श्रीराम शर्मा पर निबंध | pandit shriram sharma ki jivani

shriram sharma par nibandh

भूमिका

भारत के युग पुरुष पंडित श्रीराम शर्मा ने अपना सम्पूर्ण जीवन समाज के सांस्कृतिक, नैतिक और चरित्र के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया था। वे वही युग ऋषि थे जिन्होंने भारत के गायत्री परिवार की स्थापना की थी। उन्होंने अपने कार्यों से वर्तमान और प्राचीन भारत को एक साथ जोड़ने का कार्य किया। वह एक अध्यात्मवादी, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक, लेखक और समाज सुधारक थे । इसके अलावा उन्होंने एक स्वतंत्रता सेनानी की भी अहम भूमिका निभाई और देश को स्वतंत्र कराने में अपना योगदान दिया।

जीवन परिचय

श्रीराम शर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में 23 मार्च, 1892 को किरथरा (मक्खनपुर के निकट) नामक गाँव में हुआ था। मक्खनपुर वह जगह थी जहाँ उन्होंने अपनी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा प्राप्त की । उसके बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने बी.ए. की परीक्षा पास किया। वह छोटी उम्र से ही साहसी और आत्मविश्वासी थे। उनमें देशभक्ति की भावना भी कूट-कूटकर भरी हुई थी। उन्होंने पहले कुछ शिक्षण कार्य भी किया । राष्ट्रीय आन्दोलन में इन्होंने सक्रिय भाग लिया और जेल भी गये । उनका आत्म-विश्वास इतना शक्तिशाली था कि विपरीत परिस्थितियों में भी वे अडिग रहे। उनकी विशेष रुचि लेखन और पत्रकारिता थी। लंबे समय तक वे ‘विशाल भारत’ पत्रिका के संपादक रहे। उनके अंतिम दिन बहुत मुश्किलों से भरे थे। लंबी बीमारी के बाद 1967 ई. में उनका निधन हो गया।

shriram sharma par nibandh

साहित्यिक परिचय

श्रीराम शर्मा ने अपना साहित्यिक जीवन पत्रकारिता में आरम्भ किया । ‘ विशाल भारत ‘ के सम्पादन के अतिरिक्त इन्होंने गणेशशंकर विद्यार्थी के दैनिक पत्र ‘ प्रताप ‘ में भी सहसम्पादक के रूप में कार्य किया । राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत एवं जनमानस को झकझोर देनेवाले लेख लिखकर इन्होंने अपार ख्याति अर्जित की । ये शिकार – साहित्य के प्रसिद्ध लेखक थे । हिन्दी साहित्य में शिकार – साहित्य का प्रारंभ इन्हीं के द्वारा माना जाता है । सम्पादन एवं शिकार – साहित्य के अतिरिक्त इन्होंने संस्मरण और आत्मकथा आदि विधाओं के क्षेत्र में भी अपनी प्रखर प्रतिभा का परिचय दिया । इन्होंने ज्ञानवर्द्धक एवं विचारोत्तेजक लेख भी लिखे हैं , जो विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं ।

shriram sharma par nibandh

कृतियाँ

शर्मा जी ने संस्मरण , जीवनी , शिकार – साहित्य आदि विविध विधाओं में साहित्य का सृजन किया था । इनकी कृतियों का विवरण इस प्रकार है :–

शिकार साहित्य – प्राणों का सौदा , जंगल के जीव , बोलती प्रतिमा और ‘ शिकार ‘ । इन सभी रचनाओं में शिकार का रोमांचकारी वर्णन किया गया है । जिसमें जीव-जंतुओं के मनोविज्ञान का भी भरपूर परिचय प्राप्त होता है ।

संस्मरण – साहित्य

सेवा ग्राम की डायरी , सन् बयालीस के संस्मरण । इनमें लेखक ने तत्कालीन समाज की झाँकी बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्तत किया है ।

जीवनी

नेताजी और गंगा मैया । इसके अलावा, उनके साहित्यिक अभ्यास में कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित फुटकर लेख भी शामिल हैं।

भाषा शैली

शर्मा जी स्पष्ट, धाराप्रवाह और कुशल तरीके से बोलते थे । भाषा की दृष्टि से उन्होंने प्रेमचंद जी की तरह ही प्रयोग किये । उन्होंने अपनी भाषा को आसान और बोधगम्य बनाने के लिए संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी और स्थानीय भाषा के शब्दों का प्रयोग किए हैं । मुहावरों एवं कहावतों का प्रयोग इनके कथन को स्पष्ट एवं प्रभावी बनाता है । ‘ रोजाना ‘ , ‘ आदत ‘ आदि उर्दू के शब्दों के साथ मृग – शावक जैसे संस्कृत शब्द प्रयोग भी किये हैं , पर कहीं भी भाषा का रूप अस्वाभाविक नहीं होने पाया ।

शर्मा जी की रचना – शैली वर्णन प्रधान है । अपने वर्णन में दृश्य अथवा घटना का ऐसा चित्र खींच देते हैं जिससे पाठक का भावात्मक तादात्म्य स्थापित हो जाता है । इनकी कृतियों में चित्रात्मक , आत्मकथात्मक , वर्णनात्मक एवं विवेचनात्मक शैलियों के दर्शन होते हैं । इस संग्रह में शामिल ‘स्मृति लेख’ उनकी ‘शिकार पुस्तक’ से आया है। लेखक ने इन कृतियों में अपनी युवावस्था के एक रोमांचक अनुभव का वर्णन किया है। वर्णन इतना सजीव है कि पाठक की रुचि हर समय बनी रहती है। यह बाल-प्रकृति और बाल-सुलभ प्रयासों के प्रतिनिधित्व के लिए उल्लेखनीय है। इस निबंध में लिखने की शैली वर्णनात्मक है।

Post a Comment

Previous Post Next Post