Jal Pradushan per nibandh
भूमिका
जल व जीवन एक – दूसरे का पर्याय है । पृथ्वी पर अगर जल न होता तो सजीव का अस्तित्त्व ही न होता । जल के कारण ही पृथ्वी पर जीवन संभव है , जबकि अन्य ग्रह या उपग्रहों पर जल न होने के कारण जीवन संभव नहीं है । पानी जीवनदायी है , इसके अभाव में चारों ओर हाहाकार मच जाता है । पृथ्वी पर लगभग 71 % पानी है , लेकिन इस पानी का केवल 3 % पानी मीठा है जो सजीवों के अस्तित्त्व के लिए आवश्यक है । जिस प्रकार सागर में रहकर भी सागर का पानी नहीं पी सकते , उसी प्रकार पानी की इतनी उपलब्धता के बाद भी पीने योग्य पानी बहुत कम है और जल प्रदूषण की समस्या ने एक भयानक रूप धारण कर लिया है ।
प्रश्न उठता है कि जल प्रदूषण क्या है ? एक या उससे अधिक अवांछित पदार्थ पानी में घुलने से जब पानी के भौतिक व रासायनिक गुणधर्म बदल जाते हैं और पानी उपयोग करने के योग्य नहीं रहता उसे जल प्रदूषण कहा जाता है ।
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जल प्रदूषण के कारण
1) मलयुक्त पानी – इस प्रकार के पानी में मनुष्य का मल – मूत्र आदि होता है जिसे सीधे नदियों में छोड़ दिया जाता है और नदियों का पानी प्रदूषित हो जाता है । यह पानी जलीय जीवों , वनस्पति आदि के लिए हानिकारक होता है ।
2) कारखानों का दूषित पानी – विभिन्न कारखानों से निकलने वाले अनेक प्रकार के घातक एवं विषैले तत्त्व सीधे नदी में छोड़ दिए जाते हैं । इन पदार्थों में अम्ल , क्षार , कार्बन , रंग , साबुन , मोम , अमोनिया , क्लोरीन , हाइड्रोजन सल्फाइड आदि प्रमुख हैं । एक अनुमान के अनुसार अकेले राजस्थान में लगभग 1500 कपड़ा छपाई केन्द्र प्रतिदिन 1.5 करोड़ लीटर दूषित पानी खुली नदियों , नालों तथा तालाबों में डालते हैं । बंगाल का पटसन उद्योग अकेले लाखों टन अपशिष्ट पदार्थ प्रतिदिन हुगली नदी में डालता है ।
3) कीटनाशक रसायन – हमारे देश की जनसंख्या लगातार बढ़ती जा रही है । बढ़ती जनसंख्या के लिए अधिक अन्न उत्पादन करना आवश्यक होता जा रहा है । अधिक अन्न उगाने के लिए नए – नए कीटनाशक , कृमिनाशक तथा फफूंदीनाशक दवाओं का उपयोग किया जाता है । इनके प्रयोग से पर्यावरण का संतुलन बिगड़ गया है । नदी , नाले , तालाबों का पानी दूषित हो गया है । इस पानी से मनुष्य में कई प्रकार की बीमारियाँ जैसे प्लेग , डेंगू , मलेरिया आदि ने जन्म लिया है । आज विश्व में लगभग 1000 से भी अधिक कीटनाशकों की बिक्री होती है जो लगभग 5 लाख टन से भी अधिक है ।
4) रासायनिक खाद – विश्व में हरित क्रांति के बाद अनाज के उत्पादन में जो रिकार्ड बढ़ोतरी हुई है , उसका कारण है संकरित बीज तथा कीटनाशकों के साथ – साथ रासायनिक खादों का अधिकाधिक प्रयोग । इसके योग से जल तथा भू – जल प्रदूषण की समस्या गंभीर बनती जा रही है । नाइट्रोजन , फास्फोरस तथा पोटेशियम तत्वों के पानी में मिलने से कई वनस्पति असीमित रूप से बढ़ने लगती हैं जिसके कारण पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है तथा जलीय जीव मर जाते हैं ।
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5) कृत्रिम डिटर्जेन्ट्स – आजकल कपड़े धोने के लिए साबुन से भी प्रभावी व आसान डिटर्जेन्ट्स का प्रयोग बढ़ गया है । यह रासायनिक पदार्थ पानी में मिलने से उसे विषैला बना देता है । ये जल की सतह पर एक पतली परत के रूप में जमा हो जाते हैं , जिससे वायुमंडल की ऑक्सीजन उस जल में नहीं घुल पाती और जल के जीव मर जाते हैं ।
6) विषैली धातु — खानों , औद्योगिक क्षेत्रों , कारखानों आदि से निकलने वाले पानी में सीसा , ताबा , आर्केनिक पारा व निकल आदि विषैली धातुएँ होती हैं । यह पानी नदियों में प्रवेश कर जाता है । इसके अत्यन्त विषैलेपन के कारण मछलियाँ आदि जीव मर जाती हैं । इसके सेवन से मनुष्य में कैंसर , बहरापन , सांस के रोग , त्वचा के रोग , आतड़ियाँ तथा पेट के रोग हो जाते हैं ।
7) मानवीय क्रियाएँ – मनुष्य प्राप्त शौचादि तथा अन्य क्रियाएँ तालाबों के आस – पास व नदी के किनारे करता है । कई जगह धार्मिक मान्यता के चलते मृत्यु के बाद शव को गंगा व दूसरी नदियों में डाल दिए जाते हैं या शवों को जलाने के बाद उनकी राख हरिद्वार में नदी में बहा दी जाती है । कई चालक ट्रक , मोटरगाड़ी आदि की धुलाई भी नदी में उतार कर करते हैं । गांव व शहरों में सार्वजनिक जल वितरण केन्द्रों में जो पानी नाले व दूसरे साधनों से लाया जाता है उसमें भी कपड़े धोए जाते हैं , पशुओं को नहलाया जाता है । इस प्रकार मानव की ऐसी क्रियाएँ जल प्रदूषण को बढ़ाती हैं ।
8) कच्चे तेल का रिसाव – समुद्री मार्गों से कच्चे तेल का बड़ी मात्रा में जहाजों द्वारा आयात – निर्यात किया जाता है । किसी दुर्घटना के कारण या तेल की अदला – बदली करते समय 20 % से 25 % तक तेल का रिसाव होता है । पानी से हल्का होने के कारण यह एक परत के रूप में तैरता रहता है जिससे पानी में ऑक्सीजन घुलने की क्रिया रुक जाती है । इससे समुद्री जीव व वनस्पतियों को ऑक्सीजन नहीं मिलती ओर वे मर जाते हैं ।
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जल – प्रदूषण के दुष्प्रभाव
सारे जीव जगत पर चाहे वे मनुष्य हों , जीव हों या पौधे हों , जल प्रदूषण का प्रभाव समान रूप से पड़ता है , जो निम्न प्रकार से है :–
1) स्वास्थ्य पर पड़ने वाला प्रभाव – इसके अन्तर्गत जल से पैदा होने वाले रोग तथा भारी धातुओं से होने वाली बीमारियाँ मुख्य हैं ।
2) जल जीवों पर प्रभाव – दूषित जल से मछलियों को विशेष हानि होती है और इस खाद्य श्रृंखला में मछली का भक्षण करने वाले पक्षी व जन्तु प्रभावित होते हैं ।
3) थलीय जीवों पर प्रभाव – कीटनाशकों एवं उर्वरकों का अपघटन बड़ी कठिनता से होता है । अतः आहार श्रृंखला में ये एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुँचकर नुकसान पहुंचा सकते हैं ।
4) भूजल पर प्रभाव – जल प्रदूषण से शहरी जल आपूर्ति बुरी तरह प्रभावित होती है । पानी में जीवाणुओं में वृद्धि होने से वातावरण में दुर्गंध बढ़ जाती है और विषैले पदार्थों की मात्रा बढ़ जाती है जिसका वायु की स्वच्छता पर बुरा प्रभाव पड़ता है ।
जल – प्रदूषण से बचाव के उपाय
जल प्रदूषण से बचाव के लिए निम्न उपाय अपनाने चाहिए—
1) लोगों को जल प्रदूषण के कारण होने वाली हानियाँ और जल प्रदूषण को रोकने हेतु बनाए गए कानूनों को प्रभावी बनाने के बारे में लोगों को शिक्षित कर जल प्रदूषण के खतरों के प्रति चेतना जाग्रत की जानी चाहिए ।
2) पीने के जल स्रोतों के पास गंदगी नहीं रहनी चाहिए ।
3) जल स्रोतों से पानी निकालने के लिए सुरक्षित उपाय अपनाने चाहिए ।
4) कारखानों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों के निष्पादन की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए ।
5) नदी या अन्य जल स्रोतों में अपशिष्ट पदार्थ बहाना या डालना गैरकानूनी घोषित कर प्रभावी कदम उठाने चाहिए ।
6) समुंद्र में किए जा रहे परमाणु परीक्षणों पर रोक लगानी चाहिए ।
7) पानी में जीवाणुओं को नष्ट करने के लिए ब्लीचिंग पाउडर व क्लोरीन का प्रयोग किया जाना चाहिए ।
निष्कर्ष
आज की दुनिया में जल प्रदूषण एक समस्या बन गया है। ऐसे में हमें तुरंत कड़े कदम उठाने चाहिए। अगर हम भविष्य में पानी की आपूर्ति को सुरक्षित रखना चाहते हैं और अपने देश के नागरिकों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराना चाहते हैं, तो हमें इस मुद्दे का अभी समाधान करना होगा। अगर हम और इंतजार करते हैं तो स्थिति और भी खतरनाक हो जाएगी।