sah shiksha par nibandh
भूमिका
सह-शिक्षा का अर्थ है — छात्र-छात्राओं का एक विद्यालय में एक साथ मिलकर विद्या अध्ययन करना। यह प्रणाली पहले भारत में नहीं थी। इस प्रणाली से लाभ तथा हानियाँ दोनों ही है। यद्यपि यह प्रणाली भारत में पूर्ण रूप से सफल नहीं हुई, फिर भी इसका परीक्षण हो रहा है। बहुत से भारतीय रूढ़िवादी विचारक इस प्रणाली को छात्र- छात्राओं के लिए चारित्रिक पतन के कारण समझते हैं। कुछ प्रगतिशील विचारक इसके पक्ष में भी हैं।
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sah shiksha par nibandh
सह – शिक्षा आधुनिक शिक्षा – प्रणाली है जो पश्चिम से आयात होकर आयी है । भारत एक सांस्कृतिक देश है जहाँ अभी पुरानी सभ्यता या यों कहें कि मध्यकालीन सभ्यता लोगों के मन में रची – बसी हुई है । ऐसी स्थिति में यहाँ आम लोगों को सह – शिक्षा पद्धति थोड़ा खटकती जरूर है किन्तु अब भारत के बहुसंख्यक लोगों ने इस प्रणाली को अपना लिया है । कुछ लोग मजबूरी वश और कुछ लोग स्वेच्छा से । लेकिन उच्च वर्गीय परिवार जो पाश्चात्य सभ्यता से पूरी तरह प्रभावित है , उन्होंने पूरी तरह अपना लिया है ।
प्राचीन काल में समाज में पुरुष को नारी से श्रेष्ठ माना जाता था। पुरुष विभिन्न अधिकारों का उपभोग करता था , किन्तु नारी अधिकांश सुविधाओं से वंचित थी । यहाँ तक कि नारी को पशु की श्रेणी में माना जाता था। किन्तु भारतीयों की विचारधारा में परिवर्तन हुआ । नारी को भी पुरुषों के समान अधिकार दिये जाने लगे , और नारी भी सह – शिक्षा प्राप्त करने लगी ।
लाभ
सहशिक्षा हमारे सामाजिक जीवन की प्रगति के लिए उपयोगी है । इसके अनेक प्रत्यक्ष लाभ हैं–
- छात्र – छात्राओं में पढ़ाई के लिए प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा होगी । इससे उनका बौद्धिक विकास होगा । दोनों वर्ग एक – दूसरे से आगे निकलने का प्रयास करेंगे ।
- सहशिक्षा प्रणाली में लड़के – लड़कियों के अलग विद्यालयों की आवश्यकता नहीं होगी । एक ही भवन में लड़के – लड़कियों के अध्ययन का प्रबन्ध हो जाएगा ।
- सहशिक्षा में छात्र – छात्राओं में एक – दूसरे की मनोवृत्ति के ज्ञान और स्वभाव को समझ लेने की अधिक क्षमता आ जाती है । यह बात उनके भावी जीवन के लिए बहुत उपयोगी है।
- इस सहशिक्षा से सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि लड़कियों में पाई जाने वाली व्यर्थ की लज्जा दूर होगी । दोनों में सहानुभूति की भावना उत्पन्न होगी । वे एक एक दूसरे के दुःख – सुख में निःसंकोच रूप से सहभागी बनेंगे ।
हानि
सहशिक्षा के विरोधी इसमें अनेक त्रुटियाँ बताते हैं । उनका कहना है कि इससे हमारी परम्पराओं तथा संस्कृति पर भीषण आघात हो रहा है । उनके कथानुसार सह-शिक्षा में अनेक हानियाँ भी हैं–
भारतीय शास्त्रों का विधान है कि लड़के और लड़कियों की पाठशालाएँ अलग – अलग होनी चाहिए । सहशिक्षा पूर्णरूप से विदेशी शिक्षा पद्धति पर आधारित है। इसका न तो शास्त्रों में और न ही भारतीय इतिहास में , कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता । सभी महापुरुषों ने इसका विरोध किया है । महात्मा कबीर ने नारी की तुलना सर्पिणी एवं आग से की है । वर्तमान युग में देखने में आता है कि प्रायः विद्यालयों का वातावरण दूषित होता है । अतः दोनों का चरित्र भ्रष्ट हो रहा है । इससे देश का चारित्रिक पतन भी हो रहा है । पुरुष और स्त्री में रुचि की भिन्नता प्राकृतिक है । दोनों की शिक्षा एक ही प्रकार की नहीं हो सकती और दोनों का कार्य – क्षेत्र भी पृथक् – पृथक् है । इसलिए उनकी शिक्षा पृथक् – पृथक् स्थानों में होनी चाहिए ।
उपसंहार
सह-शिक्षा के समर्थकों की विचारशील सम्मति यह है कि प्रारम्भिक श्रेणियों तक सहशिक्षा अच्छी है । मध्यम अवस्था की कन्याओं के लिए यह शिक्षा हानिकारक है । उस अवस्था में ही अज्ञान के दुष्परिणाम प्रकट होते हैं । लड़के और लड़कियों के बड़े हो जाने पर सह-शिक्षा से कोई हानि नहीं , क्योंकि लड़की अपना लाभ स्वयं सोचने में सक्षम हो जाती है । सहशिक्षा से अनेक लाभ हैं , लेकिन एक भीषण हानि है , लड़के – लड़कियों के आपसी साहचर्य से गुमराह होकर पथ भ्रष्ट होने की । उत्तम तो यह है कि लड़के और लड़कियों को पृथक् – पृथक् शिक्षा दी जाए , ताकि उन्हें किसी प्रकार का भय न रहे ।