काका कालेलकर पर निबंध | Hindi biography of Kaka kalelkar

Kaka kalelkar per nibandh

भूमिका

काका कालेलकर भारत में एक साहसी स्वतंत्रता योद्धा, एक संत और गांधीजी के शिष्य थे। हिन्दी के मूक साधक काका कालेलकर का साहित्य जगत में तथा दक्षिण भारत में हिन्दी के विकास में विशेष स्थान है। जिसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। हिंदी भाषा के प्रचार के लिए उनके द्वारा उठाए गए कदम सराहनीय है।

Kaka kalelkar per nibandh

जीवन परिचय

काका कालेलकर का जन्म 1 दिसंबर 1885 ई ० में महाराष्ट्र के सतारा जिले में हुआ था । ये बड़े प्रतिभासम्मन्न थे । मराठी इनकी मातृभाषा थी , पर इन्होंने संस्कृत , अंग्रेजी , हिन्दी , गुजराती और बँगला भाषाओं का भी गम्भीर अध्ययन कर लिया था । जिन राष्ट्रीय नेताओं एवं महापुरुषों ने राष्ट्रभाषा के प्रचार – प्रसार में विशेष उत्सुकता दिखायी , उनकी पंक्ति में काका कालेलकर का भी नाम आता है । इन्होंने राष्ट्रभाषा के प्रचार को राष्ट्रीय कार्यक्रम के अन्तगर्त माना है । काका कालेलकर गांधीजी द्वारा चलाए गए सभी आंदोलनों में भाग लिया और उन्होंने कुल 5 साल जेल में बिताए। 1930 में पूना की यरवदा जेल में उन्होंने गांधीजी के साथ काफी समय बिताया। महात्मा गांधी के सम्पर्क में इनका हिन्दी प्रेम और भी जागृत हुआ ।

दक्षिण भारत , विशेषकर गुजरात में इन्होंने हिन्दी का प्रचार विशेष रूप से किया । उन्होंने युगीन चुनौतियों के साथ-साथ प्राचीन भारतीय संस्कृति, नीति, इतिहास और भूगोल पर मजबूत रचनाएँ लिखीं। उन्होंने शांति निकेतन में शिक्षक, साबरमती आश्रम के प्रधानाध्यापक और बड़ौदा के नेशनल स्कूल के आचार्य के रूप में भी काम किया। गांधी की मृत्यु के बाद उनके सम्मान में स्थापित “गांधी संग्रहालय” के पहले निदेशक यहीं थे। उन्होंने एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जेल में काफी समय बिताया। वे भारतीय संविधान सभा के सदस्य भी रहे । Kaka kalelkar per nibandh

कालेलकर जी 1952 ई. से 1957 ई. तक राज्य सभा के सदस्य और कई आयोगों के अध्यक्ष थे। भारत सरकार ने कालेलकर जी को ‘पद्म भूषण’ और साथ ही राष्ट्र भाषा प्रचार समिति ने ‘गांधी पुरस्कार’ प्रदान किया है। रवीन्द्रनाथ टैगोर और पुरुषोत्तमदास टंडन भी उनके मित्र थे। 21 अगस्त 1981 ई. को उनका निधन हो गया।

साहित्यिक परिचय

काला कालेलकर मराठीभाषी होते हुए भी हिन्दी भाषा के प्रचार – प्रसार के प्रति जो रुचि पदर्शित की , वह हिन्दी – भाषियों के लिए अनुकरणीय है । इनका हिन्दी – साहित्य निबन्ध , जीवनी , संस्मरण , यात्रावृत्त आदि गद्य – विधाओं के रूप में उपलब्ध होता है । इन्होंने हिन्दी एवं गुजराती में तो अनेक रचनाओं का सृजन किया ही , साथ ही हिन्दी भाषा में अपनी कई गुजराती रचनाओं का अनुवाद भी किया । इनकी रचनाओं पर अनेक राष्ट्रीय नेताओं एवं साहित्यकारों का प्रभाव परिलक्षित होता है । तत्कालीन समस्याओं पर भी इन्होंने कई सशक्त रचनाओं क सूजन किया । कालेलकर जी की रचनाओं में भारतीय संस्कृति के विभिन्न आयामों की झलक दिखाई देती है । व्यक्ति के जीवन के अंतर्तम तक इनकी पैट थी , इसलिए जब ये किसी के जीवन की विवेचना करते थे , तो रचना में उसका व्यक्तित्व उभर आता था ।

रचनाएँ

कालेलकर जी की प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं :— निबन्ध संग्रह – जीवन काव्य , जीवन साहित्य एवं सूर्योदय ।
यात्रा वृत्तान्त – लोक माता , हिमालय प्रवास , उस पार के पड़ोसी और यात्रा ।
संस्मरण – बापू की झांकियाँ ।
आत्म चरित – जीवन लीला एवं सर्वोदय । इनमें काका साहब के यथार्थ जीवन की झांकी है ।

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भाषा शौली

कालेलकर जी की भाषा परिष्कृत खड़ीबोली है । उसमें प्रवाह , ओज तथा अकृत्रिमता है । ये अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे । इसीलिए इनकी हिन्दी भाषा में रचित रचनाओं में अंग्रेजी , अरबी , फारसी , गुजराती , मराठी के शब्द में मिल जाते हैं । तत्सम , तद्भव , देशज आदि सभी शब्द रूप इनकी भाषा में एक साथ देखे जा सकते हैं । महावरों और कहावतों का प्रयोग भी इन्होंने किया है । भाषा में प्रसंग के अनुसार ओजगुण भी है । विषय और प्रसंग के अनुरूप कालेलकर जी ने परिचयात्मक , विवेचनात्मक , आत्मकथात्मक , विवरणात्मक , व्यंग्यात्मक , चित्रात्मक , वर्णनात्मक आदि शैलियाँ अपनायी हैं । इस प्रकार प्रसंग एवं विषय के अनुरूप उनकी भाषा शैली अत्यंत सहज, सरल एवं प्रभावपूर्ण है ।

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