आधुनिक संस्कृति पर निबंध | aadhunik sanskriti par nibandh

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भूमिका

आधुनिक संस्कृति प्राचीन हिन्दू और मुस्लिम संस्कृतियों तथा पाश्चात्य संस्कृति का समन्वित रूप है । सौंदर्यमय दृष्टिकोण बनाकर जीवन के विषय में विचार करना , उसे अपनाना आधुनिक संस्कृति है । आधुनिक संस्कृति को ‘स्व’ के अहंकार के उद्भव और व्यक्तिगत संतुष्टि की खोज की विशेषता है। आधुनिक समाज एक निरंकुश और अनर्गल चरित्र के साथ-साथ सरकारी नियमों और प्रतिबंधों की अवहेलना करने का प्रयास करता है।

भारतीय सभ्यता-संस्कृति

आदिकाल से अजस्त्र प्रवाहित भारतीय संस्कृति ने विदेशी आक्रान्ताओं से पददलित होने पर भी उनकी उपयोगी और ग्राह्य सभ्यता एवं तत्त्वों को ग्रहण करने के बावजूद अपनी प्राचीन संस्कृति , अपने मूल रूप को यथावत बनाये रखा है । यही कारण है कि भारत आज भी अपनी संस्कृति और सभ्यता में धनी है । आज भी उसकी पहचान पूर्ववत है । इतिहास साक्षी है कि विश्व में अनेक सभ्यताओं ने जन्म लिया और समय के साथ ही दफन हो गयीं । आज यूनान इसका जीता – जागता प्रमाण है । किन्तु भारत हजार वर्ष तक गुलाम रहकर भी अपनी प्राचीन चिन्तन – पद्धति को अक्षुण्ण बनाए रखने में समर्थ है और उपहास का कारण कभी नहीं बना ।

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आधुनिकता का प्रभाव

यद्यपि आज आधुनिकता का रंग यहां के सामाजिक जीवन में उथल – पुथल मचाने में समर्थ होता हुआ हो रहा है और लोगों को अपने सांस्कृतिक परिवेश से अपनी परम्पराओं से जाने में सफल होता प्रतीत हो रहा है । आज अपनी संस्कृति और सभ्यता के प्रति लोगों का आक्रामक रवैया देखकर ऐसा लगता है कि आधुनिकता ने भारतीय जनमानस का ब्रेनवाश कर दिया है । आज की सन्तति पर आधुनिकता का यह प्रभाव ब्रेनवाश का ही परिणाम है । आधुनिक संस्कृति में अहंकार और निजी जीवन को महत्व दिया जाता है। नतीजतन, अहंकार सर्वोच्च शासन करता है। छात्र हड़ताल पर हैं, कर्मचारी हड़ताल पर हैं, और अहंकारी शक्ति आबादी को आतंकित कर रही है। वहीं दूसरी ओर निजी जीवन में पारिवारिक समरसता खत्म हो रही है। बहू को परिवार के बारे में बहुत बुरा लगता है क्योंकि उसका अहंकार सामूहिक परिवार की समझौतावादी मानसिकता से आहत होता है। aadhunik sanskriti par nibandh

धन और समृद्धि संचय करने की इच्छा समकालीन सभ्यता की एक विशेषता है, जो भारतीय संस्कृति की अस्वीकृति की निंदा करती है। आधुनिक संस्कृति ने विभिन्न पदार्थों में मिलावट करके तिजोरियों भरो , तस्करी करके अपनी अगली पीढ़ी को भी धनाढ्य बनाओ , कानून के प्रहरियों को रिश्वत की मार से क्रीतदास बना अपना उल्लू सीधा करो , विधि – वेत्ताओं की सहायता से कानून का पोस्टमार्टम कर अपने पक्ष में निर्णय बदलाओ , यही तो इस संस्कृति का नारा है ।

पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव

प्राचीनता को आधुनिक संस्कृति में परिवर्तित करने का प्रयास अबाध गति से चल रहा है । आयुर्वेदिक चिकित्सक एलोपैथिक पद्धति से रोग दूर करते हैं । पूजा – अर्चना में धूप – दीप के स्थान पर बिजली के बल्ब जलते हैं । आधुनिक संस्कृति का भारतीय जीवन के संस्कारों पर प्रभाव नकारा नहीं जा सकता । आज हम बच्चों का जन्मदिन मोमबत्ती बुझाकर मनाते हैं , विवाह संस्कारों के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंग पूजा – पाठ को शीघ्रतम निपटाना चाहते हैं , सप्तपदी और प्रतिज्ञाओं का मजाक उड़ते हैं , ‘ विवाह मुकुट ‘ का स्थान ‘ टोपी ‘ ने ले लिया है । मृतक के तेरह दिन शास्त्रीय विधि – विधान से कौन पूरा करता है ?

आधुनिकता घर – घर और मन – मन में बस गयी है । माता के चरण स्पर्श माँ के चुम्बन में बदला । जूते पहनकर मेज – कुर्सी पर भोजन करने लगे । पैंट – शर्ट और टाई परिधान बने । पाजामा – धोती ‘ नाइट – सूट ‘ बन गये । पब्लिक स्कूलों में ही हमें ज्ञान के दर्शन होते हैं । शराब और नशीली गोलियों में परम तत्त्व की प्राप्ति जान पड़ती है । केक काटकर और मोमबत्ती बुझाकर ‘ बर्थ डे ‘ मनाया जाता है ।

निष्कर्ष

इस तरह हम देखते हैं कि आधुनिकता ने मनुष्य के जीवन को पूर्ण रूप से प्रभावित किया है और सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि हम जिस आधुनिकता की ओर अन्धे होकर भाग रहे हैं , उसके पूर्व अनुयायी आज उसी को त्याग कर भारतीय संस्कृति को अपनाने के लिए कटिबद्ध प्रतीत हो रहे हैं । वे आधुनिकता और पाश्चात्य आचार विचार से इतने ऊबे हुए हैं कि वे अब हलचलपूर्ण जीवन से निकल कर शान्ति की खोज में भाग रहे हैं और इसी की खोज में भारत की ओर मुख करते हैं किन्तु जब वे यहाँ पहुँचते हैं और आधुनिकता के एक और विकृति के दर्शन करते हैं तो आश्चर्य में पड़ जाते हैं ।

वह रूप है आधुनिकता में असभ्यता , अमानवता । वे जब भारत के इस रूप के दर्शन करते हैं तो माथा पीट लेते हैं । सबका सार यह है कि हमें आधुनिकता को अपनाना है किन्तु अपनी परम्परा , अपनी सभ्यता को छोड़कर नहीं । इसी में हमारी अस्मिता , सभ्यता और विकास सुरक्षित है ।

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