नैतिक पतन पर निबंध |Naitik patan par nibandh

Naitik patan par nibandh

भूमिका

जिस देश का या जिस व्यक्ति का नैतिक पतन हो गया , उसका सब कुछ चला जाता है । किसी अंग्रेजी विद्वान ने कहा है- If welth is lost , nothing is lost ; wisdom is lost , something is lost , but if character is lost , everything is lost . अर्थात् धन के नुकसान से कोई नुकसान नहीं मानना चाहिए क्यों कि यह फिर कमाया जा सकता है ; बुद्धि का नुकसान होने पर समझना चाहिए कि कुछ नुकसान हुआ है किन्तु यदि चरित्र का नुकसान हो गया तो समझना चाहिए कि सब कुछ चला गया । कुछ भी शेष नहीं बचा है ।

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ठीक यही स्थिति देश पर भी लागू होती है । जिस देश में नैतिकता का अभाव हो गया, उस देश का अस्तित्व बहुत दिनों तक कायम नहीं रह जाता । इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है भारत में ब्रिटिश शासन । ब्रिटिश शासक सत्ता के गुरूर में मनुष्य को जानवर समझने लग गये थे और उसी अनुरूप भारतीयों के साथ व्यवहार करने लगे थे जिसका परिणाम उन्हें अपमानित होकर भारत से जाना पड़ा । ठीक इसके विपरीत जब भारतीयों में नैतिक मूल्यों ने और वैभव जड़ जमा लिया तो उस सत्ता को जिसके शासन में सूर्यास्त नहीं होता था , उसे देश से बाहर करने में देर नहीं लगी । यह सत्य है कि धन – दौलत , सुख नैतिकता ( सच्चरित्रता ) पर ही प्राप्तक किये जा सकते हैं ।

नैतिकता पर एक प्रसंग

महाभारत में प्रह्लाद की कथा आती है । प्रह्लाद अपने समय का बड़ा प्रतापी और दानी राजा हुआ है । इसने नैतिकता ( शील ) का सहारा लेकर इन्द्र का राज्य ले लिया । इन्द्र ने ब्राह्मण का रूप धारण करके प्रह्लाद के पास जाकर पूछा , “ आप को तीनों लोकों का राज्य कैसे मिला ? ” इसपर प्रह्लाद ने एक ही जवाब दिया कि जिस किसी के अंदर भी नैतिकता का गुण विद्यमान हो उसके लिए ऐसा करना कोई बड़ी बात नहीं है। नैतिकता के बल पर वह विश्व विजेता भी बन सकता है।

प्रह्लाद के पास इन्द्र ब्राह्मण के वेश में पहुँचा। इसपर प्रह्लाद ने उनका खूब आदर-सत्कार किया तथा राज्योचित धर्म के अनुसार ब्राह्मण के वेश में आये इन्द्र देव से कुछ माँगने हेतु प्रार्थना की । इन्द्र ने मौके का लाभ उठाते हुए प्रसन्न होकर प्रह्लाद से नैतिकता का गुण माँग लिया । इसपर वचनबँध प्रह्लाद को अपनी नैतिकता इंद्र को देनी पड़ी । नैतिकता के चले जाते ही सत्य , सदाचार , धर्म, बल , लक्ष्मी सब प्रह्लाद का साथ छोड़ कर चले गये , क्योंकि ये सब वहीं रहते हैं , जहाँ नैतिकता या शील होती है।

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नैतिकता एक अनिवार्य तत्त्व

अतीतकाल में भारत को संसार का गुरु कहा जाता था । वह सोने की चिड़िया कही जाती थी। नैतिकता ( शील ) का इतना महत्त्व है, फिर भी यह समझ से परे है कि क्यों शिक्षा से इसे निकाल फैंक दिया गया है। नैतिकता ही मनुष्य की सबसे बड़ी पूँजी है । इसके बिना मनुष्य के चरित्र का कोई मोल नहीं है। झूठ न बोलना, सच्चाई , उदारता , अहिंसा , शिष्टता , सुशीलता , विनम्रता आदि के गुण नैतिकता के कारण ही मनुष्य में आते हैं ।

नैतिकता से मानव जीवन शान्त और सुखी बनता है । इनकी शिक्षा यदि हम अपने बच्चों को न दें , तो वे अच्छे नागरिक नहीं बन सकते । अच्छा नागरिक बनने के लिए नैतिकता आवश्यक तत्त्व है । भिन्न – भिन्न परिवारों की शिक्षा भिन्न – भिन्न होती है । इसलिए नैतिकता और सच्चरित्रता की शिक्षा केवल हम शिक्षण संस्थाओं में पाठ्यक्रम का अंग बनाकर दे सकते हैं । इससे हम बच्चों का व्यक्तिगत , सामाजिक और चरित्र निर्माण कर सकते हैं । अतः पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा को स्थान दिया जाना अनिवार्य है।

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नैतिक पतन के प्रभाव

आज विद्यालयों में राजनीति का प्रभाव पड़ने के कारण नैतिकता का मानदंड गिरता जा रहा है । इसको पुनर्जीवित करने के लिए नैतिक शिक्षा का पाठ्यक्रम लागू करना बहुत जरुरी है। नैतिक शिक्षा के अभाव से आज के विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता का बोलबाला अधिक है । विद्यार्थियों के द्वारा शिक्षकों के प्रति अनुचित व्यवहार , हड़तालों में भाग लेना , बसें जलाना , गंदी राजनीति में उतरना आदि कुपरिणाम उत्पन्न होते हैं। यही कारण है कि आज का शिक्षित व्यक्ति भी चरित्र से अनभिज्ञ दिखाई देता है ।

शिक्षा को सभ्यता और संस्कृति की कसौटी नहीं माना जाता । नैतिक शिक्षा के बिना ज्ञान – विज्ञान की शिक्षा मनुष्य को ऊँचा नहीं उठाती । आज सम्पूर्ण देश में जो भ्रष्टाचार , लूट – खसोट तथा बेईमानी जारी है , इसका एकमात्र कारण लोगों में नैतिकता के गुणों का न होना ही है । हमें कदापि ये नहीं भूलना चाहिए कि नैतिकता के अभाव में अपने राष्ट्र का ही पतन है ।

निष्कर्ष

नैतिकता के कारण ही मनुष्य सुख – शान्ति को प्राप्त करता है । राग – द्वेष , ईर्ष्या , लड़ाई – झगड़ा , कलह उससे कोसों दूर रहते हैं । अपने कल्याण के साथ वह देश और समाज का कल्याण भी करता है । सच्चरित्र बनने से मनुष्य शूरवीर , धीर और निडर बनता है । इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि नैतिकता मानव को मानव कहलाने के योग्य बनाती है । नैतिकता मनुष्य के चरित्र का निर्माण करती है । नैतिक गुणों के बल पर ही मनुष्य वन्दनीय बनता है । अतः हमारे शिक्षा – शास्त्रियों का यह कर्तव्य है कि वे पाठ्यक्रम बनाते समय नैतिक शिक्षा को पाठ्यक्रम में लागू करें, क्योंकि नैतिकता के विकास पर ही किसी देश का विकास और उन्नति निर्भर करता है। नैतिकता के अभाव में देश का पतन अनिवार्य है।

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