ध्वनि प्रदूषण पर निबंध | hindi essay on sound pollution

dhwani Pradushan par nibandh

भूमिका

प्रकृति ने मानव को उपहार स्वरूप अनेक मधुर ध्वनियाँ प्रदान की हैं , जिन्हें सुनकर प्रत्येक व्यक्ति का मन आनंदित होता है । यही कारण है कि वह शांति और प्रसन्नता की खोज में प्रकृति के सानिध्य में जाता है जहाँ सुन्दर दृश्य तथा आस – पास की मधुर ध्वनियाँ उसके मन को शांत करती हैं और सुख प्रदान करती हैं । ऐसा कौन व्यक्ति होगा जिसे शिशु की किलकारी , बांसुरी की मीठी तान , नदी का कल – कल स्वर या कोयल की कूह – कूह सुनना अच्छा न लगता हो । सामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य एक – दूसरे से मीठी व रोचक बातें करना और सुनना चाहता है । जहाँ वातावरण में कोई ध्वनि न हो वहाँ श्मशान जैसा सूनापन बोझिल लगता है । वास्तव में जब ध्वनि की तीव्रता बढ़ जाए तथा बहुत – सी ध्वनियाँ बेतरतीब ढंग से कानों में टकराएँ तो वे शोर बन जाती हैं ।

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कौए की कांव – कांव , गधों का रेंकना , मुर्गे की बांग यदि दिनभर सुननी पड़े तो कौन अपने कानों पर हाथ नहीं रखेगा । ध्वनि प्रदूषण एक गंभीर समस्या के रूप में आज चिंता का विषय है । नगरों में वाहनों तथा अनेक प्रकार की दैनिक प्रयोग के उपकरणों के प्रयोग से उत्पन्न होने वाली अनगिनत ध्वनियाँ जाने अनजाने में ही वातावरण को शोर से प्रदूषित कर रही हैं । प्रचार करते हुए लाउडस्पीकरों की आवाज़ एवं धार्मिक दृष्टि से होते हुए कार्यक्रमों में लाउडस्पीकर की आवाज आदि ने वातावरण की शान्ति छीन ली है । शोर या आवाज के कारण शान्ति का भंग होना ही ध्वनि प्रदूषण है ।

dhwani Pradushan par nibandh

ध्वनि प्रदूषण के कारण

1) धार्मिक कार्यक्रम जैसे – जागरण , सत्संग , कथा आदि में लाउडस्पीकर लगाकर जोरदार शोर गूंजता है तो आसपास के घरों में रहना मुश्किल हो जाता है । रात करवटें बदल कर काटनी पड़ती हैं ।

2) आप ने अनुभव किया होगा कि बिजली के चले जाने पर अचानक जो शांति छा जाती है उससे पता चलता है कि घर के शांत वातावरण में भी कितना शोर भरा रहता है । वातावरण में पंखों , कूलर व अन्य घरेलू उपकरणों की धीमी स्वर की ध्वनियाँ तथा रेडियो , टेलीविजन , रिकार्ड प्लेयर आदि की तीव्र ध्वनियाँ मिलकर लगातार शोर उत्पन्न करती रहती हैं ।
3) रेलगाड़ियों , विमानों की घड़बड़ाहट , इंजनों की चीखती सीटियाँ , दिवाली के पटाखे , शादियों में बजने वाले बैंड व डी.जे. , भजन मंडलियों द्वारा लाउडस्पीकर पर गाए जाने वाले कर्णभेदी गीत , भाषणों और नारों का शोर आज वातावरण में इतना अधिक भर गया है कि सहन करना भी कठिन है ।

4) सड़क पर दौड़ते हुए वाहन – कार , स्कूटर व ट्रकों के हार्न व अन्य वाहनों का शोर बाजारों की चिल्लियों आदि सभी ध्वनि प्रदूषण का कारण होती हैं ।

5) कारखानों में मशीनों के चलने का शोर भी ध्वनि प्रदूषण का एक बड़ा कारण है ।

6) पारिवारिक एवं सामाजिक स्तर पर शादी , विवाह , जन्मोत्सव आदि कार्यक्रमों में संगीत का शोर , पार्टियों में चलने वाले नृत्य के शोर आदि से भी वातावरण में ध्वनि प्रदूषण होता रहता है , जो कई बार तो असहाय हो जाता है ।

ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव

ध्वनि के स्तर को जिस मापक से मापा जाता है , उसे डेसीबल कहते हैं । सामान्यतः व्यक्ति की शोर सहन करने की औसत क्षमता 50 से 55 डेसीबल तक होती है , जबकि दिल्ली व मुम्बई जैसे बड़ो शहरों में शोर का औसत स्तर 70-75 डेसीबल होता है । ध्वनि प्रदूषण के व्यक्ति पर पड़ने वाले प्रभाव निम्नलिखित हैं–
1) मनुष्य के कान 0 से 180 डेसीबल ध्वनि स्तर का सामना कर सकते हैं । 180 डेसीबल पर भयंकर दर्द व घबराहट होती है , कुछ लोगों में 85 डेसीबल पर ही ऐसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं ।

2) शोर को पर्यावरण प्रदूषण का कारक इसलिए माना गया है क्योंकि यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और जीवन की गुणवत्ता को घटाता है ।

3) कानों में लगातार पड़ने वाला शोर काम में बाधा डालता है । शोर के कारण स्नायु रोग , सिरदर्द , बहरापन व स्मरण – शक्ति का क्षीण होना जैसे प्रतिकूल प्रभाव दिखाई पड़ते हैं ।

4) व्यक्ति के आराम में बाधा पड़ने से मानसिक तनाव और चिड़चिड़ापन मनुष्य के व्यवहार को प्रभावित करता है ।

5) आज बहुत से लोग हृदय रोग और रक्त चाप जैसे रोगों से ग्रस्त हैं उनमें से अधिकांश जाने – अनजाने शोर के तनाव से प्रभावित होते हैं । dhwani Pradushan par nibandh

ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण

घर में —
1) ऐसे उपकरण खरीदें जो कम शोर करते हो ।
2) शोर करने वाले पंखों और कूलर व ए.सी. आदि को तुरन्त ठीक कराएँ ।
3) टी.वी. , रेडियो आदि धीमी आवाज में चलाएँ ।
4) आपस में या टेलीफोन पर बहुत जोर – शोर से बात – चीत न करें ।
5) आपसी लड़ाई – झगड़ा और बहस से बचें ।
6) जहाँ आवश्यक हो ध्वनि अवरोधक पदार्थ लगवा लें, विशेषकर जनरेटर आदि के प्रयोग करने पर ।

सड़कों पर —
1) वाहनों के ध्वनि अवरोधक ठीक रखें ।
2) हार्न का प्रयोग बहुत आवश्यक होने पर ही करें । 3) अस्पतालों व स्कूलों के आस – पास या बस्ती के भीतरी भागों में प्रैशर हार्न का प्रयोग न करें ।
4) यदि आवश्यक हो तो लाऊडस्पीकर का प्रयोग कम से कम समय के लिए करें ।
5) लाल बत्ती पर ज्यादा देर रुकना पड़े या किसी व्यक्तिगत कार्य के लिए लम्बे समय रुकें तो गाड़ी के इंजन को बन्द करें ।

कारखानों में–
1) कारखाने बस्ती से दूर लगाए जाएं ।
2) शोर करने वाली मशीनों में ध्वनि अवरोधक का प्रयोग किया जाए ।
3) श्रमिकों के लिए इयरप्लग और कंटोप की व्यवस्था की जाए ।
4) कारखानों के यंत्रों की समय – समय पर जांच व आवश्यक मरम्मत करवाई जाए ।
5) वृक्ष ध्वनि के वेग को कम करने में सहायता करते हैं , इसलिए सड़कों के किनारे तथा घरों व स्कूलों के आस – पास जहां भी संभव हो वृक्षारोपण किया जाए ।

निष्कर्ष

यदि ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए जल्द ही कोई वास्तविक प्रयास नहीं किया गया, तो यह तबाही का कारण बन सकता है। नतीजतन, हमें इसके बचाव के बारे में जागरूकता बढ़ानी चाहिए और साथ ही लोगों को यह भी बताना चाहिए कि ध्वनि प्रदूषण से मानव और पर्यावरण दोनों को कितना नुकसान होता है।

हमारी सरकार प्रयास कर रही है, लेकिन ध्वनि प्रदूषण तब तक कम नहीं होगा जब तक हम खुद कदम नहीं उठाते। सरकार ने ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए कई कानून बनाए हैं, लेकिन उनका पालन नहीं किया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप यह दिन-ब-दिन बढ़ रहा है। इससे बचने के लिए हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने चाहिए। क्योंकि वृक्षारोपण से ही ध्वनि प्रदूषण को कम किया जा सकता है।

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