jaishankar prasad par nibandh
भूमिका
छायावादी काव्य धारा के प्रवर्तक कवि जयशंकर प्रसाद हिन्दी साहित्य को एक नयी दिशा प्रदान की । इन्होंने हिन्दी साहित्य में एक युगान्तरकारी परिवर्तन कर छायावादी विचारधारा का श्रीगणेश किया,जिस पर हिन्दी साहित्य के इतिहास में एक नये युग ‘ छायावाद युग ‘ का श्री गणेश हुआ । जयशंकर प्रसाद का साहित्य जीवन की कोमलता , माधुर्य , शक्ति और ओज का साहित्य माना जाता है । प्रसाद को इतिहास और दर्शन में बहुत गहरी रुचि थी , जो इनके साहित्य में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है ।
jaishankar prasad par nibandh
जीवन परिचय
जयशंकर प्रसाद का जन्म वाराणसी के एक सम्पन्न वैश्य – परिवार में 30 जनवरी 1889 ई . में हुआ था । इनके पिता का नाम देवी प्रसाद था जिन्हें सूँघनी साहु के नाम से जाना जाता था । जयशंकर प्रसाद की आरम्भिक शिक्षा घर पर हुई थी । इन्होंने बड़ी लगन से हिन्दी , संस्कृत , अंग्रेजी और उर्दू की शिक्षा प्राप्त की । इसके बाद जयशंकर प्रसाद बनारस के क्वींस कॉलेज से सातवीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त कर सके । घर पर ही इन्होंने पुराण , इतिहास , पुरातत्त्व , दर्शनशास्त्र आदि का गंभीर अध्ययन – मनन किया । जयशंकर प्रसाद का 15 नवंबर सन् 1937 ई . में निधन हो गया । इनके आध्यात्मिक अध्ययन एवं पारिवारिक विषम स्थितियों का प्रभाव इनकी रचनाओं में स्पष्टरूप से झलकता है ।
jaishankar prasad par nibandh
प्रमुख रचनायें
जयशंकर प्रसाद बचपन से ही अत्यन्त मेधावी बालक थे । बाल्यावस्था से ही इनमें काव्य लेखन के गुण पनपने लगे थे । कवि – गोष्ठियों और सम्मेलनों के द्वारा इनकी प्रतिभा और भी निखर के सामने आने लगी। इनका व्यक्तित्व बहुमुखी था । श्री जयशंकर प्रसाद महाकवि के साथ एक सफल कहानीकार और नाटककार भी थे । इसलिए इन्होंने विविध प्रकार के साहित्य की संरचना की ।
जयशंकर प्रसाद की काव्य रचनाएँ हैं —–
उर्वशी (1909)
प्रेमराज्य (1909)
वन मिलन (1909)
शोकोच्छवास (1910)
अयोध्या का उद्धार (1910)
वभ्रुवाहन (1911)
प्रेम-पथिक (1913)
कानन-कुसुम (1913)
करुणालय (1913)
महाराणा का महत्त्व (1914)
झरना (1918)
आँसू (1925)
लहर (1933)
कामायनी (1935)
इनकी प्रसिद्ध नाटक है :—-
सज्जन (1910)
प्रायश्चित (1913)
राज्यश्री (1915)
विशाख (1921)
अजातशत्रु (1922)
जनमेजय का नागयज्ञ (1926)
कामना (1927)
स्कन्दगुप्त (1928)
एकघूँट (1930)
चंद्रगुप्त (1931)
ध्रुवस्वामिनी (1933)
कंकाल (1930) , तितली (1934) और इरावती (अपूर्ण) इनके श्रेष्ठ उपन्यास हैं । छाया , ग्राम्या आँधी, प्रतिध्वनि , आकाशदीप और इन्द्रजाल आदि कहानी – संग्रह हैं । काव्य – कला इनके निबन्धों का संग्रह हैं ।
काव्यगत विशेषता
जयशंकर प्रसाद की भाषा विशुद्ध खड़ी बोली है । तत्सम शब्दों की प्रधानता के साथ – साथ उसमें उर्दू – फारसी के भी शब्दों के सटीक प्रयोग हुए हैं । इनकी शैली मुक्त शैली है । बिम्बों और प्रतीकों के समुचित और उपयुक्त प्रयोग हुए हैं । इन विशेषताओं से इनकी कविताएँ चमक उठी है।
जयशंकर प्रसाद छायावाद के प्रवर्तक कवि हैं । इनकी रचनाओं में छायावादी सभी विशेषताएँ हैं । छायावाद की पहली विशेषता व्यक्तिवाद आपकी रचनाओं में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है । एक उदाहरण देखिए —
शापित – सा जीवन का यह ले कंकाल भटकता हूँ ,
उसी खोखलेपन में जैसे कुछ खोजता फिरता हूँ । सब पर हाँ , अपने पर भी मैं , झुंझलाता हूँ , खीज रहा ।
प्रेम के संयोग और वियोग दोनों ही पक्षों का कविवर प्रसाद ने रोचक चित्र खींचा है । वियोग शृंगार का एक उदाहरण देखिए ।
जो घनीभूत पीड़ा थी ,
मस्तिष्क में स्मृति – सी छाई ।
दुर्दिन में आँसू बनकर ,
वह आज बरसने आई ।
आशावादी कवि
महाकवि जयशंकर प्रसाद को काव्यक्षेत्र में विशेष लोकप्रियता प्राप्त हुई है । वैसे तो प्रसाद जी के सभी काव्य अद्भुत और विशिष्ट हैं , फिर भी कामायनी तो इनकी कालजयी रचना है । इस काव्य – रचना में इन्होंने मनु और श्रद्धा के द्वारा मानव को मधुर संदेश दिया है । चूंकि प्रसाद आशावादी कवि हैं । इसके लिए उन्होंने हर प्रकार से निराशावाद का विरोध किया है । वे निराशावाद को आशावाद का संदेश देते हुए इस प्रकार कहते हैं–
प्रकृति के यौवन शृंगार ,
करेंगे कभी न बासी फूल ।
लिखेंगे जाकर वे अतिशीघ्र ,
आह , उत्सुक है उनकी धूल ।।
कविवर जयशंकर प्रसाद जी के हृदय में देश – भक्ति की भावना भी भरी हुई है । वे स्वदेश भारत को विश्व का न्यारा – प्यारा देश बतलाते हुए कहते हैं–
अरुण ! यह मधुमय देश हमारा ।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को , मिलता एक सहारा ।।
कविवर जयशंकर प्रसाद जी ने रसों – छन्दों की तरह अलंकारों के प्रयोग में अद्भुत क्षमता दिखाई है । इससे उनके काव्य का महत्त्व और आकर्षक हो गया है । इस सन्दर्भ में एक उपमा अलंकार का उदाहरण देखिए–
घन में सुन्दर बिजली – सी ,
बिजली में चपल चमक – सी ।
आँखों में काली पुतली ,
पुतली में श्याम झलक – सी ।।
इसी तरह के अलंकारों में रूपक , उत्प्रेक्षा , अनुप्रास , अतिशयोक्ति आदि अलंकारों की छटा अद्भुत रूप में प्रयुक्त है । प्रसाद जी ने मुक्त शैली में अपनी काव्य रचनायें की है ।
उपसंहार
संक्षेप में हम कह सकते हैं जयशंकर प्रसाद आधुनिक हिन्दी के सर्वोच्च कवियों में से एक हैं। छायावादी कविता की अतिशय काल्पनिकता , सौंदर्य का सूक्ष्म चित्रण , प्रकृति प्रेम , देश – प्रेम और शैली की लाक्षणिकता उनकी कविता की प्रमुख विशेषताएँ हैं । छायावादी काव्य – धारा के ये न केवल प्रवर्तक कवि हैं , अपितु प्रेरक भी हैं ।