पर्यावरण सुरक्षा पर निबंध | hindi essay on environment protection 

paryavaran suraksha par nibandh

भूमिका

संसार में अन्य प्राणियों की तह मनुष्य ने भी प्रकृति की गोद में जन्म लिया है और प्रकृति से उत्पन्न सभी वस्तुएँ उसके चारों ओर घिरी हुई हैं इसीलिए उन्हें पर्यावरण ‘ कहा जाता है। मिट्टी , जल , वायु , वनस्पति , पशु – पक्षी , कीड़े – मकोड़े , जीवाणु आदि पर्यावरण के कारण हैं। इनसे समस्त मानव जाति सर्वदा घिरी हुई है। इनके द्वारा हमारी जीवन रक्षा भी होती हैं।

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पर्यावरण और मानव

आज का बुद्धिवादी मानव अपने विकास के लिए पर्यावरण और प्राकृतिक सम्पदाओं का विनाश कर रहा है , जिसके कारण सर्वत्र प्रदूषण उत्पन्न हो गया है और प्राकृतिक पर्यावरण का सन्तुलन बिगड़ गया है , जिससे नाना प्रकार की बीमारियाँ उत्पन्न हो रही है और मनुष्य अनचाहे मृत्यु के मुंह में धँसता चला जा रहा है। फिर भी लोभी मनुष्य प्रकृति का साहचर्य त्याग कर वनों का विनाश करने में संलग्न है जबकि वनों से उसे लकड़ियाँ , औषधि , फल आदि अनेक उपयोगी वस्तुएँ प्राप्त होती हैं और प्राकृतिक आपदाओं जैसे- बाढ़ , भूस्खलन आदि से उसकी रक्षा होती हैं।

प्रदूषण का प्रभाव

पृथ्वी पर दिन-प्रतिदिन वायु प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है , क्योंकि वनस्पतियों की नस से ऑक्सीजन की कमी होती जा रही है और वायु की मलिनता दूर नहीं हो पा रही है। वृक्ष सूर्य की गर्मी कम करते हैं , वायु की गन्दगी दूर करते हैं , भाप से वातावरण में नमी पैदा करते हैं। प्रतिवर्ष पत्तियों को गिराकर उर्वरक उत्पन्न करते हैं , पृथ्वी के कटाव को रोकते हैं तथा पानी बरसाने में सहायक होते हैं। इनके बिना हमारी कितनी हानि हो रही है , यह भौतिकवादी मानव कल्पना भी नहीं कर पा रहा है। paryavaran suraksha par nibandh

एक और मनुष्य वायु प्रदूषण को रोकनेकाले वृक्षों का विनाश कर रहा है तो दूसरी ओर प्रदूषण बचाने वाले साधनों की वृद्धि करता जा रहा है। आज बड़ी – बड़ी उद्योगशालाओं और वाहनों से निकले विषाक्त धुएँ, नाना प्रकार के खनिज , रासायनिक द्रव वातावरण को दूषित कर ऑक्सीजन विनष्ट कर रहे हैं। इन सब के प्रभाव से उनके ऐतिहासिक भवन विद्रुप होते जा रहे हैं तथा नाना प्रकार की बीमारियाँ बढ़ रही हैं। जलवायु और वनस्पतियाँ भी अपनी स्वभाविक गति से दूर हो रहीं हैं।

प्रदूषण से हानि

पर्यावरण की हानि से जल प्रदूषण भी बढ़ता जा रहा है जिससे जनसंख्या की वृद्धि एवं औद्योगीकरण इनके मुख्य कारण हैं। घरों के वाहित मल, कीटनाशक पदार्थ एवं रासायनिक तेलों से नदी , सागर आदि के जल प्रदूषित होते जा रहे हैं जिससे विश्व में महामारियाँ फैल रही हैं और लाखों लोग प्रतिवर्ष मृत्यु के शिकार हो रहे हैं ।

शोरगुल से भी पर्यावरण में अनेक दोष पैदा हो रहे हैं। रेलगाड़ी , मोटर , बड़ी-बड़ी मशीनों , रेडियो , लाउडस्पीकरों के फैशन आवाज में विशेष रूप से ध्वनि प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही हैं। अति कोलाहल से बहरापन , मस्तिष्क विकार , रक्तचाप और हृदय रोग आदि बढ़ते जा रहे हैं। इन सबसे सुरक्षा पाने के लिए पर्यावरण की सुरक्षा आवश्यक है।

पर्यावरण संतुलन के सहायक

पशु-पक्षी , जीव-जन्तु भी पर्यावरण के सन्तुलन में सहायक होते हैं। सिंह , बाघ आदि मांसभक्षी जानवर हिरनों आदि की वृद्धि को रोते हैं। अजगर आदि चूहे, खरगोश आदि को खाकर खेती को लाभ पहुंचते हैं। पक्षी बीजों को बिखेरते हैं। कीड़े-पतिंगे आदि फूलों की प्रजनन क्रिया में सहायक होते हैं जिससे फल , फूल और बीज पैदा होता है। पशु-पक्षियों के मल से भूमि उपजाऊ हो जाती है जिससे वनस्पतियों का विकास होता है। इस प्रकार पशु-पक्षी भी पर्यावरण को सन्तुलित करते हैं। मनुष्य को इनकी रक्षा करनी चाहिए।

राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास

सारांश यह कि आज विश्व भर में पर्यावरण प्रदूषण उत्पन्न हो गया है और मानव-जीवन के लिए खतरा बढ़ता जा रहा है। हर्ष की बात है कि विश्व के अनेक राष्ट्र पर्यावरण सन्तुलन के लिए सचेष्ट हो रहे हैं। भारत में भी राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किये जा रहे हैं। 1972 ई० में भारत सरकार ने ‘राष्ट्रीय पर्यावरण आयोजन एवं समन्वय समिति’ की स्थापना की है जिसके अन्तर्गत गंगा-यमुना जैसी पवित्र नदियों को प्रदूषण से मुक्त करने की योजना है एवं अन्य बहुत सी योजनाएँ हैं। प्रदूषण को रोकने के लिए यदि वैदिक रीति से अग्नि हवन किया जाय तो आज के दुषित मानव मस्तिष्क पर स्वास्थ्यदायी प्रभाव होगा। ऐसा अमेरिकी मनोवैज्ञानिक वेरी राधनेर का कहना है। इससे फसल में भी वृद्धि होती है। इसी तरह जल स्रोतों को भी स्वच्छ करने से प्रदूषण से मुक्ति मिल सकती है।

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निष्कर्ष

वनों के संरक्षण और परिवर्द्धन द्वारा भी पर्यावरण की सुरक्षा हो सकती हैं। इसके लिए नये वृक्षों का लगाना और हरे पेड़ों को काटने का पूर्ण निषेध होना चाहिए। साथ ही भयानक विषाक्त परमाणु अस्त्रों पर पूर्ण प्रतिबन्ध होना चाहिए जिससे वे वातावरण को स्वच्छ बनायें एवं नरसंहार को रोकने में सहायक हो सकें। पर्यावरण के प्रदूषण की समस्या केवल वैज्ञानिकों तक सीमित न होकर नागरिक के लिए भी भयानक है। अतः इसके निवारण के लिए प्रत्येक प्रबुद्ध एवं विवेकी नागरिक को तत्पर एवं सचेष्ट रहना चाहिए, तभी इस विश्वव्यापी समस्या से जूझना सम्भव होगा।

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