सत्ता की गुलामी से मुक्त होने पर भी कृषि उत्पादन पर ध्यान न देकर सर्वप्रथम बड़े बड़े उद्योगों की स्थापना के चक्कर में पड़ गए, जिससे अधिक से अधिक मुद्रा प्राप्त हो सके।
कृषि के प्रति हम जमींदारी प्रथा के कारण भी कोई ध्यान नहीं दे पाए थे। यही कारण है कि समस्त देश में फैले हुए कुटीर उद्योग और कृषि देखते-देखते चौपट हो गई। ऐसा इसलिए कि कुटीर उद्योग और कृषि व्यवस्था को अंग्रेजी सरकार ने दबोच लिया था और आजादी के बाद हमारी सरकार का ध्यान भी इस ओर ले जाने के लिए भी फुर्सत नहीं मिली। यहाँ पूँजीवाद पनपने का एकमात्र कारण यही है।
गाँवों का विकास काल
भारतीय गाँवों में कृषि में पिछड़ेपन का एक और कारण था — अंधविश्वास और रूढ़िवादी विचारधारा की अधिकता। इससे न केवल कृषि के क्षेत्र में ही हमारे गाँव पिछड़े हुए थे। अपितु शिक्षा, धर्म , संस्कृति आदि के भी क्षेत्र में पिछड़े हुए थे। इसलिए लंबे समय बाद भारतीय गाँवों की दशा में जो कुछ भी परिवर्तन हुआ है, सन् 1965 में हुए भारत-पाक युद्ध के बाद। युद्ध के बाद ही भारत सरकार ने कृषि पर ध्यान देना शुरू किया और उसका सकारात्मक परिणाम भी मिला। आज भारत अन्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो गया है।
गाँवों के पिछड़ने का कारण
भारतीय गाँव के पिछड़ेपन का मुख्य कारण है– शिक्षा का अभाव। इसी कारण यहाँ बेशुमार बेरोजगारी है। आजकल गाँवों में ईर्ष्या, अज्ञानता, प्रमाद आदि अनुचित और अमानवीय दुर्गुण व्याप्त है। इसलिए शिक्षा और विद्या के दीप जला करके बुद्धि की लौ से चाहें तो हम गाँवों की अज्ञानतामयी धुंध और जड़ता को छिन्न-भिन्न करके विकास का सुंदर और प्रगतिशील वातावरण तैयार कर सकते हैं। ऐसा होना पूर्णत: सहज और संभव भी है। इसके लिए आज विज्ञान की विभिन्न सुविधाओं जैसे — विद्युत , रेडियो , दूरदर्शन , कृषि की अनेक सुविधाएँ आदि के द्वारा आज भारतीय गाँव निरंतर दिन दूनी रात चौगुनी गति से विकासोन्मुख हो रहे हैं।
निष्कर्ष
सचमुच में भारतीय गाँवों का भविष्य उज्ज्वल और समुन्नत है। हमारा कर्तव्य है कि इसे राष्ट्र विकास की रीढ़ मानकर इसके विकास के लिए हम और अधिक तत्परता से कदम बढ़ाएँ। (Gaon ka desh bharat)