अमरकांत पर निबंध | Biography of amarkant in hindi

amarkant per nibandh

जीवन परिचय

अमरकांत मुंशी प्रेमचंद की परम्परा के कहानीकार रहे हैं । उनका जन्म 1 जुलाई 1925 ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के भगमलपुर (नगरा) नामक ग्राम में हुआ । इनके पूर्वज कायस्थ थे । हिन्दी साहित्य में अमरकान्त के नाम से प्रसिद्ध इनका मूल नाम श्रीराम वर्मा था । अमरकान्त की प्रारम्भिक शिक्षा बलिया में ही हुई । इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकीय परीक्षा उत्तीर्ण की । इसके बाद उन्होंने सैनिक , अमृत और कहानी आदि पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया । 1942 ई० के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में सक्रिय भागीदारी से युवा अमरकांत का मन काफी उत्साहित हुआ ।

इनका जीवन अनेक उतार – चढ़ावों से भरा रहा , जिससे उनकी संवेदनशीलता और भी प्रखर हो उठी । साम्यवादी विचारधारा ने भी उनके मानस को काफी प्रभावित किया । जीवन भर पत्रकारिता से जुड़े रहने वाले अमरकांत ने लेखन सम्पादन को ही अपना व्यवसाय बनाए रखा । 1955 ई० में प्रकाशित ‘ कहानी ‘ पत्रिका के विशेषांक ने इन्हें पर्याप्त ख्याति दिलाई । निरन्तर साहित्य – साधना ही अमरकांत के जीवन का लक्ष्य रही है । इनकी मृत्यु इलाहाबाद में 17 फरवरी 2014 को हो गई ।

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साहित्यिक कृतियाँ

यद्यपि अमरकान्त ने मौलिक लेखन की अपेक्षा सम्पादन कार्य अधिक किया है । किन्तु उनके कुछ कहानी संग्रह और उपन्यास काफी चर्चित रहे हैं , जिनका उल्लेख इस प्रकार कर सकते हैं ।

कहानी-संग्रह

जिन्दगी और जोंक , देश के लोग मौत का नगर , कुहासा आदि । इनमें संकलित दोपहर का भोजन , डिप्टी कलेक्टरी , मौत का नगर एवं छिपकली जैसी कहानियां काफी चर्चित रही हैं ।

उपन्यास

सूखा पत्ता , पराई डाल का पंछी , ग्राम सेविका , सुख जीवी , बीच की दीवार , काले – उजले दिन आदि ।

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साहित्यिक विशेषताएं

अमरकान्त ने निहायत साधारण जीवन की घटनाओं और स्थितियों को अपनी कहानियों का विषय बनाया है । बिना किसी विशेष आग्रह के उद्दाम मानवीय जिजीविषा का मूर्तीकरण इनकी निजी विशेषता है । इनमें गहरी अन्तर्दृष्टि और संवेदना है । अपने कथा – पात्रों से उन्हें केवल सहानुभूति नहीं होती , वरन वे उन्हीं के साथ जीते हैं ।

साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित कहानीकार अमरकांत का साहित्य निम्न मध्य वर्ग के लोगों के अन्तर्द्वन्द्व की मुखर अभिव्यक्ति रहा है । सम्यक भाषा का प्रयोग करते हुए समस्याओं को चित्रित करना उनके रचना – कौशल में सर्वत्र विद्यमान है ।

अमरकान्त की कहानियों में निम्न मध्यवर्ग से पात्र चुनकर उनकी मानिसक अन्तर्द्वन्द्वता का सटीक चित्रण किया गया है । उनकी कहानी ‘ दोपहर का भोजन भी इस प्रकार के अन्तर्द्वन्द्व का निरुपण करती जान पड़ती है । कहानीकार को इस वर्ग को आर्थिक विपन्नता का सम्यक ज्ञान रहा है ।

कहानीकार अमरकांत की कहानियां यथार्थपरक भावना से ओत – प्रोत हैं । अमरकांत आदर्शों के नाम पर दिखावे की अपेक्षा वास्तविकता का अधिक चित्रण करते हैं ।

अमरकांत की कहानियों में मनोवैज्ञानिकता का पुट रहता है । उनके पात्र मन ही मन सोचते रहते हैं । कभी मानसिक रूप से परेशान दिखते हैं तो कभी मनोविश्लेषण करने लगते हैं ।

अमरकांत ने अपनी कहानियों के माध्यम से समाज में चल रही मनमानी , भ्रष्टाचार , बेकारी एवं भुखमरी को लेकर पूँजीपति एवं शोषक वर्ग पर करारा व्यंग्य किया है ।

कहानीकार ने अपनी रचनाओं में ऐसे दृश्यों एवं घटना- चित्रों का वर्णन किया है जिन्हें पढ़कर और सुनकर पाठक का हृदय करूणा एवं सहानुभूति से भर उठता है ।

कथा शैली

अमरकान्त की कथा – शैली सरल और सहज है , उसमें किसी प्रकार दुराव – छिपाव , वक्रता अथवा ‘ फैशन ‘ नहीं है । इनकी कहानियों में बोधगम्यता और सादगी है । कलायुक्तिहीन सादगी , किन्तु उनका बहाव दुर्निवार है । पात्र के अनुकूल भाषा का प्रयोग करना इनकी विशेषता है । इनकी शैली अधिकांशतः वर्णनात्मक है ।

भाषा शैली

इनकी भाषा – शैली एक सफल कहानीकार के सर्वथा अनुरूप है । उनमें सामाजिक व्यंग्य की विशेषता देखने को मिलेगी । अन्तिम प्रभाव करुणामूलक हुआ करता है । अमरकान्त की कहानियाँ पत्थर की तरह ठोस और कंक्रीट की तरह शक्तिसम्पन्न हैं । ‘ जिन्दगी और जोंक ‘ आपकी प्रसिद्ध कहानी है , जिसने यथार्थवादी कहानी की परम्परा को एक नवीन स्तर पर लाकर खड़ा कर दिया है ।

तत्सम, तद्भव शब्दों से परिपूर्ण उनकी भाषा में देशज शब्दावली के साथ – साथ उर्दू शब्दों का खूब प्रयोग मिलता है । काव्यमयी गद्य भाषा में लोकोक्ति- मुहावरों के प्रयोग से कहानीकार की भाषा और भी प्रभावशाली बन पड़ी है । प्रस्तुति में वर्णनात्मक शैली के साथ – साथ चिंतनपरक , मनोविज्ञान एवं व्याख्यापरक गुण का सहारा लिया है । यही कारण है कि उनकी भाषा – शैली पर्याप्त रोचक एवं चिन्ताकर्षक रही है ।

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निष्कर्ष

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कहानीकार अमरकांत की कहानियां दायित्व बोध की भावना से तो परिपूर्ण हैं ही , साथ ही उनका भाषा – विधान भी उच्चकोटि का है । भाषा और भाव दोनों ही उत्तम हैं । समसामयिकता का पर्याप्त प्रभाव अमरकांत की रचनाओं पर दिखायी पड़ता है ।

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