सूचना का अधिकार अधिनियम पर निबंध|Right to information act

suchna ka adhikar adhiniyam

भूमिका

भारतीय संसद द्वारा पारित सूचना का अधिकार भारत के नागरिकों के लिए एक ऐसा उपहार है जो उन्हें संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों की पुष्टि करता है। इस अधिकार के अंतर्गत भारत के प्रत्येक नागरिक को अधिकार है कि अपने किसी कार्य के लिए या सार्वजनिक कार्यों की जानकारी संबंधित विभाग से किसी भी समय प्राप्त कर सकता है और कार्यालय प्रत्येक जानकारी देने के लिए विवश है। वह किसी भी स्थिति में सूचना देने से इनकार नहीं कर सकता। इस कानून के अंतर्गत भारत का कोई भी निवासी किसी भी विषय पर किसी भी तत्संबंधित अधिकारी से कोई भी सूचना 30 दिन के अंतर्गत प्राप्त कर सकता है।

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यह कानून जन अधिकारी से यह अपेक्षा करता है कि वह अपने समस्त अभिलेख कंप्यूटर में सुरक्षित रखें और आवश्यकता पड़ने पर निश्चित श्रेणी की सूचनाएँ तत्काल प्रकाशित कर सके या नागरिकों के मांगने पर कम समय में उन्हें यह सूचनाएं उपलब्ध करा सके। सन 2002 में बने सूचना का अधिकार कानून के अंतर्गत उसकी पारदर्शिता और व्यापकता में वृद्धि की गई। इस कानून के चलते सरकारी कार्यशैली और उनमें व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करने और भ्रष्टाचार को समाप्त करने का भी अधिकार सम्मिलित किया गया है। (suchna ka adhikar adhiniyam)

संशोधन का प्रस्ताव

इस एक्ट के अंतर्गत आने वाले समस्त अधिकरण या सरकारी कार्यालयों को एक सूचना अधिकारी नियुक्त करना आवश्यक होगा। कोई भी व्यक्ति किसी प्रकार की सूचना प्राप्त करने के लिए तत्संबंधित विभाग के सूचना अधिकारी के पास लिखित सूचना प्राप्त करने के लिए प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर सकता है। यद्यपि केंद्र की कांग्रेस सरकार ने 12 अगस्त 2013 को सूचना का अधिकार बिल में संशोधन के लिए प्रस्ताव रखा। जिसमें कहा गया था कि राजनीतिक पार्टियाँ सूचना का अधिकार कानून क्षेत्र के बाहर होंगे। किंतु दिसंबर 2013 में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के परिणाम देखने के बाद कांग्रेस की आंखें खुल गई और चुनाव परिणाम आने के तत्काल बाद ही राहुल गाँधी ने सूचना का अधिकार बिल में संशोधन का प्रस्ताव वापस ले लिया। इसे लोकतंत्र की एक बहुत बड़ी जीत के रूप में देखा गया।

इतिहास

साल 2000 से पहले महाराष्ट्र में अन्ना हजारे ने एक सशक्त सूचना का अधिकार कानून लागू करने के लिए आंदोलन किया था। बाद में यही एक्ट केंद्रीय सरकार द्वारा सन् 2005 में पूरे देश में सूचना का अधिकार कानून के रूप में स्वीकृत हुआ। 20 जुलाई 2006 को भारत सरकार ने सूचना का अधिकार कानून 2005 में संशोधन किया। जिसमें किसी सरकारी अधिकारी को इस कानून की सीमा क्षेत्र से अलग रखा गया। इस संशोधन के विरुद्ध अन्ना हजारे ने 9 अगस्त 2006 से आमरण अनशन प्रारंभ कर दिया। अंततः केंद्र सरकार ने उक्त संशोधन को रद्द कर दिया। सूचना का अधिकार कानून में भारत के नागरिक को यह अधिकार दिया गया कि वह किसी भी सरकारी विभाग से कोई भी सूचना माँग सकता है या सूचना की प्रतिलिपि प्राप्त कर सकता है। इतना ही नहीं उसकी सी. डी., फ्लॉपी या टेप, वीडियो कैसेट आदि भी प्राप्त कर सकता है।

केंद्र सरकार से सूचना का अधिकार स्वीकृत हो जाने के बाद सबसे पहले तमिलनाडु, गोवा, राजस्थान, कर्नाटक, दिल्ली, महाराष्ट्र में सूचना का अधिकार लागू किया गया। सूचना का अधिकार कानून सबसे पहले 22 दिसंबर 2004 में केंद्र सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया गया। इसके बाद 100 से अधिक संशोधन कानून को अंतिम रूप देने से पहले किए गए। इस कानून के अंतर्गत समस्त संवैधानिक प्राधिकरण जिसमें कार्यकारी, विधायनी और न्यायिक विभाग आते हैं। अथवा कोई भी संस्था जो केंद्र सरकार के द्वारा या राज्य सरकार के द्वारा स्थापित की गई हो,उस पर भी यह कानून लागू होता है।

निष्कर्ष

सूचना का अधिकार कानून भारत में भ्रष्टाचार पर नियंत्रण का एक सशक्त माध्यम है। इस अधिकार के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति जनहित संबंधित कोई भी सूचना तत्संबंधित विभाग से प्राप्त कर सकता है। इस सूचना कानून के अंतर्गत ग्राम प्रधान से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक आते हैं। (suchna ka adhikar adhiniyam)

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