मदर टेरेसा की जीवनी|Mother Teresa ki jivani

Mother Teresa ki jivani

भूमिका

विश्व में समयानुसार कुछ ऐसी विभूतियों ने जन्म लिया, जिन्होंने विश्व के पटल पर अपनी अमिट छाप छोड़ी, जिन्हें विश्व का इतिहास कभी विस्मृत नहीं कर सकेगा। ऐसी विभूतियां बार-बार नहीं जन्म लेती, कभी कभार ही अवतरित होती हैं। अपने सुकर्मों की याददाश्त छोड़कर चली जाती है, जो युगों तक मानवता का मार्गदर्शन करती है। उन्हें विभूतियों में एक थी मदर टेरेसा जिन्होंने अपनी सेवा से विश्व में एक इतिहास रच दिया। उन्होंने अपनी सेवा के द्वारा मानवता का कीर्तिमान रच दिया और नर्सों के लिए एक आदर्श प्रस्तुत किया।मदर टेरेसा जिनका बचपन का नाम एग्नेस बोहाझीउ था। उन्होंने 18 वर्ष की अवस्था में ही नन बनने का संकल्प लिया था। इस संकल्प को पूरा करने के लिए वे आयरलैंड में लोरेंटों ननों के केंद्र में शामिल हो गई। Mother Teresa ki jivani

Mother teresa biography

जन्म और शिक्षा

मदर टेरेसा का जन्म 27 अगस्त 1910 को हुआ था। उनका परिवार मूल रूप से अल्बानिया का रहने वाला था। किन्तु वे अब यूगोस्लाविया के स्कोपजे नामक एक छोटे से नगर में रहते थे। उनके पिता का नाम अल्बेनियन था। इनके माता-पिता बहुत धार्मिक विचारों के थे और उनका प्रभाव मदर टेरेसा पर भी भरपूर पड़ा। 12 वर्ष की अल्प आयु में ही मदर टेरेसा ने अपने जीवन का उद्देश्य तय कर लिया था। इनका एक बड़ा भाई और एक बहन भी थी। इनकी प्रारंभिक शिक्षा स्कोपजे में रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा संचालित एक पब्लिक स्कूल से हुई थी।

एक बार टेरेसा की मुलाकात भारत में काम करने वाले एक पादरी से हुई। उस पादरी ने उन्हें भारत के बारे में बताया। फिर वह एक वर्ष की नन्स की पढ़ाई के लिए आयरलैंड चली गयी। वहाँ पढ़ाई पूरी करने के बाद वह 1929 को वापस अपने नए घर भारत आ गयी। महिलाएँ नन बनने के बाद अपना नाम बदल लेती थी। वे जिस संत को पसंद करती थी,वे उनका ही नाम रख लेती थी। इसलिए उन्होंने अपना नाम टेरेसा रख लिया। Mother Teresa ki jivani

प्रारंभिक कार्य

आरंभ में वह कोलकाता लॉरेंटो एटेली स्कूल में अध्यापिका बन कर रही। यहाँ रहकर उन्होंने पढ़ाने के रूप में सेवा कार्य प्रारंभ किया। अपने बेहतर सेवाभाव के कारण इन्हें उस विद्यालय की प्रधानाध्यापिका बना दिया गया। किंतु उन्हें इस पद से ही संतोष नहीं मिला। उनकी कोमल और दयालु मन को पीड़ित मानवता की पुकार कचोट रही थी। 10 दिसंबर 1946 को जब वह रेल में सफर कर रही थी, तभी उनकी अंतरात्मा ने गरीबों की सेवा के लिए संदेश दिया। उनके मन पर कलकत्ता में रहने वाले गरीब लोगों की तस्वीर दिखाई पड़ रही थी। इस कारण स्कूल छोड़कर गरीबों के बीच रहकर उनकी सेवा करनी शुरू कर दी। 1950 में इन्होंने मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की।

इससे पूर्व 1948 में उन्होंने कोलकाता में झुग्गी- झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों के लिए एक स्कूल खोला। फिर काली मंदिर के समीप ‘निर्मल हृदय’ नामक एक धर्मशाला की स्थापना की। यहाँ गरीब लोगों को आश्रय मिला। वे अपने सहयोगी नन्स के साथ सड़कों तथा गलियों में रहने वाले रोगियों का इलाज ‘निर्मल हृदय’ में लाकर करती थी।

विशेष कार्य

आरंभ में लोगों ने इनके सेवाकार्य से प्रसन्न होकर धन देने लगे। भारत सरकार ने भी टेरेसा की बहुत सहायता की। मदर टेरेसा इन पैसों से गरीब लोगों के लिए जरूरी चीजें खरीदती थी। उन्होंने गरीबों के लिए कई स्कूल और अस्पताल खोलें। उनके लिए भोजनालय की व्यवस्था की। कई दवाखानें भी खोली,जहाँ लोग निशुल्क दवाएँ खरीद सकती थी। मदर टेरेसा सेवाभाव के लिए पूर्ण समर्पित थी। उन्होंने सेवा करने के लिए कभी मजदूरों, असहायों के आने की प्रतीक्षा नहीं की। वे स्वयं राह में घूम-घूमकर गरीब मरीजों की तलाश करती और जो मरणासन्न स्थिति में होते उनकी सेवा और सहायता में लग जाती। उनके प्रयास के कारण ही आज विश्व भर में लगभग 120 देशों में ‘निर्मल हृदय केंद्र’ की शाखाएँ काम कर रही है। इसके अंतर्गत लगभग 200 शिक्षा केंद्र, लगभग 1400 उपचार केंद्र और 808 आश्रय केंद्र पूरे विश्व में कार्य कर रहे हैं।

चारित्रिक विशेषता

मदर टेरेसा बहुत सहनशील और करुणामयी महिला थी। गरीब रोगियों, भूखे नंगे मजलूमों के प्रति उनके मन में बहुत ममता थी। इन्होंने बूढ़ों, बीमार लाचारों और असहाय महिलाओं की सेवा की। अनाथ और विकलांग बच्चों के जीवन में नई रोशनी पहुँचाने में अथक प्रयास किया। मदर टेरेसा ने अपना सम्पूर्ण जीवन पीड़ितों और असहायों की सेवा में समर्पित कर दिया।

गरीबों, असहायों, विकलांगों की सेवा करते-करते वे स्वयं भी कब हृदय रोग की शिकार हो गई, उन्हें इसका पता ही न चला। जब स्थिति असाध्य हो गयी, उन्हें पेसमेकर पर रखा गया। अन्ततः 1997 के सितंबर महीने में मदद टेरेसा ने इस संसार से प्रस्थान किया व निर्माण को प्राप्त हुई, किंतु विश्व को सेवा का मार्ग प्रशस्त कर गयी।

सम्मान

1962 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 1972 में अंतरराष्ट्रीय सद्भावना के लिए जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया।1979 में मदर टेरेसा को शांति का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। उनके मृत्यूपरांत भारत सरकार ने उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए ‘भारतरत्न’ से सम्मानित किया। 19 अक्टूबर 2003 को उन्हें रोम में ‘धन्य’ सम्मान से विभूषित किया गया। मदर टेरेसा का निधन 1997 में हुआ था। उन्हें मरणोपरांत संत की पदवी प्रदान की गई।

निष्कर्ष

सेवा का भाव एक ऐसा सर्वोत्तम भाव है जो किसी को मानवता के शिखर पर पहुँचा देता है। मानवता के प्रति प्रेम को देश, जाति या धर्म जैसी संकुचित परिधि में नहीं बाँधा जा सकता। सेवा भाव के लिए व्यक्ति के मन में ममता, करुणा की भावना का होना आवश्यक है। विश्व में मानव की नि:स्वार्थ भाव से सेवा करने वाली अनेक विभूतियों में से मदर टेरेसा सर्वोच्च थी। उन्हें ममता, प्रेम, करुणा और सेवा की प्रतिमूर्ति कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।

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