डॉ० रामकुमार वर्मा पर निबंध | Dr. Ramkumar Verma par nibandh

Dr. Ramkumar Verma par nibandh

भूमिका

डॉ. रामकुमार वर्मा अनेक प्रतिभाओं के धनी थे। साहित्य की एक भी विधा ऐसी नहीं है जिसे उनकी कलम ने छुआ न हो। इतने रूपों में इस लेखक ने अपनी आभा से हिन्दी के साहित्यिक आकाश को मोहित कर लिया है। वे एक साथ कवि, नाटककार, संपादक, शोधकर्ता और साहित्यिक इतिहासकार रहे हैं।

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जीवन परिचय

आधुनिक हिन्दी साहित्य के सुप्रसिद्ध एकांकीकार डॉ० रामकुमार वर्मा का जन्म मध्य प्रदेश के सागर जिले में 15 नवम्बर , 1905 ई० को हुआ था । आपके पिता श्री लक्ष्मीप्रसाद वर्मा मध्य प्रदेश में ही डिप्टी कलेक्टर थे । वर्मा जी को प्रारम्भिक शिक्षा इनकी माता श्रीमती राजरानी देवी ने अपने घर पर ही दी , उस समय की प्रसिद्ध हिन्दी कवयित्रियों में उनका अपना महत्वपूर्ण स्थान था। बचपन में इनका पुकारूँ नाम ‘ कुमार ‘ था । वर्मा में बाल्यावस्था से ही प्रतिभा के चिह्न दिखायी देने लगे थे । सन् 1922 में दसवीं कक्षा में पहुँचे और सभी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त करते हुए रॉबर्ट्सन कॉलेज , जबलपुर से बी० ए० तथा सन् 1929 में प्रयाग विश्वविद्यालय से आपने हिन्दी में एम० ए० की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया ।

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पुरस्कार

वर्मा को एक प्रतिभाशाली छात्र के रूप में प्रयाग विश्वविद्यालय ने ‘ हॉलैण्ड मेडल ‘ के सम्मान से सम्मानित किया और विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्राध्यापक पद पर नियुक्ति कर दिया गया । 1966 ई० में उन्होंने हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद से ही अवकाश ग्रहण किया । आप रूस सरकार के विशेष आमन्त्रण पर मास्को विश्वविद्यालय में लगभग एक वर्ष तक शिक्षण – कार्य भी किया था । आपको नागपुर विश्वविद्यालय की ओर से ‘ हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास ‘ विषय पर पी – एच० डी० की उपाधि दी गयी । ‘ चित्ररेखा ‘ काव्य – संग्रह पर देव पुरस्कार , ‘ सप्त किरण ‘ एकांकी – संग्रह पर ‘ अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन पुरस्कार ‘ , हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर से ‘ साहित्यवाचस्पति ‘ उपाधि , मध्य प्रदेश शासन परिषद् से ‘ विजय पर्व ‘ नाटक पर प्रथम पुरस्कार तथा भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से आपको सम्मानित किया गया । आपका निधन 5 अक्टूबर , सन् 1990 ई० को प्रयाग में हुआ ।

प्रमुख कृतियाँ

डॉ० वर्मा जी की प्रमुख रचनाएँ 1922 ई० से शुरू हुई । वे एक प्रमुख एकांकीकर थे । उनकी प्रमुख एकांकी – संग्रह इस प्रकार हैं :—
पृथ्वीराज की आँखें ( 1938 ई० )
रेशमी टाई ( 1941 ई०)
रूप रंग ( 1951 ई० )
चारुमित्रा , कौमुदी महोत्सव , चार ऐतिहासिक एकांकी ( 1950 ई० )
दीपदान
रजत रश्मि
विभूति
रिमझिम
पाञ्चजन्य
बापू
इन्द्रधनुष आदि ।

‘ बादल की मृत्यु ‘ वर्मा जी का प्रथम एकांकी नाटक था । इसके बाद उन्होंने क्रमशः दस मिनट , नहीं का रहस्य , चम्पक और ऐक्ट्रेस आदि एकांकी नाटकों की रचना की और इसके बाद आपका एकांकीकार व्यक्तित्व आधुनिक हिन्दी नाट्य साहित्य का प्रकाश – स्तम्भ हो गया । वर्मा जी ने 70 से अधिक पुस्तकों की रचना की है । आपकी अन्य कृतियाँ इस प्रकार हैं :-
वीर हम्मीर ( काव्य – सन् 1922 ई ० )
चित्तौड़ की चिता ( काव्य – सन् 1929 ई 0 )
अंजलि ( काव्य – सन् 1930 ई 0 )
चित्ररेखा ( कविता – सन् 1936 ई ० )
जौहर ( कविता – संग्रह – सन् 1951 ई ० ) , एकलव्य , उत्तरायण , रूपराशि , चन्द्रकिरण आदि ।

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साहित्यिक सेवाएँ

‘ रेशमी टाई ‘ के उपरान्त डॉ ० वर्मा के कृतित्व में एक विशेष धारा ऐतिहासिक एकांकियों की विकसित हुई , जिसमें डॉ० रामकुमार वर्मा एक ऐसे आदर्शवादी कलाकार के रूप में नाट्य – जगत् के सामने आये , जिसमें उनके सांस्कृतिक और साहित्यिक मान्यताओं का सुन्दरतम समन्वय स्थापित हुआ है । आपने सामाजिक , वैज्ञानिक , पौराणिक एवं ऐतिहासिक सभी प्रकार के एकांकियों पर लेखनी चलायी है । अन्य विधाओं की अपेक्षा एकांकी के क्षेत्र में आपको पर्याप्त सफलता प्राप्त हुई है ; तभी तो आधुनिक हिन्दी एकांकी के आप जनक कहे जाते हैं । एकांकी की दिशा में आप पर इब्सन , मैटरलिंक , चेखव आदि का विशेष प्रभाव पड़ा है । आपके एकांकियों की भाषा सरल तथा नाटकीयता से ओतप्रोत है । रंगमंच की दृष्टि से आपकी एकांकियाँ पूर्ण सफल हैं ।

निष्कर्ष

डॉ० रामकुमार वर्मा निस्संदेह हिंदी एकांकी कला के प्रतिष्ठित निर्माता रहे । अपने पूरे दिल और आत्मा के साथ, उन्होंने अपनी उत्कृष्ट कृतियों में अपने दर्शन और सांस्कृतिक आकांक्षाओं को शामिल किया है। अपने एकांकी से उन्होंने हिंदी साहित्य के कोष में विशेष इजाफा किया है।

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