संत रैदास पर निबंध | Sant Raidas par nibandh

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भूमिका

भारत की मध्ययुगीन संत परंपरा में रैदास जी का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। संत रैदास जी की गणना केवल भारत ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व के महान संतों में की जाती है। उनकी वाणी के अनुवाद संसार की विभिन्न भाषाओं में पाए जाते हैं। संत रैदास एक समाज के न होकर पूरी मानवता के गुरु थे। उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों और छुआछूत को समाप्त करने का भरपूर प्रयास किया।

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जीवन परिचय

संत रैदास सबसे महत्वपूर्ण भक्ति कवियों में से एक हैं, फिर भी विश्वसनीय जानकारी की कमी के कारण उनका जीवन अभी भी रहस्य में डूबा हुआ है। रैदास के लेखन में उनके कई उपनाम मिल सकते हैं। इनमें से कई नाम राष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों में आम हैं, और उच्चारण में न्यूनतम अंतर है। उच्चारण में यह अंतर रैदास (पंजाब), रविदास (समकालीन), रयदास, रदास (बीकानेर प्रति में), रयिदास आदि नामों में देखा जा सकता है। नतीजतन, उनका मूल नाम रैदास केवल प्रचार और सुविधा के लिए स्वीकार किया जाता है। रैदास के भक्तमाल में रामानंद के शिष्य होने की सूचना है। रैदास के वाणी में भी ऐसे उद्धरण पाए जाते हैं , जहाँ उन्होंने स्वामी रामानन्द जी को अपना गुरु माना है ।

रामानन्द मोहि गुरु मिल्यो, पायो ब्रह्मविसास।
रस नाम अमीरस पिऔ, रैदास ही भयौ पलास॥

रामानंद 14वीं शताब्दी के मध्य और 15वीं शताब्दी के दूसरे भाग के बीच रहे, हालांकि एक प्रचलित धारणा यह भी है कि रैदास मीरा के गुरु थे। कहा जाता है कि मीरा 16वीं शताब्दी के मध्य और 17वीं शताब्दी के प्रारंभ के बीच रही। लगभग सभी शिक्षाविदों (जन्म सं० 1455) के अनुसार रैदास कबीर के समकालीन थे। बिना प्रमाण के रैदास के माता-पिता के बारे में कुछ भी कहना मुश्किल है।

निर्वाण स्थल

विद्वान मानते हैं कि रविदास स्वामी रामानंद के बारह शिष्यों में से एक थे। रैदास उनके लिए एक सामान्य उपनाम है। उनका जन्म काशी के मदुवाडीह गांव में माघी पूर्णिमा को संवत 1471 में रविवार के दिन हुआ था। रविदास उनका दिया हुआ नाम था क्योंकि उनका जन्म रविवार को हुआ था।

रैदास की निर्वाण तिथि या स्थान के बारे में कोई विश्वसनीय जानकारी नहीं है। रविदासी भक्तों के अनुसार यह कहा जाता है कि रविदास का निर्वाण उनकी छत्रछाया के नीचे चित्तौड़ के कुम्भनश्याम मंदिर में हुआ था । रैदास जी के निर्वाण की स्मृति में उस छत्र में रैदास जी के पदचिन्ह भी बनाए गए हैं। रैदास – रामायण के रचयिता के अनुसार रैदास ने गंगा के तट पर तपस्या करते हुए अमरत्व प्राप्त किया था। रैदास को दोनों दर्शनों के अनुयायियों द्वारा ‘ सदेह गुप्त ‘ माना जाता है।

मृत्यु

रैदास की मृत्यु को श्रद्धापूर्वक ‘ संदेह गुप्त’ या ‘सदेह गुप्त’ कहा जाता था क्योंकि कोई भी उनके निर्वाण को नहीं देखा। दरअसल रैदास जी की अचानक ही कहीं मृत्यु हुई होगी और भक्तों को पता ही नहीं चला होगा, इसलिए उनके श्रद्धापूर्वक सदेह गुप्त होने का उल्लेख था। रैदास का अंतिम विश्राम स्थल अज्ञात है।

रविदासी संप्रदाय चैत बदी चतुर्दशी को रैदास के निर्वाण के दिन के रूप में मानते हैं। किसी अन्य प्रमाण के अभाव में हम इस तिथि को ही रैदास की निर्वाण-तिथि भी मानते हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना ​​है कि रैदास की मृत्यु वर्ष संवत 1597 ई० में हुई थी, जिसे वे उनके निर्वाण का वर्ष मानते हैं। ‘मीरा-स्मृति-ग्रन्थ’ में उनकी मृत्यु का वर्ष 1576 ई० दिया गया है। हाँ, इन वर्षों में विश्वास करने वाले उत्साही अनुयायियों ने रैदास की आयु 130 वर्ष स्थापित करने का प्रयास किया है, और इसलिए उन्हें कबीर से बड़ा साबित करने की कोशिश की गई है।

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साहित्यिक सेवाएँ

संत रैदास उन महान संतों में से एक हैं जिन्होंने अपने कार्यों से सामाजिक कुरीतियों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनकी विशेषज्ञता के बावजूद, उनकी वाणी ज्ञानाश्रायी और प्रेमाश्रयी शाखाओं के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करता है।
रैदास की रचनाएँ-
(1) आदि ग्रन्थ में उपलब्ध रैदास की वाणी
(2) रैदास की वाणी
(3) संत रैदास और उनकी कविता (संपादक: रामानंद शास्त्री और वीरेंद्र पांडे)
(4) संत सुधासार (संपादक- वियोगी हरि)
(5) संत-कविता (परशुराम चतुर्वेदी)
(6) संत रैदास: व्यक्तित्व और रचनात्मकता (संगमलाल पांडे)
(7) रैदास दर्शन ( पृथ्वी सिंह आजाद)
(8) संत गुरु रविदास वाणी (डॉ वेनिप्रसाद शर्मा)
(9) सन्त रैदास ( डॉ० जोगिन्दर सिंह )
(10) सन्त रविदास : विचारक और कवि

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भाषा शैली

रैदास की भाषा तत्कालीन उत्तर भारत की व्यापक आबादी को स्वीकार्य होने के बाद राष्ट्रीय एकता की भाषा बन गआई थी । अवधी और ब्रज के शब्द उनकी भाषा में तेजी से सामान्य हो गए । उनकी शैली ज्यादातर भक्तिपूर्ण और प्रसाद गुणवत्ता से भरपूर थी। रैदास की कविता में भवतिरेक की भरमार थी, इस प्रकार उनके कार्यों में उस अतिरेक को दिखाने के लिए प्रतीकात्मक रूपक दृष्टिकोण बहुत से क्षेत्रों में काम आया।

निष्कर्ष

संत रैदास धर्म के पथ पर चलने वाले महान पुरुष थे। उन्होंने अपने ज्ञान से समाज को संदेश दिया कि व्यक्ति बड़ा या छोटा अपने जन्म से नहीं बल्कि अपने कर्म से होता है। अतः हमें उनके द्वारा बताए गए मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए।

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