डॉ० शिवमंगल सिंह 'सुमन' पर निबंध | Dr. shivmangal Singh Suman

Dr. shivmangal Singh Suman per nibandh

जीवन परिचय

डॉ. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का जन्म झगरपुर, जिला उन्नाव , उत्तर प्रदेश में 5 अगस्त, 1915 ई. में हुआ था। उनके पिता का नाम ठाकुर साहब बख्श सिंह था। सुमन जी ने प्राथमिक विद्यालय से कॉलेज तक, मुख्य रूप से रीवा और ग्वालियर जैसे स्थानों में रहकर शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद 1940 ई० में हिंदी में प्रथम श्रेणी से मास्टर डिग्री के साथ बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने 1942 ई० में विक्टोरिया कॉलेज में हिंदी प्रवक्ता के रूप में काम करना शुरू किया। 1948 ई० में माधव कॉलेज, उज्जैन में हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष बने।

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‘हिंदी गीतिकाव्य का उद्भव व विकास एवं हिंदी साहित्य में उसकी परंपरा’ शोध के लिए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने उन्हें दो साल बाद 1950 ई ० में डी० लिट की डिग्री से सम्मानित किया। 1954 ई० से 1956 ई० तक, उन्होंने इंदौर के होल्कर कॉलेज में हिंदी विभाग के प्रमुख के रूप में कार्य किया। 1956 ई० से 1961ई० तक सुमन जी नेपाल में भारतीय दूतावास के सांस्कृतिक और सूचना विभाग के प्रभारी रहे। वे 1961 ई० से 1968 ई० तक उज्जैन में माधव कॉलेज के प्राचार्य पद पर रहे । वह इन आठ वर्षों के बीच विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में कला संकाय के डीन थे, और व्यावसायिक संगठन, शिक्षा समिति और प्रबंधन के सदस्य भी थे।

पुरस्कार

1958 ई० में, मध्य प्रदेश सरकार ने डॉ. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ को उनकी कविता संग्रह ‘विश्वास बढ़ता ही गया’ के लिए ‘देव’ पुरस्कार से सम्मानित किया। 1973 ई० में मध्य प्रदेश राज्य उत्सव में आपकी पहचान हुई। भारत सरकार ने उन्हें जनवरी 1974 ई० में ‘पद्म श्री’ की उपाधि प्रदान की। बिहार के भागलपुर विश्वविद्यालय द्वारा इनको 20 मई, 1973 ई० को डी. लिट की मानद उपाधि प्रदान की गई।1968 ई० से 1970 ई० तक वे उज्जैन में विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे ।

उन्हें नवंबर 1974 ई० में ‘सोवियत-भूमि नेहरू पुरस्कार’ मिला। सुमन जी को 26 फरवरी, 1973 ई० को ‘मिट्टी की बारात’ नामक कविताओं की एक पुस्तक के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। अक्टूबर 1974 ई० में, उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय में दीक्षांत भाषण दिया । 24 अप्रैल, 1977 ई० को नई दिल्ली में राष्ट्रीय संग्रहालय में पंचम दिनकर स्मृति व्याख्यान श्रृंखला के हिस्से के रूप में सुमन जी को आमंत्रित किया गया । 1975 ई० में, उन्हें लंदन विश्वविद्यालय के मुख्यालय में राष्ट्रमंडल विश्वविद्यालय परिषद की कार्यकारी परिषद में नामित किया गया था। 17-18 जनवरी 1977 ई० को, उन्होंने तमिलनाडु के कोयंबटूर में भारतीय विश्वविद्यालय परिषद के बावनवें वार्षिक सत्र की अध्यक्षता की। 87 वर्ष की अवस्था में 27 नवम्बर , 2002 ई ० को सुमन जी की मृत्यु हो गई।

प्रमुख रचनाएँ

सुमन जी की कृतियाँ इस प्रकार हैं :-
(१) हिलोल – यह प्रेम गीतों का सुमन जी का प्रथम काव्य संग्रह है। यह हृदय की संवेदनशील भावनाओं का प्रतिनिधित्व करता है।
(२) जीवन की गान, प्रलय सृजन और विश्वास बढ़ता ही गया – क्रांतिकारी भावना इन सभी संग्रहों की कविता में व्याप्त हैं। इन कविताओं में मानवता की पीड़ा के साथ-साथ पूंजीवाद के प्रति घृणा के प्रति सहानुभूति भी है।
(३) विंध्य हिमालय – इस संग्रह में देशभक्ति और राष्ट्रवादी कविताएँ शामिल हैं।
(४) पर आँखें नहीं भरीं – यह प्रेम गीतों का संकलन है।
(५) मिट्टी की बारात, जिसके लिए सुमन जी को अकादमी पुरस्कार मिला।

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साहित्यिक सेवाएँ

डॉ. ‘सुमन’ जी अपनी साहित्यिक रचनाओं के माध्यम से स्वयं को एक प्रगतिशील कवि के रूप में हमारे सामने प्रस्तुत करते हैं। दलित, उत्पीड़ित, शोषित और बेसहारा मजदूर वर्ग के साथ-साथ सामान्य तौर पर पूंजीपति वर्ग को आपकी कविता में बचाव किया गया है, और उनकी रचनाओं के माध्यम से उनके अपराधों को नजरअंदाज किया गया है। उनकी कविता में समसामयिक मुद्दों पर खूब चर्चा हुई है । आपकी कविता में उनके प्रति एक मजबूत आस्था और विश्वास का स्वर है। आपने समाज के रूढ़िवादी रीति-रिवाजों, जाति-आधारित असमानताओं और भाग्यवादी मानसिकता को भी खारिज कर दिया है।

भाषा शैली

सुमन जी सीधी और प्रैक्टिकल बात करते हैं। आपके छायावादी रचनाओं में अलंकरण, दृढ़ता, अस्पष्टता, परिपक्वता आदि की भाषा का अभाव है। स्पष्टता और सरलता ध्रुवीय विरोधी हैं। इसमें आम दर्शकों के लिए पेश की जाने वाली भाषा का इस्तेमाल किया गया है। उर्दू के शब्दों का भाषा में बहुत समर्थन है। सुमन जी ने कई नए शब्द भी गढ़े, जिन्हें हम तीन श्रेणियों में वर्गीकृत कर सकते हैं: (१) नई संधि शब्द, (२) बुनियादी सामाजिक योजनाएं, और (३) स्वदेशी शब्द।

सुमन जी की शैली में ओज और प्रसाद विशेषताओं का बोलबाला है। उन्होंने अपनी रचनाओं में रूपक का भी प्रयोग किया है। सुमन जी की कविताओं की अभिव्यंजनता भी कविता के सौन्दर्य का एक गुण है। इसके परिणामस्वरूप जीवन की वर्तमान कठिनाइयों को पौराणिक घटनाओं से जोड़ा गया है। आपकी रचनाओं में भी प्रतीकात्मकता झलकती है। सुमन जी के काव्य में अलंकार की व्यवस्था नहीं है। आपकी कविता में अनजाने में जो अलंकरण प्रकट हुए, वे भावों को उत्पन्न करने में प्रभावी थे।

हिन्दी साहित्य में स्थान

‘सुमन’ जी भारतीय मिट्टी की सुगंध है, जहां जीवन के रस-सुख की महक हर तरफ आ सकती है। पौधों के रस जीवित मनुष्य की रचनात्मकता और वैज्ञानिकता को उसी तरह दर्शाते हैं जैसे पौधों के रस जीवित मानव प्राणी का प्रतिनिधित्व करते हैं। सुमन जी भारतीय संस्कृति की कट्टर समर्थक हैं। प्रकृति के आकार, स्वाद और सुगंध के चितेरे हैं। जीवन रस की मादकता के गायक है। गरिमा के रखवाले, मानव और पारंपरिक गौरव हैं, जो आम आदमी के कष्टों से प्रेरित हैं। कविता में उनकी अनूठी शैलियों को स्वीकार किया गया है। एक विशिष्ट युग की सोच की झांकी उनकी कविता के गुणों से भरपूर है और आश्चर्यजनक है।

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निष्कर्ष

अंत में हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि ‘सुमन’ जी का हिन्दी साहित्य में विशिष्ट स्थान है। उन्होंने हिन्दी साहित्य के लिए एक कोष स्थापित किया है जो कभी समाप्त नहीं होगा। भौतिक शरीर मर जाता है, लेकिन वैचारिक शरीर अनिश्चित काल तक चलता है। सुमन जी अपने लेखन के माध्यम से हिंदी साहित्य के प्रशंसकों के मस्तिष्क पर एक नए रूप में मुस्कुराते रहेंगे।

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