मदन मोहन मालवीय पर निबंध | madan mohan malviya nibandh

madan mohan malviya par nibandh

जीवन परिचय

हमारे देश में अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया है जिनमें महामना पंडित मदन मोहन मालवीय का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। 25 दिसंबर सन 1861 को प्रयाग की अहियापुर (लालडिग्गी) में एक विद्वान ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वे एक अग्रणी पत्रकार, प्रखर अधिवक्ता, सांस्कृतिक धरोहर के स्तम्भ, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक तथा उसके आदर्श कुलपति और एक महान शिक्षाविद थे। ऐसे राष्ट्रभक्त एवं यशस्वी महामना का निधन 85 वर्ष की अवस्था में 12 नवंबर सन 1946 ईस्वी को हुआ। ऐसे महापुरुष चिरकाल तक याद किए जाएंगे।

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यह समय अंग्रेजी हुकूमत का था। भारत में विदेशी शासन अपनी जड़े जमा चुका था। जिसके प्रभाव से यहाँ प्रचलित सदियों पुरानी सामाजिक संरचना, हजारों वर्षों पूर्व की परंपराओं एवं नैतिक मूल्यों का धीरे-धीरे ह्रास हो रहा था। महामना ने देखा कि इस देश के नर – नारी पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध और तकनीकी विकास से प्रभावित हो रहे हैं। विदेशी शासक अंग्रेजी शिक्षा के माध्यम से एक नए वर्ग का उदय कर अपने शासन को सुदृढ़ एवं समृद्ध करना चाहते थे, लेकिन भारत माता की ऐसी दुर्दशा देखकर मालवीय जी उसकी मर्यादा की रक्षा हेतु कटिबद्ध हो गए। वे अपने ज्ञान एवं प्रतिभा का उपयोग राष्ट्र के लिए करना चाहते थे। इनके हृदय में राष्ट्रभक्ति की तरंगे हिलोरें ले रही थी। भारत-भूमि की रक्षा हेतु कौन-सा मार्ग अपनाया जाए, भारत-जननी की सेवा करने के लिए कौन-सा माध्यम उचित होगा, यह विचार उन्हें लगातार मथ रहा था।

विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय

मालवीय जी का संकल्प एक ऐसे विश्वविद्यालय की स्थापना करना था, जहाँ पर राष्ट्रीयता की शिक्षा मिले, भारत के गौरवमय इतिहास तथा सांस्कृतिक धरोहर को युवा समझे। सन 1950 में बनारस में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में मालवीय जी ने विश्वविद्यालय की स्थापना की घोषणा की और पूरी शक्ति तथा लगन से इस कार्य में जुट गए।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना 4 फरवरी सन 1916 ई. को हुई। यह महामना की देशभक्ति का एक ज्वलंत उदाहरण है। यह विश्वविद्याल प्राच्यविद्याओं, कला, साहित्य, सामाजिक तथा मानविकी विषयों के साथ-साथ ज्ञान-विज्ञान और तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में आधुनिक शिक्षा का प्रथम केंद्र बना।

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मालवीय जी के विचार

विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में अपने दीक्षांत वक्तव्य में महामना ने छात्रों को देशभक्ति के प्रति प्रेरित करते हुए कहा था, “आपको भी यह ध्यान रखना चाहिए कि यह देश आपका जन्म स्थान है। यह एक सुंदर देश है। सभी बातों के विचार से इसके समान संसार में कोई दूसरा देश नहीं है। आप को इस बात के लिए कृतज्ञ तथा गौरवान्वित होना चाहिए कि उस कृपालु परमेश्वर ने आपको इस देश में पैदा किया है।

आपका दूसरे के प्रति एक मुख्य कर्तव्य है। आपने इसी माता की गोद में जन्म लिया है। इसने आप को भोजन दिया, वस्त्र दिया तथा आप का पालन-पोषण करके आप को बड़ा बनाया है। यही आपकी क्रीड़ाभूमि रही है और यही आपके जीवन का कार्यक्षेत्र बनेगी तथा आपकी सभी आशाओं तथा उमंगों का केंद्र रहेगी। यही आपके पूर्वजों तथा जाति के बड़े से बड़े अथवा छोटे से छोटे मनुष्यों का कार्यक्षेत्र रही है। अतः पृथ्वी के धरातल पर यही भूमि आपके लिए सबसे बढ़कर प्रिय और आदरणीय होनी चाहिए। “

देशभक्ति की भावना

देशभक्ति के संबंध में मालवीय जी का कथन है– ” देशभक्ति का संचार हमारे हृदय से स्वार्थ को निकालकर फेंक देगा। हम अदूरदर्शी, स्वार्थी तथा खुशामदियों की तरह ऐसे कार्य कदापि न करेंगे, जिनसे देशवासियों को हानि पहुँचे। सच्चा धर्म देशभक्ति द्वारा प्राप्त होता है। हम दूरदर्शी, सत्यशील और दृढ़ताप्रिय आत्माओं की भाँति असंख्य कष्ट उठाते हुए भी वही करेंगे, जिससे देश का भला हो। निर्धन, धनवान, निर्बल, बलवान और मूर्ख भी बुद्धिमान हो जाए। सभी प्रकार के समाजिक दुख मिटें और दुर्भिक्ष आदि विपत्तियाँ दूर होकर लाखों बिलबिलाती हुई आत्माओं को सुख पहुँचे। देशभक्ति द्वारा इतने धर्मों का संपादन होता देखकर भी यदि कोई धर्म के आगे देशभक्ति को कुछ नहीं समझता, तो उस पुरुष को जान लीजिए, वह धर्म के तत्व को ही नहीं पहचानता।”

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