अयोध्या राम जन्म भूमि पर निबंध| Ram Janm Bhumi par nibandh

Ayodhya Ram Janm Bhumi par nibandh

भूमिका

भारत के संविधान में देश को एक धर्म निरपेक्ष राज्य अवश्य घोषित किया गया है, लेकिन आज भी भारतीय राजनीति में धर्म या संप्रदाय की विशेष भूमिका रही है। हम धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना तो कर सके हैं। लेकिन धर्म निरपेक्ष समाज का स्वप्न अभी भी अधूरा है। देश में विभिन्न धार्मिक विश्वासों और विभिन्न राजनीतिक दलों के फलस्वरूप विभिन्न प्रकार के तनाव और विवाद उत्पन्न होते रहे हैं। इन्हीं तनावों और विवादों ने हमारे समाज में सांप्रदायिक वैमनस्य का विष फैलाया है जो आज भारत के अनेक भागों में विद्यमान है। ( Ayodhya Ram Janm Bhumi)

Ayodhya ram janm bhumi

भारत के दो प्रमुख संप्रदाय हिंदू तथा मुसलमानों में एक मामूली विवाद को एक ज्वालामुखी पर्वत बना रखा था। जिसकी आग में न केवल सैकड़ों निरपराध असमय ही काल कलवित हो चुके। साथ ही संपूर्ण उत्तरी भारत में अशांति, अराजकता , जातीय विद्वेष की भावना व्याप्त थी। यह विवाद न केवल भारत के समाचार पत्रों में बल्कि विश्व के प्रमुख समाचार पत्रों में राम जन्मभूमि विवाद के रूप में विख्यात था। यह विवाद 1528 से आरंभ हुआ और अब जाकर 9 नंवबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पूर्णतः समाप्त हुआ।

ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि

राम जन्मभूमि विवाद की पृष्ठभूमि समझने के लिए हमें भारतीय इतिहास के पन्नों को उलटना होगा। वर्तमान अयोध्या नगर को रामायण तथा अनेक पौराणिक ग्रंथों में राम जन्म स्थान बताया गया है। बौद्ध धर्म के पाली ग्रंथों तथा परवर्ती ग्रंथों में भी इस नगर को राम जन्म भूमि के रूप में ही वर्णित किया गया है। पुरातात्विक प्रमाणों से भी यह सिद्ध होता है कि इस नगर में समय-समय पर अनेक मंदिरों का निर्माण होता रहा है। मुस्लिम शासन की स्थापना के बाद भारत में अनेक असहिष्णु सुल्तानों तथा मंदिरों को विध्वंस करने तथा उनके स्थान पर मस्जिद बनवाने का कार्य किया गया। लेकिन सल्तनत युग में फिरोज़ शाह तुगलक और सिकंदर लोदी के शासनकाल में अयोध्या में राम जन्म भूमि का अस्तित्व बना रहा, यह निर्विवाद सत्य है।

राम जन्म भूमि का विवाद मुगल वंश के संस्थापक बाबर के शासनकाल में अस्तित्व में आया था। बाबर की आत्मकथा तजुके बाबरी तथा मुस्लिम स्थापत्य कला के पर्सी ब्राउन सरीखे मर्मज्ञों के विवरणों से पता चलता है कि बाबर ने परंपरागत इस्लामी नीति के तहत कुछ मस्जिदों का निर्माण करवाया था। ऐतिहासिक साक्ष्यों से यह भी पता चलता है कि 1528 में बाबर के सूबेदार मीर अब्दुल बकी ताशकंदी ने अयोध्या में मंदिर को गिरवाकर उसके स्थान पर मस्जिद बनवाई थी। इस तथ्य की पुष्टि से इस बात से भी होती है कि मथुरा और वाराणसी आदि स्थानों पर भी मुगल शासकों ने इसी तरह की मस्जिदों का निर्माण कराया, जो आज भी विद्यमान है। (Ayodhya Ram Janm Bhumi)

1528 से लेकर 1883 ईस्वी तक अयोध्या में मंदिर-मस्जिद विवाद सुप्तावस्था में रहा। इसके बाद अंग्रेजों की कूटनीति के फलस्वरूप इस विवाद की आग सुलगने लगी। सन् 1883 ई. में फैजाबाद के अंग्रेज कमिश्नर ने मुसलमानों के विरोध को ध्यान में रखते हुए विवादास्पद स्थल पर पुनः मंदिर बनवाने की अनुमति देने से इंकार कर दिया। सन् 1885 में इस विवाद को लेकर अयोध्या में एक भीषण सांप्रदायिक संघर्ष हो गया, जिसमें 75 से अधिक लोग मारे गए। इसी वर्ष विवादास्पद स्थल के लिए मुकदमेबाजी भी शुरू हो गई।

राम जन्म स्थान के महंत अरद्युतिदास ने फैजाबाद के सहायक न्यायाधीश की अदालत में मुकदमा दायर करके इस स्थान पर मंदिर का निर्माण करने की आज्ञा माँगी। किंतु न्यायालय ने इसकी अनुमति नहीं दी और जिला न्यायाधीश ने भी महंत की अपील खारिज कर दी। इसके बाद 23 मार्च 1946 को फैजाबाद के दीवानी न्यायाधीश ने निर्णय दिया कि मस्जिद को बाबर ने बनवाया था और सुन्नी तथा शिया मुसलमान इसका प्रयोग करते रहे हैं।

1949 के बाद की स्थिति

22 दिसंबर 1949 ई. को विवादास्पद स्थल पर राम , लक्ष्मण और सीता की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित की गई। लेकिन 23 दिसंबर को ही जिलाधीश के आदेश से वहाँ ताला डाल दिया गया और दोनों संप्रदायों के लिए वहाँ प्रवेश वर्जित कर दिया गया। इसके बाद पुनः मुकदमेबाजी का दौर प्रारंभ हो गया। ( Ayodhya Ram Janm Bhumi)

1984 ई. में विवादास्पद स्थल पर मंदिर निर्माण हेतु संघर्ष करने के उद्देश्य से ‘राम जन्म भूमि मुक्ति यज्ञ समिति’ का गठन किया गया। फरवरी 1986 में फैजाबाद के न्यायाधीश श्री पांडेय ने जिला प्रशासन को आदेश दिया कि विवादास्पद स्थल का ताला खोल दिया जाए। तब से इस परिसर का मुख्य द्वार खोल दिया गया। ताला खुलते ही मुसलमानों ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर करके यथापूर्व स्थिति बनाए रखने की अपील की।

सितंबर 1988 में हैदराबाद में एक विश्व हिंदू सम्मेलन का आयोजन हुआ, जिसमें आयोजकों ने सरकार से विवादास्पद स्थल के संबंध में कोई बातचीत न करने तथा बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति के प्रस्तावित अयोध्या मार्च को रोकने की घोषणा की। बाद में सरकार के परामर्श पर मुसलमानों ने 12 मार्च 1989 को अयोध्या मार्च रद्द कर दिया।

1989 में विश्व हिंदू परिषद ने विवादास्पद स्थल पर 25 करोड़ रुपये की लागत से एक भव्य व विशाल मंदिर बनाने का कार्यक्रम घोषित किया। 14 अगस्त 1989 को उच्च न्यायालय की लखनऊ खंड पीठ ने अयोध्या में दोनों पक्षों को यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दिया। 29 सितंबर 1989 को विश्व हिंदू परिषद ने केंद्रीय गृहमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ एक समझौता करके अदालत के निर्णय को मानने का आश्वासन दिया तथा 19 अक्टूबर 1989 को प्रस्तावित अयोध्या मार्च रद्द कर दिया, लेकिन शिलान्यास करने का निश्चय किया। 9 नवंबर 1989 को अयोध्या में शिलान्यास शांतिपूर्वक संपन्न हो गया। इस अवसर पर केंद्र सरकार ने तर्क दिया कि शिलान्यास स्थल विवादित स्थल से बाहर है।

1990 के बाद की स्थिति

23 जून 1990 को हरिद्वार में धर्माचार्यों के सम्मेलन में यह घोषणा की गई कि 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या में मंदिर निर्माण(कार सेवा) किया जाएगा। अगस्त 1990 में भारतीय जनता पार्टी भी इस विवाद में कूद पड़ी और भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने मंदिर निर्माण हेतु जन समर्थन प्राप्त करने के लिए 25 सितंबर 1990 ईस्वी सोमनाथ से अयोध्या की रथ यात्रा आरंभ कर दी। 17 अक्टूबर 1990 ईस्वी को भारतीय जनता पार्टी ने घोषणा की कि यदि आडवाणी की रथ यात्रा रोकी गई या राम मंदिर निर्माण में अवरोध उत्पन्न किया गया तो वह राष्ट्रीय मोर्चा सरकार को दिया गया अपना समर्थन वापस ले लेगी। (Ayodhya Ram Janm Bhumi)

23 अक्टूबर 1990 को समस्तीपुर में आडवाणी की गिरफ्तारी के तुरंत बाद भारतीय जनता पार्टी ने केंद्र सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। परिणाम स्वरूप वी.पी.सिंह की सरकार का पतन हो गया। इस अवधि में केंद्र व राज्य सरकार ने अयोध्या में यथास्थिति को कायम रखने के लिए जबरदस्त तैयारियाँ की। फिर भी 30 अक्टूबर 1990 को हजारों की संख्या में कार सेवकों ने सुरक्षा बलों की भारी घेराबंदी को तोड़कर अयोध्या में प्रवेश करने का प्रयास किया। इस अवसर पर सुरक्षा कर्मियों ने काफी संयम से काम लिया।

इसी कारण कुछ कार सेवक मस्जिद तक पहुँच गए और वहाँ भगवा ध्वज फहराने में सफलता प्राप्त कर ली तथा मस्जिद को भी आंशिक क्षति पहुँचाई। कार सेवकों की इन कार्यवाहियों से क्षुब्ध होकर कुछ लोगों ने सरकार की कटु आलोचना की। फलस्वरूप 2 नवंबर 1990 को जब कार सेवकों ने पुनः वर्जित क्षेत्र में प्रवेश किया तो पुलिस ने कड़ी कार्यवाही की, लगभग ढाई घंटे तक हुई गोलाबारी में सैकड़ों लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हो गए। इसके बावजूद भी कार सेवक हतोत्साहित नहीं हुए तथा 6 दिसंबर 1990 से कारसेवकों ने अयोध्या में अपना सत्याग्रह कार्यक्रम आरंभ कर दिया।

23 अक्टूबर से 2 नवंबर 1990 तक हुई दुखद घटनाओं ने देश के अनेक राज्यों को सांप्रदायिक दंगों की आग में झोंक दिया। सांप्रदायिकता की आग में सैकड़ों लोगों को अपने जीवन की आहुति देनी पड़ी और इस सांप्रदायिक उन्माद ने 1946-47 की घटनाओं का पुनः स्मरण करा दिया।

6 दिसंबर 1992 में हिंदू संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं के द्वारा विवादित ढांचे को गिरा दिया। जिससे पूरे देश में हिंदू-मुसलमानों के बीच दंगे भड़क गए, और हजारों लोग मारे गए।

वर्ष 2002 ई. में हिंदू कार्यकर्ताओं को लेकर जा रही ट्रेन में आग लगा दी गई, जिससे लगभग 58 लोगों की मृत्यु हो गई। इस कारण से गुजरात में दंगे शुरू हो गए और इस दंगे में करीब 2 हजार लोग मारे गए।

वर्तमान पड़ाव

2010 ई. को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में विवादास्पद स्थल को रामलला , सुन्नी वक्फ बोर्ड, और निर्मोही अखाड़ा के बीच तीन बराबर-बराबर हिस्सों में बाँटने का आदेश दिया। जिसे वर्ष 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले पर रोक लगा दी।

2017 को सुप्रीम कोर्ट ने आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट का आह्वान कर दिया। 8 मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले को मध्यस्थता के लिए भेज दिया और 8 सप्ताह के अंदर कार्यवाही समाप्त करने को कहा गया।

1 अगस्त 2019 को मध्यस्थता पैनल के द्वारा अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। 2 अगस्त 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता पैनल मामले का समाधान निकालने में असफल रहा।

6 अगस्त 2019 से सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई रोजाना शुरू हुई। 16 अक्टूबर 2019 से अयोध्या मामले की सुनवाई पूरी हुई और सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा।

9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया। 2.7 एकड़ विवादित जमीन हिंदू पक्ष को दे दी गई। मस्जिद के लिए अलग से 5 एकड़ जमीन मुहैया कराने का आदेश दिया गया।

5 अगस्त 2020 को राम मंदिर का भूमि पूजन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किया गया। इस कार्यक्रम हेतु आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और साधु-संतों समेत 175 लोगों को न्योता दिया गया।

उपसंहार

राम जन्म भूमि पर राम मंदिर बनाने का जो सपना सभी हिंदुओं देखा था। इस सपने को पूरा होने में 492 वर्ष लगे। इस प्रकार अब अयोध्या में राम जी का भव्य मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो गया है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ जाने के बाद अब देश के सभी नागरिकों को जाति एवं धर्म का आपसी मतभेद भुलाकर सभी को मिलजुल कर रहना चाहिए। साथ ही इस समय आवश्यकता इस बात की है कि हर मूल्य पर साम्प्रदायिक सद्भाव को बनाये रखा जाए।

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