सरदार वल्लभ भाई पटेल पर निबंध | Sardar Vallabh Bhai Patel nibandh

Sardar Vallabh Bhai Patel par nibandh

भूमिका

सरदार वल्लभभाई पटेल ‘ लौह पुरुष के रूप में जाने जाते हैं । उन्होंने असाधारण बुद्धिमत्ता तथा दृढ़ निश्चय से , प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सफलताएँ अर्जित की थीं । वे मानवीय गुणों से पूर्ण होने के कारण भी महान थे । उनमें प्रशासनिक क्षमता अप्रतिम थी । उन्होंने अनेक समस्याओं पर बड़ी दृढ़ता से निर्णय लेकर राष्ट्र निर्माण का कार्य किया । उनका नाम विश्व के प्रमुख राष्ट्र निर्माताओं में सदा सम्मान से लिया जाएगा ।

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जीवन परिचय

सरदार पटेल का जन्म नडियाद जिले के खेड़ा में 31 अक्टूबर 1875 ई. को हुआ था। 15 दिसम्बर 1950 ई. को इनकी मृत्यु हो गयी। उनके पिता का नाम झवेरभाई था और माता का नाम लाडबा देवी था। वे अपने तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। सरदार पटेल स्वभाव से ही निर्भय , वीर तथा दृढ़ निश्चयी थे । उन्हें लौह पुरुष ‘ कहा जाता था । वे बोलते कम तथा कार्य अधिक करते थे । वे उत्तरदायी नेता तथा मूक अनुयायी थे । व्यक्तिगत जीवन में सरदार न केवल एक अच्छे मित्र थे , वरन वे सभी परिस्थितियों में अपने साथियों का साथ दिया करते थे । सार्वजनिक जीवन में यद्यपि उनको ‘ लौह पुरुष ‘ कहा जाता था , किन्तु उनका हृदय अत्यंत कोमल था ।

वे प्रायः चुप रहते थे और बोलते भी थे तो बहुत कम शब्दों में , केवल काम की बात करते थे । उनके शब्द प्रायः तीक्ष्ण तथा काट करनेवाले होते थे । जिनको उनके निकट संपर्क में रहने का अवसर नहीं मिला , वे उनके कोमल हृदय को नहीं देख पाए थे । मनुष्यों तथा समस्याओं के संबंध में उनकी विशेष निपुणता तथा उनका ठोस निर्णय होने पर भी , वे अपने विश्वासपात्र व्यक्तियों के संबंध में बहुत कुछ बच्चे जैसे सरल तथा विश्वासपात्र थे ।

किसी मित्र के आड़े समय में काम आने के लिए वे अपने को वचनबद्ध मानते थे । उनका सबसे बड़ा गुण यह था कि वे किसी व्यक्तिगत उद्देश्य से कभी किसी पर प्रहार नहीं करते थे । वे प्रत्येक वस्तु का जायजा लेकर उसके अनुकूल अपना रुख तथा आचरण इस प्रकार बनाते थे कि वह वस्तु देशहित के अधिक – से – अधिक अनुकूल हो । उनकी असाधारण बुद्धिमत्ता तथा उनका हास्य उनकी ऐसी विशेषता थी कि उनकी संगति में कोई भी व्यक्ति अत्यधिक प्रतिकूल परिस्थिति में भी अपने को सुखी ही मानता था ।

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व्यक्तित्व

सरदार का व्यक्तित्व प्रेरणादायक था । वे किसी भी विचार को तत्काल समझ लेते , उस पर तत्काल कार्यवाही करते थे । उनका विश्वास था कि मित्रों तथा साथी कार्यकर्ताओं के एक नेता के प्रति भक्ति में परस्पर बँधकर सामूहिक रूप में कार्य करके ही किसी कार्य को संपन्न किया जा सकता है । वे सदा ही चुस्त रहते और सूचनाओं को ग्रहण कर उनको अपने मन में उसी प्रकार सँजोकर रखते थे , जिस प्रकार शहद के छत्ते के किसी विशेष छिद्र में शहद जमा रहता है और उसे तब तक जमा रखते थे , जब तक कि उस मामले के पक जाने पर उसका उपयोग करने की आवश्यकता न पड़ती ।

वे स्वस्थ होते या अस्वस्थ , दिल्ली में होते अथवा मुंबई में ; सोते होते अथवा जागते ; सोचते होते अथवा स्वप्न देखते होते ; तत्कालीन महत्व की समस्याओं पर न केवल उनका ध्यान लगा रहता था , वरन वे उसका उसी समय हल भी सोच लेते और उनका टेलीफोन प्रथम उनके मन में कार्य करके , फिर बाहर उनके कार्यालय में कार्य करता रहता । इसी प्रकार भारतीय रियासतों का भाग्य एक मिनट में तय किया जाता तथा नौ प्रांतों के भाग्य का निपटारा एक सेकण्ड में किया जाता था । जमींदारों तथा उनको मिलनेवाले मुआवजे का प्रश्न होता , तो प्रांतीय सरकारों की लगाम एक क्षण में खींच ली जाती थी । काँग्रेस कमेटियों तथा प्रांतीय मंत्रिमंडलों के संबंध का प्रश्न होता , तो प्रत्येक को क्षणभर में अपने – अपने स्थान पर स्थिर कर दिया जाता ।

स्वतंत्रता सेनानी

यदि वे भारत के स्वातंत्र्य युद्ध के लिए एक वीर सैनिक तथा युद्धविद्या विशारद थे , तो वे एक नए राज्य के निर्माता के रूप में एक चतुर तथा अधिकार संपन्न प्रशासक के रूप में भी कम बड़े नहीं थे । इसी से उन्होंने लगभग छह सौ रियासतों को भारत में मिलाकर एक कर दिया । भारत में कई प्रकार के राज्य थे , किन्तु उन्होंने अपनी विशेष राजनीतिज्ञता से राजनैतिक संस्थाओं को एक ऐसा बड़ा तथा विशाल प्रदर्शन कक्ष बनाकर खड़ा कर दिया था , जिसमें मध्यकालीन तथा आधुनिक सभी प्रकार की प्रशासन प्रणालियों को स्थान प्राप्त था ।

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सफल नेतृत्वकर्ता

नेतृत्व दो प्रकार का होता है । एक नेपोलियन जैसे नेता , जो नीति तथा उसके विस्तार दोनों के अधिपति होते हैं । ऐसे नेताओं को केवल अपनी आज्ञाओं को कार्य रूप में परिणत करनेवाले साधनों की आवश्यकता होती है । इस प्रकार के अलौकिक महापुरुष कम जन्म लेते हैं । सरदार का नेतृत्व दूसरे प्रकार का था । उन्होंने अत्यन्त सावधानी से अपने अफसर चुने और फिर उनके कार्य में हस्तक्षेप किए बिना उन पर उस कार्य को मूर्त रूप देने का उत्तरदायित्व डाल दिया । उन्होंने यह कभी प्रदर्शित नहीं किया कि वे संसार की प्रत्येक बात जानते हैं । उन्होंने अपने पदाधिकारियों से पूर्व परामर्श किए बिना , कभी कोई नीति निर्धारित नहीं की ।

मृदुभाषी

राष्ट्र के लिए की हुई बड़ी सफलताओं के कारण सरदार जितने महान थे , अपने मानवीय गुणों के कारण वे उससे भी अधिक महान थे । उनके पास हाजिर – जवाबी तथा हँसोड़पन का एक निस्सीम कोष था । अपने सहायकों तथा अनुयायियों के अपराध करने पर भी वे उन पर कृपा किया करते थे । वे प्रत्येक ऐसा कार्य करते थे , जो एक पिता अपने पुत्र के लिए किया करता है । जिस पर वे एक बार विश्वास कर लेते फिर वे उस पर कभी भी संदेह नहीं करते थे । विश्वास से विश्वास उत्पन्न होता है । सरदार तथा उनके अनुयायियों के संबंध का यही रहस्य था । वे बहुत कम बोलते और सुनते अधिक थे । जब वे बोलते थे तो कार्य करने की घोषणा ही किया करते थे और वह युद्ध – घोष होता था । उनको सहमत करने में बहुत समय लगता था ।

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कुशल सेनापति

यद्यपि उनको शक्ति को हथियाना तथा हठी विद्रोहियों को अनुशासन में लाना आता था , किन्तु उन्होंने कभी भी शक्ति प्राप्त करने की लालसा नहीं की । वह तो उनके हाथ में जबर्दस्ती थमा दी जाती थी । उसका अंतिम क्षण आने तक वे अपने को परदे में रखते थे । किन्तु जिस युद्ध का उनको सेनापति बनाया जाता , उसमें उनकी आज्ञा अंतिम होती थी । सेनापति के रूप में उनको युद्ध – कला के अतिरिक्त उसके दाँव – पेंच भी आते थे । वे युद्ध कौशल दिखलाना तथा अंतिम चोट करना भी जानते थे । व्यक्तिगत ईर्ष्या , द्वेष तथा विरोधी व्यक्तियों अथवा दलों की निर्बलताओं को स्मरण रखकर वे अपने मस्तिष्क में सावधानी से लेखा – जोखा रखते थे और उससे वे अपने विरोधी को पछाड़ दिया करते थे । उनका निशाना अंतिम प्रहार ही होता था ।

वे संकट काल के सेनापति थे । भले ही भारतीय जनता उनके लिए रेलवे स्टेशनों पर भीड़ नहीं लगाती थी और न वह उनके चरण छूने के लिए एक दूसरे के साथ धक्का – मुक्की करती थी , परन्तु ऐसा कोई भारतीय नहीं है , जिसे उन पर अभिमान न हो । उनका सम्मान इसलिए नहीं किया जाता था कि आप उनका सम्मान करना चाहते थे , वरन इसलिए किया जाता था कि आपको उनका सम्मान करना ही पड़ता था । उनको केवल एक व्यक्ति की निंदा अथवा प्रशंसा की चिन्ता रहती थी ; वे गांधीजी थे ।

निष्कर्ष

वे एक उदार नेता , विनम्र अनुयायी , कृपालु मित्र और निर्भय किन्तु सम्माननीय शत्रु थे । वे एक निर्माता थे । वे अपने चरण भूमि पर दृढ़ता से जमाकर राष्ट्र का निर्माण करने का यत्न करते रहते थे । उन्होंने भारत को स्वतंत्र कराने के लिए कठिन परिश्रम किया । उसके स्वतंत्र हो जाने पर उन्होंने उसे संयुक्त तथा सबल बनाने के लिए उससे भी अधिक परिश्रम किया , जिससे वह अपनी स्वतंत्रता की रक्षा कर सके । डॉक्टरों के यह चेतावनी दे देने पर भी कि उनका अंत समय निकट है , वे बिना रुके कार्य करते रहते थे , क्योंकि उनकी यह महती आकांक्षा थी कि भारत अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करने योग्य बन जाए । भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सरदार वल्लभ भाई पटेल का नाम महात्मा गांधी , लोकमान्य तिलक , मोतीलाल नेहरू तथा देशबंधु चित्तरंजनदास के नामों के साथ – साथ स्वर्णाक्षरों में चमक रहा है ।

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