कमलेश्वर पर निबंध | hindi biography on Kamleshwar

Kamleshwar per nibandh

जीवन परिचय

‘नई कहानी’ के प्रवर्तक के रूप में हिन्दी साहित्य के पुरोधा कमलेश्वर का जन्म उत्तर प्रदेश राज्य के मैनपुरी जिले में 6 जनवरी 1932 ई० में हुआ था । बाल्यावस्था में ही पिता की मौत के कारण इनका पालन – पोषण माँ के संरक्षण में हुआ । माँ के वैष्णव संस्कारों ने कमलेश्वर के व्यक्तित्व को काफी प्रभावित किया । मैनपुरी से हाईस्कूल तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय , इलाहाबाद से हिन्दी विषय लेकर एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की । इसके बाद इनका साहित्यिक सफर निरन्तर अबोध गति से बढ़ता गया । ‘ नई कहानी ‘ और ‘ सारिका ‘ नामक पत्रिकाओं का कुशल सम्पादन इनकी प्रतिभा का उत्कृष्ट उदाहरण रहा है । काफी लम्बे समय तक आकाशवाणी और दूरदर्शन कार्यक्रमों से जुड़े रहे हैं । Kamleshwar per nibandh

मुम्बई की फिल्मी नगरी की चकाचौंध को भी इन्होंने नजदीकी से देखा है और फिल्मों के लिए पटकथाएं लिखी हैं । संवाद – लेखन में भी कमलेश्वर जी को पर्याप्त सफलता मिली है । दिल्ली दूरदर्शन के महानिदेशक पद पर रह चुके आपने दृश्य – श्रव्य माध्यमों को काफी प्रोत्साहित किया है । दूरदर्शन पर प्रसारित किया गया इनका धारावाहिक ‘ परिक्रमा काफी चर्चित रहा है । सघः प्रकाशित बंधक लोकतंत्र उनकी समसामयिक जागरुकता को उजागर करता आलेख संग्रह है । संवेदनशील साहित्यकार कमलेश्वर की कहानियों में कस्बों , शहरों , महानगरों की जीवन पद्धति का प्रभाव साफ देखा जा सकता है । कमलेश्वर की मृत्यु फरीदाबाद में 27 जनवरी 2007 ई० को हो गई ।

Kamleshwar per nibandh

साहित्यिक कृतियां

कमलेश्वर की साहित्यिक कृतियां निम्न हैं :-

कहानी – संग्रह

राजा निरबसिया , कसवे का आदमी , खोई हुई दिशाएं , मांस का दरिया , श्रेष्ठ कहानियाँ आदि ।

उपन्यास

काली आंधी , समुद्र में खोया हुआ आदमी , वही बात , एक सड़क सत्तावन गलियां , सुबह दोपहर शाम , डाक बंगला सहित लगभग 10 उपन्यास । ‘कितने पाकिस्तान ‘ काफी चर्चित रहा है ।

नाटक

चारूलता , अधूरी आवाज आदि ।

समीक्षात्मक आलेख

नई कहानी की भूमिका , समानान्तर सोच , मेरा पन्ना एवं बंधक लोकतंत्र । इसके अलावा यात्रावृन्त , संस्मरण एवं दैनिक घटनाक्रमों को लेकर छपे आलेखों की लम्बी सूची है ।

Kamleshwar per nibandh

साहित्यिक विशेषताएं

मानवीय सम्बन्धों में टूटन एवं बढ़ती दूरी पुरानी पीढ़ी और नयी पीढ़ी के बीच बढ़ती हुई दूरी विकेन्द्रीकरण की स्थिति पैदा कर देती है । आधुनिक जन – जीवन में मानवीय सम्बन्धों में आये बिखराव को कमलेश्वर ने अपनी कहानियों में बड़े ही नाटकीय ढंग से प्रस्तुत किया है । पति – पत्नी के दाम्पत्य सम्बन्धों में आपसी टकराव दाम्पत्य जीवन को नाटकीय बना देता है । किशोरावस्था में पनपने वाला चिढचिढ़ापन युवा पीढ़ी को उसके पथ से भटका देता है । इन सभी विसंगतियों के कारण मानवीय जीवन में होने वाले बिखराव और टकराव को कमलेश्वर ने अपनी कहानियों में बड़े विचित्र ढंग से प्रस्तुत किया है ।

कमलेश्वर की कहानियों में समसामयिक वातावरण का चित्रण अत्यन्त सूक्ष्मता के साथ प्रस्तुत किया है । इनकी ज्यादातर कहानियां शहर , कस्बे , गांव , नगर और महानगरीय जीवन पर आधारित हैं । इसी कारण इनकी कहानियों में समसामयिक जागरुकता सर्वत्र दिखाई देती है । इनकी कहानियों में शहरी जीवन में पड़ौसी की अनदेखी और स्वार्थपरकता का वर्णन साफ दिखाई देता है । दिल्ली की मौत और पराया शहर इनकी इसी प्रकार की कहानियां हैं ।

कमलेश्वर की कहानियों में आधुनिक जन जीवन की विभिन्न पीड़ाओं, विसंगतियों , कुंठाओं और वर्जनाओं का चित्रण साफ झलकता है । समाज का प्रत्येक पक्ष इनकी कहानियों में मुखरित हुआ है । इनकी कहानियों में आधुनिक समाज में व्याप्त स्वार्थ , घृणा , नफरत , घुटन और आत्महत्या जैसी भावनाओं का मार्मिक चित्रण दिखाई देता है । इनकी कहानियों में आधुनिक जीवन में व्याप्त बनावटीपन और खोखलेपन का पर्दाफाश किया गया है । कमलेश्वर लेखन के प्रारम्भिक दौर में शिल्प और कथ्य के प्रति सचेत रहकर हिन्दी के कहानीकारों में अपना स्थान बनाया है । जैसे – जैसे उनका लेखन आगे बढ़ा है वैसे – वैसे उन्होंने अपने कथ्य और शिल्प में नये – नये प्रयोग किये हैं ।

भाषा शैली

भाषा शैली की दृष्टि से कमलेश्वर की कहानियाँ दृश्य और नाटक जैसा रूप लिये हुए हैं । प्रतीकात्मक और मनोवैज्ञानिक संवेदनाओं को व्यक्त करने के लिए सटीक प्रयोग गद्य शिखर करना भली भाँति जानते हैं । यह भी सही है कि उनकी कहानियों की भाषा उर्दू से प्रभावित है । इनकी शैली में पारदर्शिता और व्यावहारिकता है । साथ ही मानव जीवन की गहरी अनुभूतियों का प्रतिबिम्ब लिये हुए है । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कमलेश्वर का साहित्य प्रभाव छोड़ने में और पाठक के मन मस्तिष्क को पकड़ने में सक्षम है भाव पक्ष की दृष्टि से उसमें कुंठा , घुटन , निराशा एवं आर्थिक विषमता दिखाई पड़ती है , वहीं उनकी भाषा शैली कौतूहल एवं जिज्ञासा से भरी सरल और प्रवाह पूर्ण है ।

Kamleshwar per nibandh

निष्कर्ष

समकालीन हिंदी कथाकारों में कमलेश्वर जी का विशिष्ट स्थान है। उन्होंने हिंदी कथा साहित्य को एक नया जीवन दिया, जो प्रासंगिक और समतावादी दोनों था। उन्होंने कथा साहित्य में अपनी प्रतिभा के अलावा, जीवन और इतिहास में उदार सोच के नए रास्ते बनाए हैं। उन्होंने शिल्प और लेखन की भाषा में नए प्रतिमानों की शुरुआत की है। कमलेश्वर उन लेखकों में से हैं जो कभी थकते नहीं हैं और यह बात उनके निजी जीवन में भी सच है।

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