सुमित्रानंदन पंत पर निबंध |sumitranandan pant par nibandh

sumitranandan pant par nibandh

भूमिका

छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत प्रकृति के सुकुमार कवि कहे जाते हैं। उनके काव्य में प्रकृति सुंदरी की मनोहर छवियां अंकित की गई है। वे कोमल कल्पना के कवि हैं और अपनी सुकुमार कल्पना के बल पर प्रकृति का ऐसा अनुपम चित्रण करते हैं कि समग्र दृश्य पाठकों के समक्ष साकार हो जाता है। प्रकृति ने कवि को अनंत कल्पनाएं , असीम भावनाएं एवं असंख्य सौंदर्य अनुभूतियां प्रदान की है। वे स्वयं यह स्वीकार करते हैं कि कविता करने की प्रेरणा मुझे प्रकृति निरीक्षण से प्राप्त हुई है।

sumitranandan pant par nibandh

जीवन परिचय

सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 ई. को उत्तर प्रदेश के अल्मोड़ा जिले के कौसानी नामक गाँव में हुआ था। उनके पिताजी का नाम पंडित गंगादत्त पंत था। वे कौसानी में चाय-बागान के मैनेजर थे। साथ ही वे लकड़ी और वस्त्रों का व्यापार भी किया करते थे। उनकी माता जी का नाम सरस्वती देवी था। जो पंत को जन्म देने के 6 घंटे बाद ही स्वर्ग सिधार गई। सुमित्रानंदन पंत का पालन-पोषण उनके दादी के द्वारा किया गया।पन्त जी के बचपन का नाम गोसाई दत्त था। सुमित्रानंदन पंत अपने माता – पिता के 8वें संतान थे। उनके तीन बड़े भाई और चार बड़ी बहनें थी।

sumitranandan pant par nibandh

पाँच वर्ष की आयु में पन्त ने शिक्षा लेना आरंभ किया। उनके पिता ने पंत को लकड़ी की पट्टी पर श्री गणेशाय नमः लिखकर हिंदी वर्ण लिखना सिखाया। पन्त जी का प्रथम विद्यालय कौसानी वनार्क्यूलर स्कूल हुआ। उनके फूफाजी द्वारा पंत को संस्कृत की शिक्षा मिली तथा 1909 ई. तक मेघदूत, चाणक्य नीति, अभिज्ञान-शाकुन्तलम् आदि का ज्ञान उन्हें दिलाया गया। पंत के पिता ने उन्हें अंग्रेजी की शिक्षा दी। फिर वे अल्मोड़ा के सरकारी हाईस्कूल में दाखिला लिए। उसके बाद हाईस्कूल की परीक्षा काशी के जयनारायण हाईस्कूल, बनारस से द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण किए। आगे की शिक्षा के लिए वे प्रयाग के म्योर कॉलेज में प्रवेश लिया।
पन्त जी का संगीत से बहुत लगाव था। उन्होंने सारंगी, हारमोनियम, तथा तबला पर संगीत का अभ्यास किया। पंत जी की मृत्यु 28 दिसम्बर 1977 को हुई।

पंत की काव्य यात्रा

कविवर सुमित्रानंदन पन्त हिन्दी के उन कवियों में से एक हैं जिनकी कविता का स्वर समय के साथ – साथ बदलता रहा है । उनकी प्रारम्भिक कविताएं प्रकृति सौन्दर्य और प्रकृति प्रेम से सम्पन्न छायावादी कविताएं थीं , परन्तु बाद में उनकी कविता ने प्रगतिवाद का रास्ता पकड़ लिया और शोषण का विरोध करने वाली ऐसी कविताएं लिखने लगे जिनमें यथार्थ बोध पर पर्याप्त ध्यान दिया गया है । उनके काव्य विकास का तीसरा चरण अन्तश्चेतनावादी युग के रूप में सामने आया जिसमें उनकी कविता अरविन्द दर्शन से प्रभावित रही है । पन्त के काव्य विकास का अन्तिम चरण नव – मानवतावादी युग के रूप में जाना जाता है जिसमें कवि ने नव – मानवता का सन्देश सुनाया है ।

पन्त काव्य के क्रमिक विकास को चार चरणों में विभक्त किया जा सकता हैं ।

1.छायावादी युग

2.प्रगतिवादी युग

3.अन्तश्चेतनावादी युग

4.नव-मानवतावादी युग

पंत की प्रमुख रचनाएँ

उच्छवास(1920)
ग्रन्थि(1920)
वीणा(1927)
पल्लव(1928)
गुंजन(1932)
युगान्त(1935)
युगवाणी(1936)
ग्राम्या(1939)
स्वर्ण किरण(1946-47)
स्वर्ण धूलि(1947-48)
कला और बूढ़ा चाँद(1959)
अतिमा(1955)
लोकायतन(1961)
चिदम्बरा()

पन्त की काव्यगत भाषा

कविवर सुमित्रानन्दन पन्त शब्दशिल्पी हैं । वे कोमल कल्पना के कवि कहे जाते हैं । उनके काव्य में यह कोमल कल्पना सर्वत्र दिखाई देती है । शब्द चयन में कोमलता एवं भाषागत कोमलता भी इसी के अन्तर्गत आने वाले तत्व हैं । पंतजी ने अपने छायावादी काव्य संकलन ‘ पल्लव ‘ में चालीस पृष्ठों की लम्बी भूमिका ‘ प्रवेश ‘ शीर्षक से दी है जिसमें उन्होंने काव्यभाषा के सम्बन्ध में अपनी बेबाक टिप्पणियाँ दी हैं । पंतजी भाषा , छंद विधान , अप्रस्तुत योजना , नाद सौन्दर्य एवं अलंकार विधान के अभिनव प्रयोग अपनी रचनाओं में करते रहे हैं ।

‘ पल्लव ‘ को उसकी भूमिका के कारण छायावाद का ‘ मेनीफेस्टो ‘ कहा गया है । भाषा एवं भाव की एकता पर पंत जी विशेष बल देते हैं । अनुभूति को प्रेषणीय बनाने के लिए वे व्याकरण की लौह – शृंखलाओं को तोड़ते हुए ‘ विचलन ‘ की प्रवृत्ति का भी परिचय देते हैं । पंत के काव्य में चार मूल तत्व हैं:– राग तत्व , कल्पना तत्व , बुद्धि तत्व और शैली तत्व । इनमें से कल्पना तत्व सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। कल्पना के बल पर कवि विविध रूपों का विधान करता है तथा जीवन और जगत की व्याख्या भी करता है।

उपसंहार

निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि पंत जी मूलत: सौंदर्य के चितेरे कवि हैं। प्रकृति सुंदरी ने तो उन्हें आकृष्ट किया ही है , नारी सौंदर्य एवं भाव सौंदर्य के भी रम्य चित्र उनकी रचनाओं में प्रचुरता से मिलते हैं। उनकी सौंदर्य चेतना उनके समस्त कृतित्व में व्याप्त है। वस्तुत: पंत सत्यं , शिवं और सुंदरं के कवि हैं।

Post a Comment

Previous Post Next Post