प्रौढ़-शिक्षा पर निबंध | prod Shiksha par nibandh

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भूमिका

आधुनिक युग विज्ञान का युग है। विज्ञान में हो रही प्रगति के कारण आज अनेक नए-नए संसाधन आविष्कृत हो रहे हैं। नई-नई मशीनें तैयार हो रही है, जो प्रतिदिन की आवश्यकता बनती जा रही है। उनका प्रयोग करने के लिए जानकारी होना आवश्यक है, जो बिना शिक्षा के संभव नहीं है। इसके अतिरिक्त बैंकिंग सेवाएं नई-नई खोजों और सूचना प्रौद्योगिकी के बढ़ते कदम के फलस्वरुप अत्याधुनिक होती जा रही है। इस कारण भी शिक्षा की महत् आवश्यकता है।

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सबसे बड़ी बात तो यह है कि किसी भी राष्ट्र का शिक्षित होना उस रात के सर्वोत्कृष्ट विकास का परिचायक है। शिक्षा के बिना ज्ञान या विज्ञान को प्राप्त करना किसी प्रकार संभव नहीं है। अतएव शिक्षित व्यक्ति ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में यथाशीघ्र अपेक्षित रूप से सफलता प्राप्त कर लेता है। उसके विपरीत अशिक्षित व्यक्ति अपनी इन भावनाओं का शिकार होकर जीवन की सफलता से कोसों दूर हो जाता है। अतः शिक्षा की आवश्यकता को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।

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प्रचार-प्रसार में कमी

शिक्षा का प्रचार-प्रसार आज की अपेक्षा 30-40 साल पहले इतना अधिक नहीं था। उस समय जीविकोपार्जन ही प्रमुख रूप से था। इसी कारण किसान, मजदूर तथा छोटे वर्ग के लोग विशेषकर महिलाएँ सुचारू रूप से व्यवस्थित शिक्षा नहीं प्राप्त कर सकते थे। यह कहना गलत नहीं है कि हमारे देश में अभी भी करीब दो-तिहाई लोग अशिक्षित हैं। यह शिक्षा शहरों की अपेक्षा गाँव में अधिक है। गाँव में अशिक्षा का शिकार प्रौढ़ वर्ग सबसे अधिक है।

नई पीढ़ी तो शिक्षा के प्रति जागरुक है किंतु प्रौढ़ वर्ग शिक्षा के क्षेत्र में एकदम कोरा है। वे अपनी अशिक्षा के कारण अनेक सरकारी सुविधाओं से अनजान होने के कारण उन्हें प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं, साथ ही सरकारी तंत्र के धोखेबाजी के शिकार भी हो जाते हैं। ऐसा इसलिए कि यह अपनी किसी भी प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए शिक्षित व्यक्तियों की खुशामद करते हैं। इस समस्या का समाधान प्रौढ़ शिक्षा द्वारा ही संभव है। जब अनपढ़ लोग पढ़ना सीख जाएँगे, तो इन्हें धोखा देना संभव नहीं हो सकेगा। वे आसानी से समाचार पत्रों के माध्यम से विज्ञप्तियों के द्वारा सरकारी घोषणाओं को जान सकेंगे।

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प्रौढ़-शिक्षा का उद्देश्य

प्रौढ़-शिक्षा का उपयोग की दृष्टि से एक उद्देश्य यह भी है कि अब तक जो लोग अनपढ़ और पिछड़े रह गए हैं, वह शिक्षा के महत्व को समझ सके और कम से कम अपनी संतान को आगे विकास करने का अवसर प्रदान कर सके। चाहे कोई व्यक्ति मजदूर, किसान या किसी भी वर्ग से संबंधित है, निश्चित ही वह शिक्षा प्राप्त कर अपनी योग्यता के साथ -साथ अपनी समझ-बूझ पैदा कर सकता है। जिससे वह अपने कारोबार का भी विकास कर सकता है।

प्रौढ़-शिक्षा की आवश्यकता तब और अधिक उपयोगी प्रतीत होती है, जब कोई शिक्षा के अभाव में अपनी संपत्ति और जायदाद से हाथ धोने के लिए विवश हो जाता है। उसकी इस कमजोरी का लाभ सेठ-साहूकार आसानी से उठाते हैं। वे इस प्रकार का लाभ शिक्षा के अभाव के कारण ही उठा पाते हैं। अशिक्षित का लाभ उठाकर ऐसे लोग ऋण के नाम पर कोरे कागज पर अँगूठा लगवा लेते हैं। गाँव के पटवारी को कुछ खिला-पिलाकर अपने पक्ष में कर लेते हैं। इस प्रकार वे उसकी संपत्ति, जमीन, जायदाद आदि सब कुछ हड़प कर उन्हें बेदखल कर देते हैं। यह निरक्षर बना हुआ इतना भोला बनकर रह जाता है कि वह किसी प्रकार के विरोध करने की सोच भी नहीं रख पाता है।

प्रौढ़-शिक्षा की व्यवस्था

प्रौढ़-शिक्षा के लिए शिक्षा की व्यवस्था अपने गाँव समाज में ही आयोजित की जा रही है, जहाँ वे अपने दैनिक कार्यों से फुरसत पाकर थोड़ा बहुत समय पढ़ाई में लगा सके। निश्चित ही यह समय रात्रि लगभग 8:00 से 10:00 बजे तक का होता है। पढ़ाई के लिए आवश्यक सामग्री भी उन्हें व्यवस्था द्वारा मुफ्त दी जाती है। प्रौढ़ महिला के लिए अध्ययन के समय की व्यवस्था दोपहर में निर्धारित की गई है। ऐसी स्त्रियाँ अपने दोपहर के भोजन से निवृत्त होकर लगभग 2:00 से 4:00 बजे तक का समय अपनी पढ़ाई के लिए दे सकती है। परिवार की स्त्रियों का शिक्षित होना पुरुषों के समान ही उपयोगी और महत्वपूर्ण है। माँ के शिक्षित होने से बच्चों के पालन-पोषण और प्रारंभिक विकास पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। एक शिक्षित माँ स्वयं अपने बच्चों को भी शिक्षा की ओर प्रोत्साहित कर सकती है।

शिक्षा केन्द्र की स्थापना

सरकार ने आज हर जगह नगर, गाँव कस्बों में प्रौढ़-शिक्षा केंद्र स्थापित कर रखे हैं। जहाँ इस प्रकार की व्यवस्था अथवा केंद्र अभी नहीं चालू हो पाए हैं, वहाँ के लोग जिला प्रौढ़-शिक्षा अधिकारी को सामूहिक स्तर पर पत्र लिखकर व्यवस्था करवा सकते हैं। ध्यान रहे, शिक्षा का महत्व जीवन में सर्वोपरि होता है। जो पहले नहीं समझते थे, वह आज समझ रहे हैं। जो आज नहीं समझ पा रहे हैं, वे कल अवश्य समझेंगे। यह प्रयास सफल होने पर निश्चय ही घर-घर में शिक्षा का प्रकाश फैल सकेगा। आज की युवा पीढ़ी का भी एक कर्तव्य है कि वह अपने आस-पास अशिक्षित और अनपढ़ लोगों में शिक्षा के प्रति उत्साह जगाने में अपनी भूमिका निभाएँ। प्रौढ़-शिक्षा निश्चय ही एक प्रशंसनीय योजना है।

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राष्ट्रीय प्रौढ़-शिक्षा को कार्यान्वित करने के लिए विशेष प्रकार की व्यवस्था की गई है। इसके संचालन के लिए केवल सरकारी कर्मचारियों को ही अधिकार नहीं सौंपे गए हैं, अपितु स्वयंसेवी संस्थाओं को भी महत्व दिया गया है। इस योजना को कार्यरूप देने के लिए सरकार अच्छी खासी आर्थिक सहायता दे रही है। शिक्षा विभाग में प्रौढ़- शिक्षा का अलग से एक विभाग स्थापित हो चुका है। इस योजना के सुचारू रूप से क्रियान्वित कर देने से यह अनुमान है कि इससे देश के प्रौढ़-अनपढ़ों को शिक्षित कर उन्हें जागरूक बनाते हुए राष्ट्रीय विकास में अभूतपूर्व योगदान संभव है।

उपसंहार

सरकार द्वारा शिक्षा के विकास के लिए चलाए गए आंदोलन में एक लंबा बजट खर्च करने के बावजूद सरकारी विभाग में जड़ जमाए भ्रष्टाचार के कारण जो योजना कागज पर ही अधिक है, वास्तविकता में नहीं। ऐसा इसलिए कि वे अनपढ़ ग्रामीणों के प्रति न तो कोई सहानुभूति रखते हैं और न ही अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करने की कोई आवश्यकता समझते हैं। इसलिए इनके स्थान पर ऐसे अनुदेशकों की नियुक्ति होना चाहिए, जो निरक्षर ग्रामीणों के साथ घुल मिल सके और अपने उत्तरदायित्व का ठीक और पूरी तरह से निर्वाह कर सकें। सरकार को भी चाहिए कि वह इस कार्यक्रम को प्रभावशाली बनाने के लिए ग्रामीणों के साथ अपेक्षित रूप से संपर्क साधनों को बढ़ाएँ। इसके साथ ही स्वयंसेवी संस्थाओं को महत्व देते हुए उनके साथ पूरा सहयोग करे।

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