केदारनाथ सिंह पर निबंध | kedarnath singh per nibandh

kedarnath singh per nibandh

भूमिका

केदारनाथ सिंह सबसे प्रसिद्ध आधुनिक हिंदी कवियों में से एक हैं। वह अपने दैनिक जीवन के लेखों और विश्लेषणात्मक कार्यों के लिए भी विख्यात हैं। केदारनाथ सिंह ने वर्षों में कई जटिल सामाजिक मुद्दों को बहुत ही सामान्य दैनिक भाषा में कहा है। उनकी कविताओं को उनकी काव्यात्मक सुंदरता और निर्दोष सद्भाव के साथ मानव-प्रकृति संबंधों के सावधानीपूर्वक चित्रण के लिए जाना जाता है।

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जीवन परिचय

हिन्दी जगत में केदारनाथ सिंह समकालीन कवि के रूप में जाने जाते हैं। उनका जन्म 7 जुलाई 1934 ई० में बलिया के चकिया गाँव में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा एक स्थानीय स्कूल में हुई और उन्होंने अपनी आगे की शिक्षा बनारस में पूरी की। जब से वे स्कूल में थे, तब से उनकी हिंदी साहित्य में रुचि हो गई थी। डॉ० नामवर सिंह, काशीनाथ सिंह, डॉ० त्रिभुवन सिंह, कवि त्रिलोचन, डॉ० शिवप्रसाद सिंह, और डॉ० शंभूनाथ सिंह सभी उनके साथ लगातार संपर्क में थे। केदार जी को अपने देहाती परिवेश से कविता रचने की प्रेरणा मिली। उनका घर गंगा और घाघरा नदियों के बीच स्थित है। उनके मन में गंगा और घाघरा की तरह भावना की लहरें चलती थीं।

केदारनाथ जी अपनी मातृभूमि से बड़ी मजबूती के साथ जुड़े रहे। केदार जी ने उदय प्रताप कॉलेज वाराणसी, सेंट एंड्रयूज कॉलेज गोरखपुर, उदित नारायण कॉलेज पडरौना और गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर में शिक्षक, प्राचार्य और पाठक के रूप में काम किया। उन्होंने दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भी काम किया। 19 मार्च 2018 ई० को नई दिल्ली में उनका निधन हो गया।

प्रमुख रचनाएँ

केदारनाथ सिंह ने हिन्दी साहित्य में अनेक रचनाएँ कीं । जिसमें कुछ इस प्रकार है:–

अभी बिल्कुल अभी , जमीन पक रही है , कल्पना और छायावाद , दृष्टि का पहरा , यहाँ से देखो , अकाल में सारस , सृष्टि का पहरा , उत्तर कबीर और अन्य कविताएं , टालस्टाय और साइकिल , मेरे समय के शब्द , हिन्दी कविता में बिम्ब विधान , ताना – बाना ( संपादन ) , समकालीन रूसी कविताएं , कविता दशक , साखी (अनियतकालीन पत्रिका) , शब्द ( अनियतकालीन पत्रिका ) हमारी पीढ़ी ।

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भाषा शैली

केदारनाथ सिंह ने काव्य-भाषा की शैली में अधिक सामान्य बोलचाल के शब्दों का प्रयोग किया है, जिसमें भोजपुरी का एक संकेत है। उन्हें लगता है कि कविता और प्रवचन का अटूट संबंध है। संचार का सबसे सुलभ माध्यम भाषा है। नतीजतन, ‘शुद्ध कविता’ जैसी किसी चीज़ की कल्पना करने का कोई महत्व नहीं है। समाज की सबसे छोटी सचेत गतिविधियों का प्रत्येक सदस्य किसी न किसी हद तक सामाजिक होता है। तब कविता समाज की जागरूक गतिविधि में सबसे संवेदनशील व्यक्ति है। उनकी मित्रता निर्विवाद है। अपने सबसे बुनियादी रूप में, कविता एक सोच, एक सनसनी, एक भावना, एक दिल, इन सभी की एक कलात्मक व्यवस्था या उनकी अनुपस्थिति की स्पष्ट समझ से ज्यादा कुछ नहीं है। कवि की पकड़ जितनी मजबूत होगी, उतनी ही स्वाभाविक भी होगी। इसके लिए उसे वास्तविकता के नारों का प्रत्यक्ष ज्ञान होना चाहिए और सोलह आने यह ज्ञान उसका अपना होना चाहिए।

केदारनाथ की भाषा के सन्दर्भ में सोलह आने की सटीक जानकारी प्राप्त करने की चुनौती के संबंध में जहाँ तक प्रश्न है। इसके संदर्भ में कहा जा सकता है कि केदारनाथ सिंह को ग्रामीण जीवन और उसके परिवेश की उत्कृष्ट समझ है। वे अपनी भाषा में “ग्रामीण” शब्द का उपयोग कैसे करते हैं उसकी एक झलक प्रस्तुत है: –

पकते धानों से महकी मिट्टी, फसलों के घर पहली धाप पड़ी।
शहर के उदास काँपते जल पर , हेमन्ती रातों की भाप पड़ी।
सूइयाँ समय की सब बार हुई ,
छिन , घड़ियों , घण्टों का पहरा उठा।

केदारनाथ ने कई अन्य कविताओं में ग्रामीण शब्दों का प्रयोग किया है। इन ग्रामीण शब्दों में भोजपुरी शब्दों का खुलेआम प्रयोग किया गया है। कुल मिलाकर एक ही भाषा का प्रयोग असुविधाजनक प्रतीत नहीं होता है। वह अपनी भावनाओं और विचारों को पूरी तरह से संप्रेषित करने की क्षमता रखता है।

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