बाढ़ पर हिंदी निबंध | badh per hindi nibandh

badh per hindi nibandh

भूमिका

संसार की उत्पत्ति जल से मानी जाती है । जन्म का कारण तो वह है ही , जीवन भी है ; प्रकृति की अमूल्य देन है और है सबसे बड़ा रसायन । वही जल जब आवश्यकता से अधिक बरसकर चारों तरफ अपना प्रभुत्व जमा लेता है तो उसे बाढ़ कहा जाता है । कितना भयानक होता है बाढ़ का रूप ।

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भयंकर बाढ़ की स्थिति

आज भी याद है मुझे बाढ़ के वे भयानक दिन , वह भयानक दृश्य – ओह ! सन् 1977 के अगस्त का महीना था । राजधानी में तेज वर्षा और कई दिनों की झड़ी के कारण सड़के पानी में डूब गयी थीं । यातायात ठप्प हो गया था । दिल्ली के गाँवों में इससे भी भयंकर वर्षा हुई , जिसके कारण नजफगढ़ नाला चढ़ गया और निकटवर्ती गाँवों को पानी का खतरा बढ़ गया । कुछ अदूरदर्शी किसानों ने जब देखा कि पानी किनारा लाँधकर उनके खेत – खलिहानों में भरने वाला है ,

तो खेत बचाने के लिए उन्होंने कुछ दूरी पर नाले का बाँध काट दिया , ताकि बढ़ा हुआ पानी उधर निकल जाये और उनके खेत बच जायें । किन्तु उन्हें क्या पता था कि इस प्रकार उफनते नाले की धारा काटकर वे भयंकर बाढ़ को निमंत्रण दे रहे हैं , जिसकी लपेट में आधी दिल्ली आ जायेगी । कहा जाता है , यह इस शताब्दी में दिल्ली की सबसे भयंकर बाढ़ थी ।

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सहायता कार्य

आर्य समाज की ओर से बाढ़ पीड़ितों को सहायता के लिए अपील निकाली गयी थीं । वस्त्रों , रुपयों और खाद्य – पदार्थों के ढेर के ढेर पहुंचने लगे । आर्य समाज , सनातन धर्म , कांग्रेस पार्टी , जनता पार्टी तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने मिल – जुलकर नजफगढ़ में एक सहायता – शिविर खोला । मेरे पास देने को धन नहीं था , किन्तु में सहायता – कार्य में किसी से पीछे भी नहीं रहना चाहता था । मैंने एक स्वयंसेवक के रूप में शिविर में काम करने के लिए अपनी सेवाएं प्रस्तुत कर दी । भोजन , कम्बल , चिस्तर , औषधियाँ तथा वस्त्र आदि के भण्डार लेकर हमारा ट्रक दिल्ली से चला । हमारा एक उद्देश्य स्थिति की गम्भीरता का अध्ययन करना भी था । इस मतलब के लिए हमें एक जीप भी मिल गयी । मैं उसी में सवार होकर आवश्यकतानुसार सहायता – कार्य करता रहा ।

हमने देखा कि पंजाबी बाग एक्सटेंशन की सड़कों पर पानी तैर रहा था । बाली नगर , जे . जे . कॉलोनी और तिलक नगर के निचले स्थानों में मकानों के अन्दर पानी प्रविष्ट हो चुका था । वहाँ के लोग साइकिलों पर , सिर पर , बगल में , किराये के टट्टुओं – घोड़ों और ट्रकों पर सामान लादकर सुरक्षित स्थानों की ओर जा रहे थे । पंजाबी बाग एक्सटेंशन के उस भाग में जो नाले की ओर है , प्रायः सभी मकानों के अन्दर पानी आ गया था । यहाँ के निवासी किंकर्तव्यविमूढ़ – से होकर रह गये थे । न घर में रहते चैन था और न घर छोड़ने का साहस । तिलक नगर से आगे ज्यों – ज्यों हम नजफगढ़ की ओर बढ़ते गये , त्यों – त्यों बाढ़ का क्षेत्र विस्तृत और अधिकाधिक भयानक होता गया ।

बाढ़ का भयानक रूप

जिससे बाढ़ भयंकर विनाशलीला ला रही थी । स्थान – स्थान पर पानी भर गया था । मकानों में , दुकानों में दो-दो , तीन तीन फुट व कहीं इससे भी अधिक पानी भरा हुआ था । कई बाजारों में पानी भर कर शान्त खड़ा था और सब प्रकार की गन्दगी बहकर आने के कारण चारों ओर दुर्गन्ध फैल रही थी । पानी के बहाव ने नजफगढ़ के बाहरी ( ग्रामीण ) क्षेत्र को बुरी तरह ग्रस लिया था । लगभग पाँच सौ मकान पूरी तरह नष्ट हो गये थे और कई सौ मकान पानी में डूबे हुए थे ।

नजफगढ़ सड़क भी कई स्थानों पर जलमग्न थी । हजारों लोग बेघर बार हो गये थे । आस – पास के गाँव बाढ़ के पानी के कारण बाकी दुनिया से कट गये थे और उनसे सभी प्रकार के सम्बन्ध टूट गये थे । हमें बाढ़ग्रस्तक्षेत्र के निवासियों ने बताया कि उनके अनेक दुधारू पशु तथा कुछ साथी पानी में बह गये हैं । सब स्थानों से समाचार भी तो प्राप्त नहीं होते थे । अत : हानि का पूर्ण अनुमान कर पाना सम्भव न था ।

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बाढ़ का विकराल दृश्य

नजफगढ़ कस्बे के भीतर और चारों ओर पानी भरा था । हमारी जीप तीन – चार फुट गहरे पानी से होकर जा रही थी । हमारे जूते , पतलूनें और बुशर्ट पानी में भीग गये । आगे जाकर हमने जो भयंकर दृश्य देखा तो रोंगटे खड़े हो गए । जहाँ तक दृष्टि जाती थी , वहाँ , तक पानी ही पानी भरा दिखायी देता था । जहाँ कुछ दिन पहले खेतियाँ लहराती थीं , वहाँ अब मटमैले पानी की झील लहरा रही । पानी में कहीं शव तैर रहे थे और कहीं जीवित गाय भैंस आदि पशु बहे जा रहे थे । कहीं उखड़े हुए पेड़ों पर बैठे हुए लोग अपनी सहायता के लिए पुकार रहे थे । हमने एक अद्भुत चमत्कार भी देखा । लकड़ी के लट्ठों पर साँप और नेवला , कुत्ता और बिल्ली एक साथ बैठे हुए तैर रहे थे ।

बाढ़ के खतरे के कारण वे जन्मजात वैर भी भूल गये थे । प्रकृति की लीला ! उसने जन्मजात विरोधियों को भी सुरक्षा के लिए एक ही मंच पर ला दिया था ! पानी में टूटे हुए पुलों व घरों के शहतीर तैर रहे थे । खडी फसल पूरी तरह नष्ट हो गयी थी । जहाँ पानी का उतार कुछ कम हुआ , वहाँ मलेरिया , हैज़ा आदि रोग फैल गये । दवाई के अभाव में पाँच व्यक्तियों के प्राण चले गये । तब दिल्ली नगर निगम तथा दिल्ली प्रशासन की ओर से दवाइयों तथा चिकित्सा की व्यवस्था की गयी , जिससे अनेक लोगों की प्राण – रक्षा संभव हो सकी ।

असहनीय दृश्य

एक ओर तो बाढ़ का यह भयंकर दृश्य था , दूसरी ओर हमने देखा कि कुछ लोग बैठे आराम से ताश खेल रहे थे , हुक्का पी रहे थे और कहकहे लगा रहे थे । सम्भवतः उनकी हानि कुछ कम हुई होगी , अथवा वे बाढ़ का तमाशा देखने वाले तमाशबीन होंगे । कहीं-कहीं कुछ असामाजिक तत्त्वों ने तो बेचारे बाढ़ पीड़ितों का बचा – खुचा माल – असबाब तक ही साफ करना शुरू कर दिया था । उनका हृदय अवश्य पाषाणमय होगा । हमने एक और विचित्र दृश्य देखा । कुछ लोग वहाँ केले , चाय और पकौड़े बेचने पहुंचे हुए थे । हमने दाम पूछा तो सामान्य से कई गुना अधिक बताया गया । बाढ़ पीड़ितों से भी लाभ कमाना इनका काम था । लाभ कमाने की प्रवृत्ति आदमी को किस सीमा तक गिरा देती है , यह देख हम अत्यधिक चकित थे ।

संस्थाओं द्वारा सेवा कार्य

इसके विपरीत सामाजिक संस्थाओं के स्वयंसेवकों का कार्यक्षेत्र भी वहीं था । वहीं उनका शिविर लगा था , जहाँ भूखों को रोटी , नंगों को वस्त्र , रोगियों को औषधि एवं सभी को बिस्तर – कम्बल और अन्य सहायता दी जा रही थी । घिरे हुए इलाकों में वायु – सेना के परिवहन विमान आवश्यक वस्तुएँ गिरा रहे थे । सरकार ने बाढ़ पीड़ितों के लिए पाँच लाख रुपये स्वीकृत किए थे । स्वयंसेवकों एवं सैनिकों का एक संयुक्त दस्ता डूबते हुए लोगों को बचाने के कार्य में संलग्न था । उनके पास बीस नावे और चार अग्निबोट थीं ।

दूसरी ओर फॉयर ब्रिगेड का एक दस्ता निचले स्तर के इलाके में भरे हुए पानी को पम्पिंग सेटों द्वारा बाहर निकाल रहा था । सबसे खतरनाक काम था उन सैनिकों का जो पानी के बहाव को रोकने के लिए बाँध की दरार में रेत के बोरे भर रहे थे । दो दिन और दो रातों के लगातार परिश्रम के बाद वे बाँध की दरार पाटकर पानी के बहाव को रोकने में सफल हो सके । लगभग पन्द्रह दिन के भयंकर उपद्रव के पश्चात् बाढ़ का पानी धीरे – धीरे उतरने लगा । पूरा पानी सूखने में तो छ सात मास लग गये थे । जिन सड़कों पर आज हमारी मोटरें दौड़ती हैं , उन सड़कों पर हमने नावें चलाकर यात्रा की थी । वह बाढ़ का भयंकर दृश्य मुझे कभी नहीं भूलेगा !

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